26 JAN: भारत का प्रथम नागरिक राष्ट्रपति होता है। राष्ट्रपति देश की तीनों सेनाओं, थल सेना, वायु सेना और नौसेना के का मुखिया होता है इसलिए उनकी सुरक्षा भी काफी खास होती है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आज कर्तव्य पथ पर शानदार बे एवं डार्क बे रंग के घोड़ों पर सवार सजीले अंगरक्षकों के साथ नजर आयी। इन जोशीले और सजीले अंगरक्षकों को प्रेसीडेंट्स बॉडीगार्ड यानी पीबीजी कहते हैं। घुड़सवार अंगरक्षकों का यह रेजीमेंट भारतीय सेना की सबसे वरिष्ठ रेजीमेंट है। इस लेख में हम घुड़सवार अंगरक्षकों के रेजीमेंट पर एक नजर डालेंगे।
बेस्ट यूनिट करती है राष्ट्रपति की सुरक्षा
राष्ट्रपति के अंगरक्षक न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व की सभी रेजीमेंटों में अद्भुत और विशिष्ट है। यह वरिष्ठतम घुड़सवार रेजीमेंट है और राष्ट्रपति के समारोहिक दायित्वों का निर्वहन करती है। अंगरक्षकों के इस दल के कई जवान संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना अभियानों के तहत सोमालिया, अंगोला, सियरा लीओन, सूडान और लेबनान भी जा चुके हैं।
‘गणतंत्र दिवस -2023′ बहुत है खास
घुड़सवार अंगरक्षकों की इस रेजीमेंट के लिए यह गणतंत्र दिवस 2023 बहुत खास है। इस रेजीमेंट की स्थापना 1773 में हुई थी। देश की आजादी के बाद अंग्रेज भले चले गए, लेकिन यह रेजिमेंट तब से लेकर आज तक अपना कार्य कर रही है। पहले यह वायसराय की सुरक्षा के लिए थी अब यह राष्ट्रपति के अंगरक्षकों के तौर पर काम करती है। इस साल इस रेजीमेंट को 250 साल पूरे हो रहे है। इसी अवसर पर ‘राष्ट्रपति के अंगरक्षक’ वाराणसी में 250 साल पूरे होने का जश्न मनाएंगे।
6 फीट लंबाई होना जरूरी
राष्ट्रपति की अंगरक्षक टुकड़ी के सभी बलवान जवान अनिवार्य रूप से कम से कम 6 फीट लंबे होते हैं। राष्ट्रपति की सुरक्षा में सिर्फ उन्हीं सैनिकों का चयन होता है, जिनकी लंबाई 6 फीट या इससे ज्यादा हो। स्वतंत्रता से पहले यह योग्यता छह फीट तीन इंच थी। यह अंगरक्षक अपने हाथों में करीब 9 फुट लंबे भाले लिए होते हैं। इस घुड़सवार रेजिमेंट के दस्ते की धुन साज-सज्जा और कदमों की ताल, जो दर्शकों के लिए बेशक आसान हो पर वास्तव में कई घंटों और महीनों के अभ्यास का परिणाम है।
इस रेजीमेंट के घोड़े भी होते हैं खास
घुड़सवार अंगरक्षकों की इस रेजीमेंट के जवानों की कद काठी से मेल करते हुए 15.5 हाथ ऊंचे घोड़े इस रेजिमेंट में शामिल किए जाते हैं। इन शानदार घोड़ों की नस्ल रिमाऊंट वेटनरी कोर द्वारा तैयार की जाती है और वर्तमान में 44 सैन्य वेटरनरी अस्पताल के कर्नल नीरज गुप्ता की कमान में इनकी देखभाल की जा रही है।
रेजीमेंट की वेशभूषा
सर्दियों के दौरान पारंपरिक वर्दी और साज-सज्जा में नीले और सुनहरे रंग की समारोहिक पगड़ी, सुनहरे कमरबंद के साथ लंबे लाल कोट, सफेद दस्ताने, सफेद ब्रीचिस और स्पर्स के साथ नेपोलियन बूट शामिल हैं। अंगरक्षकों के दाएं हाथ में धारित 9 फीट और 9 इंच लंबे लांस पर पारंपरिक लाल और सफेद कैवलरी रंग होता है। अधिकारी और जेसीओ कैवलरी कृपाण धारण करते हैं। अश्वों को शैबरैक्स , गले के आभूषणों और सफेद ब्रो बैंड से सजाया जाता है।
इस रेजीमेंट ने पराक्रम का भी परिचय दिया
रेजीमेंट ने दुश्मन के खिलाफ सभी कार्रवाई एवं महत्वपूर्ण युद्ध जैसे 1962 में चुशूल में, 1965 में वेस्टर्न थिएटर और 1988 के दौरान श्रीलंका के ऑपरेशन पवन और 1999 में ऑपरेशन विजय में अपना पराक्रम सिद्ध किया है। राष्ट्रपति के लिए समारोह संबंधित दायित्व निभाने वाली इस रेजिमेंट के जवान कुशल घुड़सवार एक चालक पैराट्रूपर हैं। यह बहादुर जवान सियाचिन ग्लेशियर जैसे विश्व के सबसे ऊंचे और ठंडी युद्ध क्षेत्र में भी अपने कार्य कुशलता का लोहा मनवा चुके हैं। इस रेजिमेंट के जवान राष्ट्रीय राइफल्स के साथ फील्ड में ड्यूटी भी करते हैं और उच्च तुंगता क्षेत्र में मैकेनाइज्ड कॉलमों के साथ ऑपरेशनों में भी तैनात होते हैं। इस रेजीमेंट का आदर्श वाक्य और युद्धघोष है , ‘भारत माता की जय।’
2 साल की कठिन ट्रेनिंग के बाद यूनिट में मिलती है जगह
इस रेजीमेंट में सेना की विभिन्न टुकड़ियों से जवानों को लिया जाता है। मौजूदा समय में इस टुकड़ी में शामिल सभी जवानों को विशेष प्रशिक्षण प्राप्त होता है। यह पैरा ट्रुपिंग से लेकर दूसरे क्षेत्रों में भी दक्ष होते हैं। किसी नए जवान का इस यूनिट का हिस्सा बनना आसान नहीं है। उन्हें दो वर्ष के कठिन प्रशिक्षण के बाद ही इसका हिस्सा बनाया जाता है। इस यूनिट की सबसे बड़ी पहचान होती हैं इनके खूबसूरत और मजबूत घोड़े। इस टुकड़ी में शामिल सभी जवानों को इसमें महारत होती है।