ग्यारह मार्च गुरुवार को महाशिवरात्रि कई शुभ संयोगों में आ रही है। इस दिन एक ही मकर राशि में 4 बड़े ग्रह-शनि, गुरु, बुध तथा चंद्र ध्निष्ठा नक्षत्र में होंगे तथा आंशिक काल सर्प योग भी रहेगा। ऐसे अवसर पर जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प योग है, वे इसकी शांति करवा सकते हैं। इस योग में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व होगा और जातक यदि अपनी राशि के अनुसार भगवान शिव की आराधना करेंगे तो इससे उनकी कई मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं। इस दिन रुद्राभिषेक करना शुभदायक होगा। इस दुर्लभ योग में भगवान शिव की आराधना करने पर दोष भी दूर हो सकेंगे और कष्टों से मुक्ति मिलेगी।
हिंदू पंचांग के अनुसार महाशिवरात्रि पर्व माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव का व्रत रखने वालों को सौभाग्य, समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है।
शिवलिंग भगवान शिव का प्रतीक है। शिव का अर्थ है- कल्याणकारी और लिंग का अर्थ है सृजन। सृजनहार के रूप में लिंग की पूजा होती है। संस्कृत में लिंग का अर्थ है प्रतीक. भगवान शिव अनंतकाल के प्रतीक हैं। मान्यताओं के अनुसार लिंग एक विशाल लौकिक अंडाशय है, जिसका अर्थ है ब्रह्माण्ड। इसे ब्रह्मांड का भी प्रतीक माना जाता है। शिवजी को महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ के नामों से भी जाना जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव ने ही धरती पर सबसे पहले जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया था। इसीलिए भगवान शिव को आदिदेव भी कहा जाता है।
महाशिवरात्रि पूजा का शुभ मुहूर्त
महाशिवरात्रि तिथि: 11 मार्च 2021 (बृहस्पतिवार)
चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 11 मार्च 2021 को दोपहर 2 बजकर 39 मिनट से
चतुर्थी तिथि समाप्त: 12 मार्च 2021 को दोपहर 3 बजकर 2 मिनट पर
शिवरात्रि पारण समय: 12 मार्च की सुबह 6 बजकर 34 मिनट से शाम 3 बजकर 2 मिनट तक
इस दिन काले तिलों सहित स्नान करके व व्रत रखकर रात्रि में भगवान शिव की विधिवत आराधना करना कल्याणकारी माना जाता है। दूसरे दिन अर्थात अमावस के दिन मिष्ठान्नादि सहित ब्राह्मणों तथा शारीरिक रूप से असमर्थ लोगों को भोजन देने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए। यह व्रत महा कल्याणकारी होता है और अश्वमेध यज्ञ तुल्य फल प्राप्त होता है।
इस दिन किए गए अनुष्ठानों, पूजा व व्रत का विशेष लाभ मिलता है। इस दिन चंद्रमा क्षीण होगा और सृष्टि को ऊर्जा प्रदान करने में अक्षम होगा। इसलिए अलौकिक शक्तियां प्राप्त करने का यह सर्वाधिक उपयुक्त समय होता है जब ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है। इस रात भगवान शिव का विवाह हुआ था।
भारतीय जीवन में ऐसे लोक पर्व वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में भले ही धूमिल हो रहे हों परंतु इनका वैज्ञानिक पक्ष आस्था के आगे उजागर हो नहीं पाता। भारतीय आस्था में चाहे सूर्य ग्रहण हो या कुंभ का पर्व, दोनों ही समान महत्व रखते हैं। शिव रात्रि एक ऐसा महत्वपूर्ण पर्व है, जो देश के हर कोने में मनाया जाता है। यह पर्व भगवान शिव एवं माता पार्वती के मिलन का महापर्व कहलाता है। इस व्रत से साधकों को इच्छित फल, धन, वैभव, सौभाग्य, सुख-समृद्धि, आरोग्य, संतान आदि की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्य रात्रि को भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा जाता है। काल के काल और देवों के देव महादेव के इस व्रत का विशेष महत्व है। एक मतानुसार इस दिन को शिव विवाह के रूप में भी मनाया जाता है। ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को अद्र्धरात्रि के समय करोड़ों सूर्य के तेज के समान ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था।
स्कंद पुराण के अनुसार चाहे सागर सूख जाए, हिमालय टूट जाए, पर्वत विचलित हो जाएं परंतु शिव-व्रत कभी निष्फल नहीं जाता। भगवान श्रीराम भी यह व्रत रख चुके हैं।
व्रत की परंपरा
प्रात:काल स्नान से निवृत होकर एक वेदी पर कलश की स्थापना कर गौरी-शंकर की मूर्ति या चित्र रखें। कलश को जल से भरकर रोली, मौली, अक्षत, पान-सुपारी, लौंग, इलायची, चंदन, दूध, दही, घी, शहद, कमलगटटा्, धतूरा, बिल्व पत्र, कनेर आदि अर्पित करें और शिव की आरती पढ़ें। रात्रि जागरण में शिव की चार आरती का विधान आवश्यक माना गया है। इस अवसर पर शिव पुराण का पाठ भी कल्याणकारी कहा जाता है।
विशेष चेतावनी
बेल पत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं। बेल पत्र के तीनों पत्ते पूरे हों, टूटे न हों। इसका चिकना भाग शिवलिंग से स्पर्श करना चाहिए। नील कमल भगवान शिव का प्रिय पुष्प माना गया है। अन्य फूलों मे कनेर, आक, धतूरा, अपराजिता,चमेली, नाग केसर, गूलर आदि के फूल चढ़ाए जा सकते है। जो पुष्प वर्जित हैं वे हैं-कदंब, केवड़ा, केतकी। फूल ताजे हों बासी नहीं। इस दिन काले वस्त्र न पहनें। तिल का तेल प्रयोग न करें। पूजा में अक्षत ही चढाएं। टूटे चावल न चढ़ाएं। भगवान शिव को सफेद फूल बहुत पसंद है लेकिन केतकी का फूल सफेद होने के बावजूद भोलेनाथ की पूजा में नहीं चढ़ाना चाहिए। भगवान शिव की पूजा करते समय शंख से जल अर्पित नहीं करना चाहिए। भगवान शिव की पूजा में तुलसी का प्रयोग वर्जित माना गया है। शिव की पूजा में तिल नहीं चढ़ाया जाता है। तिल भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ माना जाता है, इसलिए भगवान विष्णु को तिल अर्पित किया जाता है लेकिन शिव जी को नहीं चढ़ता है। भगवान शिव की पूजा में भूलकर भी टूटे हुए चावल नहीं चढ़ाने चाहिए। शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर नारियल का पानी नहीं चढ़ाना चाहिए। शिव प्रतिमा पर नारियल चढ़ा सकते हैं, लेकिन नारियल का पानी नहीं। हल्दी और कुमकुम उत्पत्ति के प्रतीक हैं, इसलिए पूजन में इनका प्रयोग नहीं करना चाहिए।
विभिन्न सामग्री से बने शिवलिंग का अलग महत्व
- फूलों से बने शिवलिंग पूजन से भू-संपत्ति प्राप्त होती है।
- अनाज से निर्मित शिवलिंग स्वास्थ्य एवं संतान प्रदायक है।
- गुड़ व अन्न मिश्रित शिवलिंग पूजन से कृषि संबंधित समस्याएं दूर रहती हैं।
- चांदी से निर्मित शिवलिंग धन-धान्य बढ़ाता है।
- स्फटिक वाले शिवलिंग से अभीष्ट फल प्राप्ति होती है।
- पारद शिवलिंग अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो सर्व कामप्रद, मोक्षप्रद, शिवस्वरूप बनाने वाला, समस्त पापों का नाश करने वाला माना गया है।
शिवरात्रि पर करें कालसर्प या राहू योग का निवारण
चांदीे के नाग-नागिन का जोड़ा, दुध या गंगा जल, हलवा, सरसों का तेल, काला-सफेद कंबल शिवलिंग पर अर्पित करें। महामृत्युंज्य मंत्र की कम से कम एक माला, 108 मंत्र अवश्य पढ़ें। या किसी सुयोग्य कर्मकांडी से इस दोष का विधिवत निवारण करवाएं।
मुख्य मंत्र
- ओम् नम: शिवाय
- ओम् नमो वासुदेवाय नम:
- ओम् राहुवे नम:
- महामृत्युंज्य मंत्र- ओम् त्रयंम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनं।
- उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
- शिवरात्रि पर अन्य मंत्र आप विभिन्न समस्याओं के लिए कर सकते हैं
- आय वृद्धि: शं हृीं शं
- विवाह: ओम् ऐं हृी शिव गौरी मव हृीं ऐं ओम्
- शत्रु: ओम् मं शिव स्वरूपाय फट्
- रोग: ओम् है सदा शिवाय रोग मुक्ताय हैं फट्
- साढ़ेसाती: हृीं ओम् नम: शिवाय हृीं
- मुकदमा: ओम् क्रीं नम: शिवाय क्रीं
- परीक्षा: ओम् ऐं गे ऐं ओम्
- बिगड़ी संतान: ओम् गं ऐं ओम् नम: शिवाय ओम्
- विदेश यात्रा: ओम् अनंग वल्लभाये विदेश गमनाय कार्यसिद्धयर्थे नम:
- सुख-सम्पदा: ओम् हृौं शिवाय शिवपराय फट्
- शत्रु विजय: ओम् जूं स: पालय पालय स: जूं ओम्
- रोजगार प्राप्ति: ओम् शं हृीं शं हृीं शं हृीं शं हृीं ओम्
- प्रेम प्राप्ति: ओम् हृीं ग्लौं अमुकं सम्मोहय सम्मोहय फट्
महाशिवरात्रि के दिन अपनी राशि के अनुसार ऐसे करें शिव आराधना
मेष : गुलाल से शिवजी की पूजा करें। साथ में शिवरात्रि के दिन ॐ ममलेश्वाराय नम: मंत्र का जाप करें।
वृषभ : दूध से शिवजी का अभिषेक करें और ॐ नागेश्वराय नम: मंत्र का जाप करें।
मिथुन : गन्ने के रस से शिवजी का अभिषेक करें और ॐ भुतेश्वराय नम: मंत्र का जाप करें।
कर्क : पंचामृत से शिवजी का अभिषेक करें और महादेव के द्वादश नाम का स्मरण करें।
सिंह : शहद से शिवजी का अभिषेक करें और ॐ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें।
कन्या : शुद्ध जल से शिवजी का अभिषेक करें और शिव चालीसा का पाठ करें।
तुला : दही से शिवजी का अभिषेक करें और शांति से शिवाष्टक का पाठ करें।
वृश्चिक : दूध और घी से शिवजी का अभिषेक करें और ॐ अन्गारेश्वराय नम: मंत्र का जाप करें।
धनु : दूध से शिवजी का अभिषेक करें और ॐ समेश्वरायनम: मंत्र का जाप करें।
मकर : अनार से शिवजी का अभिषेक करें और शिव सहस्त्रनाम का उच्चारण करें।
कुम्भ : दूध, दही, शक्कर, घी, शहद सभी से अलग-अलग शिवजी का अभिषेक करें और ॐ शिवाय नम : मंत्र का जाप करें।
मीन : ऋतुफल (जो मौसम का ख़ास फल हो) से शिवजी का अभिषेक करें और ॐ भामेश्वराय नम: मंत्र का जाप करें।
- मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, चंडीगढ़। 458, सैक्टर-10, पंचकूला। मो. 98156-19620