रामप्पा ने 40 सालों में जो बनाया था वो केवल मंदिर नहीं था, वो विज्ञान का सार था तो कला का भंडार था। यह कलाकृति एक शिव मंदिर है जिसे रुद्रेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। किसी शिल्पकार के लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है कि उसके द्वारा बनाया गया मंदिर उसके नाम से जाना जाए।
भारत ने एक बार फिर विश्व को अपनी ओर आकर्षित ही नहीं किया, बल्कि अपनी संस्कृति और कला का लोहा भी मनवाया है। तेलंगाना के रामप्पा मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया जाना एक तरफ भारत के लिए गौरव का पल था तो विश्व के वैज्ञानिकों के लिए एक अचंभा भी था। दरअसल, आज से लगभग 800 साल पहले निर्मित रामप्पा मंदिर सिर्फ एक सांस्कृतिक धरोहर ही नहीं है, बल्कि ज्ञान और विज्ञान से परिपूर्ण भारत के गौरवशाली अतीत का जीवित प्रमाण भी है। यह पत्थरों पर उकेरा हुआ एक महाकाव्य है। वो महाकाव्य, जो 800 सालों से लगातार शान से भारत की वास्तुकला और विज्ञान की गाथा गा रहा है। और अब तो इसके सुर विश्व के कोने- कोने को मुग्ध कर रहे हैं।
रामप्पा मंदिर का एक मंदिर से विश्व धरोहर बनने का यह सफर लगभग 800 साल लंबा है, जो शुरू हुआ था 1213 में। तब तेलंगाना के तत्कालीन काकतीय वंश के राजा गणपति देव के मन में एक ऐसा शिव मंदिर बनाने की प्रेरणा जागी, जो सालों-साल उनकी भक्ति का प्रतीक बनकर मजबूती के साथ खड़ा रहे। यह जिम्मेदारी उन्होंने सौंपी वास्तुकार रामप्पा को और रामप्पा ने भी अपने राजा को निराश नहीं किया।उन्होंने अपने राजा की इच्छा को ऐसे साकार किया कि राजा को ही मोहित कर लिया। इतना मोहित कि उन्होंने मंदिर का नामकरण रामप्पा के ही नाम से कर दिया। आखिरकार राजा मोहित होते भी क्यों नहीं, रामप्पा ने राजा के भावों को बेजान पत्थरों पर उकेर कर उन्हें 40 सालों की मेहनत से उसे एक सुमधुर गीत जो बना दिया था। जी हां, रामप्पा ने 40 सालों में जो बनाया था वो केवल मंदिर नहीं था, वो विज्ञान का सार था तो कला का भंडार था। यह कलाकृति एक शिव मंदिर है, जिसे रुद्रेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। किसी शिल्पकार के लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है कि उसके द्वारा बनाया गया मंदिर उसके नाम से जाना जाए। आज भी यह विश्व का शायद इकलौता मंदिर है, जो अपने वास्तुकार के नाम पर जाना जाता है। मशहूर खोजकर्ता मार्को पोलो ने जब इसे देखा था तो इसे “मंदिरों की आकाशगंगा का सबसे चमकीला सितारा” कहा था।
आप सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसा क्या है इस मंदिर में ? दअरसल, जब इस मंदिर का अध्ययन किया गया तो वैज्ञानिकों और पुरातत्वेत्ताओं के लिए यह तय करना मुश्किल हो गया कि इसका कला पक्ष भारी है या इसका तकनीकी पक्ष। सबसे बड़ा प्रश्न यह था कि यह चमत्कार है या विज्ञान कि 17वीं सदी में जब इस इलाके में 7.7 से 8.2 रिक्टर का भीषण भूकंप आया था, जिसके कारण इस मंदिर के आसपास की लगभग सभी इमारतें ध्वस्त हो गई थीं, लेकिन 800 साल पुराना यह मंदिर ज्यों का त्यों बिना नुकसान के कैसे खड़ा रहा ? इस रहस्य को जानने के लिए मंदिर से एक पत्थर के टुकड़े को काटकर जब उसकी जांच की गई तो पत्थर की यह विशेषता सामने आई कि वो पानी में तैरता है। राम सेतु के अलावा पूरे विश्व में आज तक कहीं ऐसे पत्थर नहीं पाए गए हैं, जो पानी में तैरते हों। यह अभी भी रहस्य है कि ये पत्थर कहां से आए ? क्या रामप्पा ने स्वयं इन्हें बनाया था ? आज से 800 साल पहले रामप्पा के पास वो कौन सी तकनीक थी, जो हमारे लिए 21वीं सदी में भी अजूबा है ? आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस मंदिर को उसका यह स्वरूप देने से पहले रामप्पा ने ऐसा ही एक छोटा सा मंदिर बनाया था, जिसे हम आज के दौर में प्रेजेंटेशन मॉडल कहते हैं। इसके बाद ही रामप्पा ने इस रूद्रेश्वर मंदिर का निर्माण किया।
छह फुट ऊंचे सितारे के आकार के प्लेटफार्म पर बनाए गए 1000 पिलर वाले इस मंदिर की नींव सैंडस्टोन तकनीक से भरी गई थी, जो भूकम्प के दौरान धरती के कम्पन की तीव्रता को कम करके इसकी रक्षा करती है। इसके अलावा मंदिर की मूर्तियों और छत के अंदर बेसाल्ट पत्थर प्रयोग किए गए हैं। अब यह वाकई में आश्चर्यजनक है कि वो पत्थर जिसे डायमंड इलेक्ट्रॉनिक मशीन से ही काटा जा सकता है वो भी केवल एक इंच प्रति घण्टे की दर से। कल्पना कीजिए, आज से 800 से साल पहले भारत के पास केवल ऐसी तकनीक ही नहीं थी, बल्कि कला भी बेजोड़ थी। इस मंदिर की छत पर ही नहीं, बल्कि पिलरों पर भी इतनी बारीक कारीगरी की गई है कि जो आज के समय में भी मुश्किल प्रतीत हो रही है, क्योंकि उन पत्थरों पर उकेरी गई कलाकृतियों की कटाई और चमक देखते ही बनती है।
कला की बारीकी की इससे बेहतर और क्या मिसाल हो सकती है कि मूर्ति पर उसके द्वारा पहने गए आभूषण की छाया तक उकेरी गई है। आज 800 सालों बाद भी इन मूर्तियों की चमक सुरक्षित है। इससे भी बड़ी बात यह है कि पत्थरों की यह मूतियां थ्री-डी हैं। शिव जी के इस मंदिर में जो नन्दी की मूर्ति है, खड़ी मूर्ति है, जो इस प्रकार से बनाई गई है कि ऐसा लगता है कि नन्दी बस चलने ही वाला है। इतना ही नहीं, इस मूर्ति में नन्दी की आंखें ऐसी हैं कि आप किसी भी दिशा से उसे देखें, आपको लगेगा कि वो आपको ही देख रहा है। मंदिर की छत पर शिवजी की कहानियां उकेरी गई हैं तो दीवारों पर रामायण और महाभारत की। मंदिर में मौजूद शिवलिंग के तो कहने ही क्या। वो अंधेरे में भी चमकता है। आज एक बार फिर भारत की सनातन संस्कृति की चमक विश्वभर में फैल रही है।
- डॉ. नीलम महेंद्र (वरिष्ठ स्तंभकार)
लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं।