जैसे ही वसंत आता है, उपकार फिल्म का मशहूर गीत- ‘पीली-पीली सरसों फूली, पीली उड़े पतंग, अरे पीली-पीली उड़े चुनरिया, पीली पगड़ी के संग’, भी खेतों का दृश्य लेकर मन मस्तिष्क में तैरने लगता है। प्रकृति और मानव का संबंध आदिकाल से रहा है। प्राकृतिक अवस्था के अनुसार दो-दो महीने की छह ऋतुएं वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर प्रकृति को शोभायमान करती हैं। ऋतु चक्र के अनुसार शिशिर ऋतु के बाद चैत्र और वैशाख दोनों ही महीने वसंत ऋतु के माने गए हैं। इस महीने को ‘ऋतुराज’ नाम से, तो कहीं ‘मधुमास’ से भी संबोधित किया जाता रहा है। इस महीने में आकाश से कोहरा कम हो जाता है, ठंड कम पड़ने लगती है, आसमान निर्मल स्वच्छ हो जाता है, नदी, सरोवर, तालाब का जल अपनी भौतिक छवि से सबके मन को आकर्षित करता है। इसी महीने में पेड़ों में नई-नई कोपलें फूटती हैं। सरसों, जौ, आलू, गेहूं, चना, मटर, तीसी की फसल तैयार होने को होती है। इसी महीने में भाैरे, मधुमक्खी, पराग का आनंद लेते हैं तथा मधुमक्खी शहद इकट्ठा करने का काम तेजी से करती है। कोयल और पपीहा अमराइयों से मस्त मधुर गान करते हैं। मधु ऋतु वसंत के इस सुरम्य प्राकृतिक सुषमा और संपन्न वातावरण को कवियों ने अपनी लेखनी के माध्यम से विविध रूपों में स्थापित करने का प्रयास किया है। पीला रंग इस बात का द्योतक है कि फसलें पकने वाली हैं। इसके अलावा पीला रंग समृद्धि का सूचक भी कहा गया है। इस पर्व के साथ शुरू होने वाली वसंत ऋतु के दौरान फूलों पर बहार आ जाती है। खेतों में सरसों सोने की तहर चमकने लगता है। जौ और गेहूं की बालियां खिल उठती हैं और इधर-उधर रंगबिरंगी तितलियां उड़ती दिखने लगती हैं। इस पर्व को ऋषि पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।
वसंत पंचमी हिन्दू त्योहार
वसंत पंचमी या श्रीपंचमी हिन्दू त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। लोग इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं। प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बांटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पांचवें दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था, जिसमें भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा होती है। यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में वसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है। वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नई उमंग से सूर्योदय होता है और नई चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है।
वसंत की विभिन्न छटाएं
वसंत पंचमी के दिन श्रद्धालु गंगा तथा अन्य पवित्र नदियों में डुबकी लगाने के बाद मां सरस्वती की आराधना करते हैं। उत्तराखंड के हरिद्वार और उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में तो श्रद्धालुओं की अच्छी खासी भीड़ रहती है। इस दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु गंगा और संगम के तट पर पूजा-अर्चना करने आते हैं। इसके अलावा पंजाब, हरियाणा, उत्तराखण्ड व अन्य राज्यों से श्रद्धालु हिमाचल प्रदेश के तात्पानी में एकत्रित होते हैं और वहां सल्फर के गर्म झरनों में स्नान करते हैं। इस दिन उत्तर भारत के कई भागों में पीले रंग के पकवान बनाए जाते हैं और लोग पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं। पंजाब में ग्रामीणों को सरसों के पीले खेतों में झूमते तथा पीले रंग की पतंगों को उड़ाते देखा जा सकता है। पश्चिम बंगाल में ढाक की थापों के बीच सरस्वती माता की पूजा की जाती है तो छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में प्रसिद्ध सिख धार्मिक स्थल गुरु−का−लाहौर में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ था।
वसंत और प्रेम
वसंत कामदेव का मित्र है। इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है। इस धनुष की कमान स्वरविहीन होती है। यानी जब कामदेव कमान से तीर छोड़ते हैं तो उसकी आवाज नहीं होती है। कामदेव का एक नाम ‘अनंग’ है यानी बिना शरीर के यह प्राणियों में बसते हैं। एक नाम ‘मार’ है यानी यह इतने मारक हैं कि इनके बाणों का कोई कवच नहीं है। वसंत ऋतु को प्रेम की ही ऋतु माना जाता रहा है। इसमें फूलों के बाणों से आहत हृदय प्रेम से सराबोर हो जाता है। गुनगुनी धूप, स्नेहिल हवा, मौसम का नशा प्रेम की अगन को और भड़काता है। तापमान न अधिक ठंडा, न अधिक गर्म। सुहाना समय चारों ओर सुंदर दृश्य, सुगंधित पुष्प, मंद-मंद मलय पवन, फलों के वृक्षों पर बौर की सुगंध, जल से भरे सरोवर, आम के वृक्षों पर कोयल की कूक, ये सब प्रीत में उत्साह भर देते हैं। यह ऋतु कामदेव की ऋतु है। यौवन इसमें अंगड़ाई लेता है। दरअसल, वसंत ऋतु एक भाव है, जो प्रेम में समाहित हो जाता है। जब कोई किसी से प्रेम करने लगता है तो सारी दुनिया में हृदय के चित्र में बाण चुभाने का प्रतीक उपयोग में लाया जाता है। ‘मार’ का बाण यदि आपके हृदय में चुभ जाए तो आपके हृदय में पीड़ा होगी लेकिन वह पीड़ा ऐसी होगी कि उसे आप छोड़ना नहीं चाहोगे, वह पीड़ा आनंद जैसी होगी। काम का बाण जब हृदय में चुभता है तो कुछ-कुछ होता रहता है। इसलिए तो वसंत का ‘मार’ से संबंध है, क्योंकि काम बाण का अनुकूल समय वसंत ऋतु होता है। प्रेम के साथ ही वसंत का आगमन हो जाता है। जो प्रेम में है वह दीवाना हो ही जाता है। प्रेम का गणित मस्तिष्क की पकड़ से बाहर रहता है। इसलिए प्रेम का प्रतीक हृदय के चित्र में बाण चुभा बताना है।
पौराणिक महत्व
इसके साथ ही यह पर्व हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं की भी याद दिलाता है। सर्वप्रथम तो यह हमें त्रेता युग से जोड़ती है। रावण द्वारा सीता के हरण के बाद भगवान श्रीराम उनकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े। इसमें जिन स्थानों पर वे गए, उनमें दण्डकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब भगवान श्रीराम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर भगवान श्रीराम को खिलाने लगी। प्रेम में पगे जूठे बेरों वाली इस घटना को रामकथा के सभी गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया। दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है, जहां शबरी मां का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही भगवान श्रीराम यहां आए थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रद्धा है कि भगवान श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।
ऐतिहासिक महत्व
वसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद ग़ोरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए तो मोहम्मद ग़ोरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं। इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध है। मोहम्मद ग़ोरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर ग़ोरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया- चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण। ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान। पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह मोहम्मद ग़ोरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक-दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। 1192 ई. में यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।
सिखों के लिए भी बड़ा महत्व
सिखों के लिए भी वसंत पंचमी के दिन का बहुत महत्व है। मान्यता है कि वसंत पंचमी के दिन सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिन्द सिंह जी का विवाह हुआ था। वसंत पंचमी का लाहौर निवासी वीर हकीकत से भी गहरा सम्बन्ध है। एक दिन जब मुल्ला जी किसी काम से विद्यालय छोड़कर चले गए तो सब बच्चे खेलने लगे, पर वह पढ़ता रहा। जब अन्य बच्चों ने उसे छेड़ा तो दुर्गा मां की सौगंध दी। मुस्लिम बालकों ने दुर्गा मां की हंसी उड़ाई। हकीकत ने कहा कि यदि में तुम्हारी बीबी फातिमा के बारे में कुछ कहूं तो तुम्हें कैसा लगेगा? बस फिर क्या था, मुल्ला जी के आते ही उन शरारती छात्रों ने शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। फिर तो बात बढ़ते हुए काजी तक जा पहुंची। मुस्लिम शासन में वही निर्णय हुआ, जिसकी अपेक्षा थी। आदेश हो गया कि या तो हकीकत मुसलमान बन जाए, अन्यथा उसे मृत्युदंड दिया जाएगा। हकीकत ने यह स्वीकार नहीं किया। परिणामत: उसे तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया। कहते हैं कि उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ से तलवार गिर गई। हकीकत ने तलवार उसके हाथ में दी और कहा कि जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो? इस पर जल्लाद ने दिल मजबूत कर तलवार चला दी। यह घटना वसंत पंचमी (23.2.1734) को ही हुई थी। पाकिस्तान यद्यपि मुस्लिम देश है, पर हकीकत के आकाशगामी शीश की याद में वहां वसंत पंचमी पर पतंगें उड़ाई जाती है। हकीकत लाहौर का निवासी था। अतः पतंगबाजी का सर्वाधिक जोर लाहौर में रहता है।
गुरु रामसिंह कूका की भी याद दिलाती है वसंत पंचमी
वसंत पंचमी हमें गुरु रामसिंह कूका की भी याद दिलाती है। उनका जन्म 1816 ई. में वसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था। कुछ समय वे महाराजा रणजीत सिंह की सेना में रहे, फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गए, पर आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण इनके प्रवचन सुनने लोग आने लगे। धीरे-धीरे इनके शिष्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ कहलाया। गुरु रामसिंह, गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उद्धार, अन्तरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने भी सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलाई थी। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गांव में मेला लगता था। 1872 में मेले में आते समय उनके एक शिष्य को मुसलमानों ने घेर लिया। उन्होंने उसे पीटा और गोवध कर उसके मुंह में गोमांस ठूंस दिया। यह सुनकर गुरु रामसिंह के शिष्य भड़क गए। उन्होंने उस गांव पर हमला बोल दिया, पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गई। अतः युद्ध का पासा पलट गया। इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए और 68 पकड़ लिए गए। इनमें से 50 को सत्रह जनवरी 1872 को मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया गया। शेष 18 को अगले दिन फांसी दी गई। दो दिन बाद गुरु रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। 14 साल तक वहां कठोर अत्याचार सहकर 1885 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।
जन्म दिवस
राजा भोज का जन्मदिवस वसंत पंचमी को ही होता है। राजा भोज इस दिन एक बड़ा उत्सव करवाते थे, जिसमें पूरी प्रजा के लिए एक बड़ा प्रीतिभोज रखा जाता था, जो चालीस दिन तक चलता था। वसंत पंचमी हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्मदिवस (28.02.1899) भी है। निराला जी के मन में निर्धनों के प्रति अपार प्रेम और पीड़ा थी। वे अपने पैसे और वस्त्र खुले मन से निर्धनों को दे डालते थे। इस कारण लोग उन्हें ‘महाप्राण’ कहते थे। इस दिन जन्मे लोग बहुत आगे जाते हैं।
विवाह के लिए अबूझ मुहूर्त
इस वर्ष शुभ ग्रहों का तालमेल ठीक न होने के कारण विवाह के शुभ मुहूर्त 12 दिसंबर-2020 से लेकर 24 अप्रैल 2021 तक उपलब्ध नहीं हैं। विवाह की उत्सुकता से प्रतीक्षा करने वालों के लिए शुभ समाचार लेकर आया है वसंत। इस दिन अर्थात 16 फरवरी को दूल्हे घोड़ी चढ़ सकेंगे, दुल्हनें डोली पर सवार हो सकेंगी। इस दिन कई सामाजिक संस्थाएं सामूहिक विवाहों का आयोजन भी कर रही हैं और मैरिज पैलेस, डेस्टीनेशन, कम्युनिटी हॉल्स, होटल, बैंड-बाजे, पुरोहित आदि पूरी तरह बुक हैं।
ग्रहों की स्थिति
16 फरवरी को वसंत पंचमी पर ज्योतिष के अनुसार सर्वार्थ सिद्धि, अमृत सिद्धि तथा रवियोग एक साथ हैं और मंगलकारी दिन मंगलवार भी है। इसके अलावा मकर राशि में 4 ग्रह- गुरु, शनि, शुक्र व बुध एक साथ होंगे तथा मंगल अपनी स्वराशि मेष में विराजमान रहेंगे। यह सब मीन राशि व रेवती नक्षत्र के अधीन होगा। वसंत पंचमी के दिन आपको माता सरस्वती की पूजा के लिए कुल 5 घंटे 47 मिनट का समय मिलेगा। आपको इसके मध्य ही सरस्वती पूजा करनी चाहिए। 16 फरवरी को सुबह 6 बजकर 59 मिनट से दोपहर 12 बजकर 35 मिनट के बीच सरस्वती पूजा का मुहूर्त बन रहा है।
वसंत पंचमी शुभ मुहूर्त
मंगलवार, 16 फरवरी 2021
वसंत पंचमी सरस्वती पूजा मुहूर्तः सुबह 6 बजकर 59 मिनट से दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक
अवधिः 5 घंटे 37 मिनट
वसंत पंचमी मध्याह्न का क्षणः 12:35
पंचमी तिथि प्रारम्भः 16 फरवरी-2021 को 03:36 बजे
पंचमी तिथि समाप्तः 17 फरवरी-2021 को 05:46 बजे
क्या-क्या कर सकते हैं वसंत पंचमी पर ?
- सगाई या विवाह कर सकते हैं।
- नया कारोबार आरंभ कर सकते हैं।
- गृह प्रवेश, मकान की नींव डाल सकते हैं।
- नया वाहन, बर्तन, सोना, घर, नए वस्त्र, आभूषण, वाद्य यंत्र, म्युजिक सिस्टम आदि खरीदने का शुभ दिन है।
- किसी नए कोर्स में एडमिशन, विदेश जाने के लिए आवेदन या संबंधित परीक्षा।
- लांगटर्म इन्वेस्टमेंट, बीमा पॉलिसी, बैंक खाता आदि खोल सकते हैं।
- कोई नवीन कार्य आरंभ करें, शिक्षा या संगीत से संबंधित।
क्यों खास है वसंत पंचमी?
वसंत पंचमी के दिन को माता-पिता अपने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा की शुरुआत के लिए शुभ मानते हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार तो इस दिन बच्चे की जीभ पर शहद से ए बनाना चाहिए। इससे बच्चा ज्ञानवान होता है व शिक्षा जल्दी ग्रहण करने लगता है।
- बच्चों को उच्चारण सिखाने के लिहाज से भी यह दिन बहुत शुभ माना जाता है।
- 6 माह पूरे कर चुके बच्चों को अन्न का पहला निवाला भी इसी दिन खिलाया जाता है।
- चूंकि वसंत ऋतु प्रेम की रुत मानी जाती है और कामदेव अपने बाण इस ऋतु में चलाते हैं। इस लिहाज से अपने परिवार के विस्तार के लिए भी यह ऋतु बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसलिए वसंत पंचमी को परिणय सूत्र में बंधने के लिए भी बहुत सौभाग्यशाली दिन माना जाता है। बहुत से युगल इस दिन अपने दांपत्य जीवन की शुरुआत करते हैं।
- गृह प्रवेश से लेकर नए कार्यों की शुरुआत के लिए भी इस दिन को शुभ माना जाता है।
- इस दिन कई लोग पीले वस्त्र धारण कर पतंगबाजी भी करते हैं।
पेन, काॅपी, किताबों की पूजा
वसंत पंचमी के दिन पेन, काॅपी, किताबों की भी पूजा की जाती है। ऐसा करने से देवी सरस्वती वरदान प्रदान करती हैं। भारत देश के सरस्वती, विष्णु और शिव मंदिरों में इस त्योहार का उत्साह सर्वाधिक होता है। अधिकांश स्थानों पर मेले आयोजित किए जाते हैं, जो मुख्यतः संबंधित देवी-देवता को ही समर्पित होते हैं।
कैसे करें वसंत पंचमी पूजा ?
प्रात:काल स्नानादि कर पीले वस्त्र धारण करें। मां सरस्वती की प्रतिमा को सामने रखें, तत्पश्चात कलश स्थापित कर भगवान गणेश व नवग्रह की विधिवत पूजा करें। फिर मां सरस्वती की पूजा करें। मां की पूजा करते समय सबसे पहले उन्हें आचमन व स्नान कराएं। फिर माता का श्रंगार कराएं। माता श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, इसलिए उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाएं। प्रसाद के रुप में खीर अथवा दुध से बनी मिठाइयां चढा सकते हैं। श्वेत फूल माता को अर्पण किए जा सकते हैं। विद्यार्थी मां सरस्वती की पूजा कर गरीब बच्चों में कलम व पुस्तकों का दान करें। संगीत से जुड़े व्यक्ति अपने साज पर तिलक लगाकर मां की आराधना कर सकते हैं व मां को बांसुरी भेंट कर सकते हैं। देवी सरस्वती के इस मन्त्र का जाप करने से ‘श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा’ असीम पुण्य मिलता है।
राशि के अनुसार क्या करें खास ?
मेष : वसंत पंचमी के दिन सरस्वती मां की पूजा के दौरान सरस्वती कवच का पाठ जरूर करें। ऐसा करने से बुद्धि की प्राप्ति होगी। इसके अलावा एकाग्रता की कमी भी ठीक हो जाएगी।
वृषभः मां सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए उनको सफेद चंदन का तिलक लगाएं और फूल अर्पित करें। ऐसा करने से ज्ञान में बढ़ोतरी होने के साथ ही जो भी समस्याएं हैं, उनसे निजात मिलेगी।
मिथुन: मां सरस्वती को हरे रंग का पेन (कलम) अर्पित करें और उससे ही अपने सभी कार्यों को पूरा करें। ये कार्य आपकी लिखने संबंधी समस्याएं समाप्त करने में मददगार होगा।
कर्क: मां सरस्वती को खीर का भोग लगाना चाहिए। संगीत क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले छात्रों को ऐसा करने से बहुत अधिक फायदा होगा।
सिंह: मां सरस्वती की पूजा के दौरान गायत्री मंत्र का जाप जरूर करें। ऐसा करने से विदेश में रहकर पढ़ाई करने वाले छात्रों की इच्छा पूरी हो जाएगी।
कन्या: गरीब बच्चों को पढ़ने की सामाग्री बांटें, जिसमें पेन, पेंसिल किताबें आदि शामिल हों। अगर आप ऐसा करते हैं तो पढ़ाई में आ रही आपकी परेशानी को दूर किया जा सकता है।
तुला: किसी ब्राह्मण को सफेद कपड़े दान में दें। यदि छात्र ऐसा करते हैं तो उन्हें वाणी से जुड़ी किसी परेशानी से निजात मिल सकती है और वाणी में मधुरता आएगी।
वृश्चिक: अगर याददाश्त से संबंधित कोई परेशानी है तो इसे आप मां सरस्वती की आराधना करके दूर कर सकते हैं। मां सरस्वती की पूजा के बाद लाल रंग का पेन उन्हें अर्पित करें।
धनु: पीले रंग की कोई मिठाई अर्पित करें। इससे आपकी निर्णय लेने की क्षमता बढ़ जाएगी। साथ ही आपकी उच्च शिक्षा की इच्छा भी मां सरस्वती अवश्य पूरी करेंगी।
मकर: निर्धन व्यक्तियों को सफेद रंग का अनाज दान करें। ऐसा करने से मां सरस्वती आपके बुद्धिबल का विकास करेंगी।
कुंभ: गरीब बच्चों को स्कूल बैग और दूसरी जरूरी चीजें दान करें। मां सरस्वती की कृपा आप पर बनी रहेगी और आपका आत्म विश्वास भी बढ़ेगा।
मीन: छोटी कन्याओं को पीले रंग के कपड़े दान करें। इससे आपके करियर में आने वाली समस्याओं का निवारण होगा। आपके ऊपर मां सरस्वती का आशीर्वाद बना रहेगा।
- मदन गुप्ता सपाटू, #-458, सैक्टर-10, पंचकूला। मो-9815619620