आज की कविताः अनेकता में एकता-हिन्द की विशेषता


एकता चिल्लाई इक दिन
सुनो-सुनो मेरी बात
नहीं रहोगे मिलजुल कर
तो शत्रु देंगे मात।

मैं तो राष्ट्र हितैषी हूं
सुनो सभी मेरी बात
यदि करोगे भक्ति मेरी
सदा मैं दूंगी साथ।

राष्ट्र के हर मानव से कह दो
करे मेरा सम्मान
मैं जिताऊंगी तुम्हें
इस बात का रखना ध्यान।

राष्ट्र के हित के लिए
मुझे कवच बनाओ
साधना से मेरी तुम
मुझको साध जाओ।

एकता में ही संबल है
जिस देश में नहीं, वो निर्बल है
ये कैसी आजादी है
हर ओर बर्बादी है
जात और पात भी फैली है
छुआ-छूत भी बाकी है।

एकता है राष्ट्र का आधार
न थोपो उस पर साम्प्रदायिक विचार
एकता है अंत दुखों का
इसमें ही कल्याण अपनों का
अनेकता में एकता है
मेरे भारत की विशेषता।

यही पाठ हमने पढ़ा
और सबको पढ़ाया है
किंतु प्रत्यक्ष में इसका
कहीं न दर्शन पाया है।

इतिहास भी गवाह है
शक्ति मेरी अपार है
एकता ही करेगी
राष्ट्र का बेड़ा पार है।

  • कवियत्री डॉ. प्रज्ञा शारदा, चंडीगढ़। 9815001467
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