हर बात तुम्हारे साथ थी जो,
हर बात हमारे साथ भी है,
कुछ पल भर को ठहर गई ,
कुछ बची खुची भी निकल गई।
जिंदगी तुम नाजुक हो,
पर मै भी पत्थरदिल तो नहीं,
तुम सहम सहम के कटती हो ,
मैं ठिठकूं ठहरूं पर रुकूं नहीं।
मैं हर ठोकर पर फिसल रही,
तुम हर ठोकर पर संभल रही,
मैं कंकर ,पत्थर, पहाड़,
तुम रेत के जैसी निकल रही।
इक ऐहद किया है इस पर,
तुम रुको मगर मैं चलती हूं,
तुम रुक गईं तो हारोगी,
मैं रुकी तो फिर भी जीतूंगी।
निर्णय कर अब बस एक,
तुम अपना दाम बता ही दो ,
तुम काम किसी के आओगी ?
या मूल्यहीन कट जाओगी ?
इक बात तुम्हारे साथ थी जो,
इक बात हमारे साथ भी है,
तुम अपना मूल्यांकन कर लो,
मैंने भी हट लगाई है।।
- स्मिता सेठी, निदेशक, समाज कल्याण विभाग, जम्मू।