आज की कविताः तीखे शब्द

तीखे और कड़वे शब्द
हैं कमजोर की निशानी,
लेकिन समझ नहीं पाता है
कोई भी अभिमानी।

पैर फिसल जाने पर इंसां
बच सकता है लेकिन,
जुबां फिसल जाए तो
बचना होता है नामुमकिन।

जब कमाकर खाय मनुष्य
तो कहलाये संस्कृति,
जब वो छीन कर खाता है
तो बन जाय विकृति।

मरणोपरांत ना सोचे, बोले
ना कुछ ही कर पाए,
जीवित जो ना सोचे, बोले
वो मृतप्रायः कहलाए।

नाव रहे गर पानी में तो
सबको पार लगाए,
पानी नाव में आ जाए
तो सबको साथ डुबाए।

समय के रहते काम करो तो
सब कुछ सम्पन्न होए,
समय के रहते सोए रहो तो
क्यों अभाव को रोए।

  • डॉ. प्रज्ञा शारदा, 401/43 ए. चंडीगढ़।
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