आज की कविताः मैं रिश्ते निभा नहीं पाई…
कोशिश तो बहुत की मैंनेमोहब्बत भी बहुत निभाईखुद से बहुत किया झगड़ाचुप रही कुछ बोल न पाईसुनती रही चुपचाप सदाकभी आवाज नहीं उठाईइसीलिए अच्छी कहलाई। कहलाई मैं बुरी तभीज्यों ही थी आवाज उठाईक्या करती इज्जत थी प्यारीआत्म सम्मान से भरी खुमारीगिरगिट से बदलते रंगबेगैरतों के पाखंडमेरी गैरत भुला न पाईउनके झूठे वादे कसमेंभीतर अपने उतार … Continue reading आज की कविताः मैं रिश्ते निभा नहीं पाई…
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