जब कभी आभास हुआ है,
भीड़ में तन्हा होने का,
बहलाया है कह के खुद को,
मैं ही हूं, मैं ही तो हूं।
जब कभी हताश हुआ मन,
असफल प्रयास के होने पर,
बहलाया है कह के खुद को,
मैं ही हूं, मैं ही तो हूं।
जब कभी टूटा है यह दिल,
अपनों के अपशब्दों से,
बहलाया है कह के खुद को,
मैं ही हूं ,मैं ही तो हूं।
सन्नाटा जब लगा लुभाने,
शोर-शराबा जहर लगे,
बहलाया है कह के खुद को,
मैं ही हूं ,मैं ही तो हूं।
भटके मन ने पूछ लिया जब
आगे का रास्ता है क्या ?
बहलाया है कह के खुद को,
यह ही है, यह ही तो है।
- स्मिता सेठी, जिला समाज कल्याण अधिकारी, जम्मू।