14 MARCH: स्वास्थ्य क्षेत्र को सर्वांगीण और समावेशी बनाने के प्रयासों में केंद्र सरकार निरंतर प्रयास कर रही है। इसी दिशा में केंद्र सरकार ने एक और बड़ा कदम उठाया है। नेशनल एंट्रेंस एलिजिबिलिटी टेस्ट (नीट) की परीक्षा को लेकर अधिकतम आयु सीमा का हटा दिया गया है। सरकार के इस फैसले से अब उन लोगों के ख्वाब भी पूरे हों सकेंगे जो उम्र निकलने के बाद भी डॉक्टर बनने की चाह रखते हैं।
भारत में MBBS में प्रवेश के लिए NEET एकमात्र प्रवेश परीक्षा
आपकी जानकारी के लिए बताना चाहेंगे कि भारत में MBBS में प्रवेश के लिए NEET एकमात्र प्रवेश परीक्षा है। इस परीक्षा को पास करने वाले अभ्यार्थी डॉक्टर बनते हैं। नीट भारत में एमबीबीएस, बीडीएस और अन्य संबद्ध पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए एकमात्र प्रवेश परीक्षा है। इस एग्जाम को NTA कंडक्ट करती है।
मेडिकल शिक्षा में बड़े सुधार को लेकर प्रतिबद्ध केंद्र सरकार
स्वास्थ्य क्षेत्र को और अधिक बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार निरंतर प्रयासरत्त है। इसके लिए सरकार ने देशभर में मेडिकल शिक्षा को लेकर तमाम बड़े परिवर्तन किए हैं। दरअसल, केंद्र सरकार देश की जनता से किए अपने वादों को पूरा कर रही है। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि पीएम मोदी के नेतृत्व में गठित केंद्र सरकार भारत में मेडिकल शिक्षा क्षेत्र में बड़े सुधार को लेकर प्रतिबद्ध है। इसी क्रम में अभी तक देश में मेडिकल शिक्षा जगत में कई बड़े बदलाव भी किए जा चुके हैं। उन सभी बड़े बदलावों में से एक यह भी है कि अब आप किसी भी उम्र में डॉक्टर बन सकते हैं। अब विस्तार से जानते हैं कि कैसे हुआ यह संभव…
किसी भी उम्र में बन सकते हैं डॉक्टर
बचपन में यदि डॉक्टर बनने का सपना देखा हो और वह पूरा नहीं हो पाया हो तो केंद्र सरकार की यह पहल बहुत काम आएगी। जी हां, अब आप किसी भी उम्र में डॉक्टर बन सकते हैं। डॉक्टर बनने के लिए सिर्फ आपको नेशनल इंट्रेंस इलिजिबिलिटी टेस्ट (नीट) की परीक्षा पास करनी होगी। इसके बाद आप एमबीबीएस की पढ़ाई कर सकते हैं।
नीट यूजी एग्जाम-2022 के लिए अधिकतम आयु सीमा हटाई गई
ज्ञात हो, अभी तक अधिकतम 25 वर्ष की उम्र तक ही नीट की परीक्षा दे सकते थे, लेकिन अब केंद्र सराकर ने अधिकतम उम्र की सीमा खत्म कर दी है। यानि अब नीट (NEET) के लिए कोई एज-बार नहीं है, जिसके तहत 17 वर्ष के बाद किसी भी उम्र तक परीक्षा दी जा सकती है। नीट देने के लिए 12वीं का छात्र होना या 12वीं पास होना जरूरी है। साथ ही 12वीं कक्षा में जनरल उम्मीदवारों को फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी मिलाकर कम से कम 50 फीसदी अंक प्राप्त होने चाहिए। वहीं, एससी, एसटी, ओबीसी कैटेगरी के उम्मीदवारों का 12वीं में न्यूनतम 40 फीसदी अंकों के साथ पास होना जरूरी है।
राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग ने लिया फैसला
यह आदेश नीट परीक्षा 2022 से ही लागू करने का निर्णय लिया गया है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने नेशनल मेडिकल कमिशन (एनएमसी) से पूछा था कि क्या आयु से संबंधित कोई निर्णय लिया गया है, इसके बाद एनएमसी ने एनटीए को जवाब दिया और कहा कि एनएमसी की चौथी बैठक अक्टूबर-2021 में हुई थी उसमें कहा गया था कि नीट परीक्षा देने की अधिकतम उम्र की सीमा तय करने की जरूरत नहीं है। इस संबंध में जल्द ही आधिकारिक तौर पर नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया जाएगा। मेडिकल क्षेत्र में सुधारों की पहल को राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) आगे बढ़ाएगा।
ज्ञात हो, देश में एमबीबीएस सीटों को 2014 के 54,000 की तुलना में 2020 में 48 प्रतिशत बढ़ाकर पहले ही 80,000 किया जा चुका है। इसी अवधि के दौरान परास्नातक के लिए सीटों की संख्या में 79 प्रतिशत की वृद्धि की गई है और यह 24,000 से बढ़कर अब 54,000 हो गई है।
राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के बारे में…
चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में केंद्र सरकार द्वारा ”25 सितंबर 2020” को राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) के संविधान सहित बड़े बदलाव किए गए हैं। साथ ही 4 स्वायत्त बोर्डों का गठन भी किया गया है। इसके साथ ही दशकों पुरानी संस्था भारतीय चिकित्सा परिषद को डिसॉल्व यानि खत्म कर दिया गया। एनएमसी के साथ-साथ स्नातक और परास्नातक चिकित्सा शिक्षा बोर्डों, चिकित्सा आकलन और मानक बोर्ड, और नैतिक एवं चिकित्सा पंजीकरण बोर्ड का गठन किया गया, जो एनएमसी को दिन-प्रतिदिन के कामकाज में मदद करते हैं।
चिकित्सा शिक्षा में सुधार के लिए बड़ा कदम
इस ऐतिहासिक सुधार के चलते भारतीय चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता आएगी और गुणवत्तापूर्ण उत्तरदायी व्यवस्था बनेगी। इसके तहत सबसे बड़ा बदलाव यह आया है कि नियामक नियंत्रक का चयन योग्यता के आधार पर किया जाएगा ना कि चुने गए नियामक नियंत्रक द्वारा। महिला एवं पुरुषों के शुचिता पूर्ण एकीकरण, व्यवसायीकरण, अनुभव और व्यक्तित्व को महत्व मिलेगा इससे चिकित्सा शिक्षा में और सुधार होंगे। इस संबंध में अधिसूचना 24 सितंबर 2020 को जारी कर दी गई थी।
एनएमसी का मुख्य कार्य
एनएमसी का मुख्य कार्य नियामक व्यवस्था को सुव्यवस्थित करना, संस्थाओं का मूल्यांकन, एचआर आकलन और शोध पर अधिक ध्यान देना है। इसके अलावा एमबीबीएस के उपरांत कॉमन फाइनल ईयर परीक्षा के तौर-तरीकों पर काम करना है जिसका उद्देश्य पंजीकरण और परास्नातक प्रवेश के लिए सेवाएं देना, निजी चिकित्सा विद्यालयों के शुल्क ढांचे का नियमन करना और सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराने के बारे में मानक तय करना जिसमें सीमित सेवा लाइसेंस दिया जाएगा।
यहां उल्लेखनीय है कि अगस्त 2019 में संसद ने राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग अधिनियम 2019 को पारित किया था। ”25 सितंबर 2020” से एनएमसी अधिनियम के प्रभावी होने के साथ ही भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम 1956 को खत्म कर दिया गया है और भारतीय चिकित्सा परिषद द्वारा नियुक्त किए गए शासक मंडल को भी तत्काल प्रभाव से खत्म कर दिया गया।
लक्ष्य और दूरदर्शिता
राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के उद्देश्यों में गुणवत्तापूर्ण और वहनीय चिकित्सा शिक्षा तक पहुंच में सुधार करना, (ii) देश के सभी हिस्सों में पर्याप्त और उच्च गुणवत्ता वाले चिकित्सा पेशेवरों की उपलब्धता सुनिश्चित करना; (iii) समान और सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा देना जो सामुदायिक स्वास्थ्य परिप्रेक्ष्य को प्रोत्साहित करती है और सभी नागरिकों के लिए चिकित्सा पेशेवरों की सेवाओं को सुलभ बनाती है; (iv) चिकित्सा पेशेवरों को अपने काम में नवीनतम चिकित्सा अनुसंधान को अपनाने और अनुसंधान में योगदान करने के लिए प्रोत्साहित करता है; (v)समय-समय पर पारदर्शी तरीके से चिकित्सा संस्थानों का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन; (vi)भारत के लिए एक चिकित्सा रजिस्टर बनाए रखना; (vi)चिकित्सा सेवाओं के सभी पहलुओं में उच्च नैतिक मानकों को लागू करना; (vii)एक प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र हो शामिल है।