इस बार 26 और 27 अक्तूबर दोनों दिन मनाएं भाई दूज, जानिए क्या है शुभ मुहूर्त

bhai dooj इस साल लगभग हर त्योेहार में तिथियों, दिनों और उनके शुभ मुहूर्तों के निर्धारण में कन्फ्यूजन, असमंजस और मतभेद होते रहे हैं। दीवाली के पंचपर्वों के अंतिम त्योहार भाई दूज (bhai dooj) में भी यही स्थिति बन गई है कि भातृ द्वितीया का पर्व बुधवार को मनाएं या वीरवार को ? जैसा कि पिछले लेखों में भी हमने कई बार कहा है कि हिन्दू धर्म बहुत लचीला है, सनातन है, अतः इसमें त्योहार के मर्म, उसमें निहित भावनाओं का पालन करते हुए आप अपनी सुविधा तथा शुभ समय के अनुसार मना सकते हैं। आधुनिक समय की दौड़ में संस्कारों और ज्योतिषीय गणनाओं दोनों का ही सम्मान करते हुए त्योहार मनाएं। हमारा भारतीय ज्योतिष चंद्रमा की गति पर आधारित है, जो 27 घंटों मेें राशि बदल लेता है। इसके कारण चंद्र से संबंधित तिथि का समय हर त्योहार में आगे पीछे हो जाता है। कई बार कुछ त्योहारों का निर्णय सूर्य उदय के समय और दिन से किया जाता है और उत्सव दो दिन के हो जाते हैं। इसी आधार पर इस बार आप भाई-बहन का टीकोत्सव 26 अक्तूबर बुधवार और 27 अक्तूबर वीरवार दोनों दिन अपनी सुविधानुसार मना सकते हैं। भाई दूज (bhai dooj) पर तिलक का शुभ समय हम बता देते हैं, फिर भी आप अपनी सुविधानुसार दोनों दिन भ्रातृ प्रेम निभा सकते हैं।

26 अक्तूबर बुधवार- दोपहर 12ः14 से 12ः47 तक।
27 अक्तूबर वीरवार- सुबह 11ः07 से दोपहर 12ः47 तक।
भाई दूज की परंपरागत जानकारी भी होनी चाहिए। हमारे देश में पारिवारिक एवं सामाजिक संबंधों को अत्यंत महत्वपूर्ण एवं स्थाई माना गया है। इसीलिए हमारे हर त्योहार-पर्व रोजाना कोई न कोई संदेश लेकर आते हैं। जहां होली व दीवाली समाज को बांधते हैं, वहीं रक्षा बन्धन और भाई दूज परिवारों को एक सूत्र में बांधे रखते हैं आधुनिक युग में भाई-बहन एक-दूसरे की पूर्ण सुरक्षा का भी ख्याल रखें। नारी सम्मान हो। इससे समाज में महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों में कमी आएगी। भाई-बहन को स्नेह, प्रेम, कर्तव्य एवं दायित्व में बांधने वाला राखी का पर्व जब भाई का मुंह मीठा करा के और कलाई पर धागा बांधकर मनाया जाता है तो रिश्तों की खुशबू सदा के लिए बनी रहती है और संबंधों की डोर में मिठास का अहसास आजीवन परिलक्षित होता रहता है। फिर इन संबंधों को ताजा करने का अवसर आता है भैया दूज पर। राखी पर बहन भाई के घर राखी बांधने जाती है तो भैया दूज पर भाई बहन के घर तिलक करवाने जाता है। ये दोनों त्योहार भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं, जो आधुनिक युग में और भी महत्वपूर्ण एवं आवश्यक हो गए हैं, जब भाई और बहन पैतृक संपत्ति जैसे विवादों या अन्य कारणों से अदालत के चक्कर काटते नजर आते हैं।

भाई दूज (यम द्वितीया) कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष में द्वितीया तिथि जब अपराह्न (दिन का चौथा भाग) के समय आए तो उस दिन भाई दूज मनाई जाती है। यदि दोनों दिन अपराह्न के समय द्वितीया तिथि लग जाती है तो भाई दूज अगले दिन मनाने का विधान है। इसके अलावा यदि दोनों दिन अपराह्न के समय द्वितीया तिथि नहीं आती है तो भी भाई दूज अगले दिन मनाई जानी चाहिए। ये तीनों मत अधिक प्रचलित और मान्य हैं। एक अन्य मत के अनुसार अगर कार्तिक शुक्ल पक्ष में जब मध्याह्न (दिन का तीसरा भाग) के समय प्रतिपदा तिथि शुरू हो तो भाई दूज मनानी चाहिए। हालांकि यह मत तर्क संगत नहीं बताया जाता है। भाई दूज के दिन दोपहर के बाद ही भाई को तिलक व भोजन कराना चाहिए। इसके अलावा यम पूजन भी दोपहर के बाद किया जाना चाहिए।

भाई दूज या यम द्वितीया पर क्या करें ?

  • सुविधानुसार, गंगा या यमुना में स्नान कर सकते हैं।
  • भाई की दीर्घायु के लिए पूजा-अर्चना, प्रार्थना करें।
  • भाई बहन के यहां जाए और तिलक कराए। भ्राताश्री बहना के यहां ही भोजन करे। इस परंपरा से आपसी सौहार्द बढ़ता हैै। आपसी विवादों तथा वैमनस्य में कमी आती है। भाई कोई शगुन, आभूषण या गिफ्ट बदले में दे। बहन भी भाई को मिठाई और एक खोपा देकर विदा करे।

शास्त्रों के अनुसार यम द्वितीया यानी भाईदूज के दिन यमराज अपनी बहन के घर दोपहर के समय आए थे और बहन की पूजा स्वीकार करके उनके घर भोजन किया था। वरदान में यमराज ने यमुना से कहा था कि भाई दूज यानी यम द्वितीया के दिन जो भाई अपनी बहनों के घर आकर उनकी पूजा स्वीकार करेंगे और उनके घर भोजन करेंगे उनको अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा।

भाईदूज के दिन किसकी करें पूजा
शास्त्रों के अनुसार भाईदूज के दिन यमराज, यमदूज और चित्रगुप्त की पूजा करनी चाहिए। इनके नाम से अर्घ्य और दीपदान करना चाहिए।

पूजा सामग्री
कुमकुम, पान, सुपारी, फूल, कलावा, मिठाई, सूखा नारियल और अक्षत आदि। तिलक करते वक्त इन चीजों को पूजा की थाली में रखना न भूलें।

क्यों मनाया जाता है भाई दूज?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्यदेव और उनकी पत्नी छाया की दो संतानें थीं, यमराज और यमुना। दोनों में बहुत प्रेम था। बहन यमुना हमेशा चाहती थीं कि यमराज उनके घर भोजन करने आया करें लेकिन यमराज उनकी विनती को टाल देते थे। एक बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि पर दोपहर में यमराज उनके घर पहुंचे। यमुना अपने घर के दरवाजे पर भाई को देखकर बहुत खुश हुईं। इसके बाद यमुना ने मन से भाई यमराज को भोजन करवाया। बहन का स्नेह देखकर यमदेव ने उनसे वरदान मांगने को कहा। इस पर उन्होंने यमराज से वचन मांगा कि वो हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर भोजन करने आएं। साथ ही मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई का आदर-सत्कार के साथ टीका करें, उनमें यमराज का भय न हो। तब यमराज ने बहन को यह वरदान देते हुआ कहा कि आगे से ऐसा ही होगा। तब से यही परंपरा चली आ रही है। इसलिए भैयादूज वाले दिन यमराज और यमुना का पूजन किया जाता है।

-मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, चंडीगढ़-9815619620

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