उमंग अभिव्यक्ति मंच ने किया सावन मास पर काव्य गोष्ठी का आयोजन
PANCHKULA, 16 JULY: उमंग अभिव्यक्ति मंच पंचकूला ने ‘आया सावन झूम के’ विषय पर आज एक ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया, जिसमें दूसरे शहरों सहित कनाडा से भी महिलाओं ने हिस्सा लिया। मंच की फाउंडर एवं प्रख्यात कवियत्री श्रीमती नीलम त्रिखा ने बताया कि उमंग अभिव्यक्ति मंच महिलाओं का एक ऐसा सशक्त ग्रुप है, जो हमेशा अनेक जागरूक विषयों पर नियमित रूप से कार्यक्रमों का आयोजन पिछले 10 वर्षों से करता आ रहा है। इन कार्यक्रमों में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के कवि व कवित्रियां हिस्सा लेते हैं। आज की काव्य गोष्ठी में समाजसेविका व शिक्षाविद् श्रीमती बेनू राव अतिथि के रूप में शामिल हुईं। उन्होंने नारी मन सहित महिलाओं की दशा व दिशा पर भी चर्चा की। नीलम त्रिखा ने बताया कि बदलते परिवेश में महिलाओं ने हर क्षेत्र में बहुत सशक्त भूमिका निभाई है और वह हर जगह कामयाब भी हुई हैं। इसके अलावा श्रीमती नीलम त्रिखा, कुसुम धीमान (कनाडा), रेणू अब्बी रेणू, सोनिमा सत्या, सुधा बत्रा, सीता श्याम, सुमन अध्यापिका, नीरजा शर्मा, संगीता शर्मा कुंद्रा, सरोज चोपड़ा, श्रीमती कृष्णा आर्य (नारनौल), महक शर्मा, सुनीता आदि कवियत्रियों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कर सावन का स्वागत किया।
कार्यक्रम की शुरुआत श्रीमती नीलम त्रिखा ने हरियाणा के लोकगीत, गालियों तो गलियों री ननदी मनरा फिरै, री ननदी मनरै न लियो री बुला चूड़ा तो हाथी दांत का से की। उन्होंने अपनी एक रचना प्रस्तुत करते हुए कहा-
चलो पुरानी बातों को आज भुलाया जाए,
दर्द उठता है जो सीने में न दबाया जाए।
कह रही है सावन की यह रिमझिम फुहारें,
आज बच्चा बनकर बरसात में नहाया जाए।।
बेनू राव ने एक गीत, सावन मास आयो री सखी प्रस्तुत किया। इसके बाद नारनौल से जुड़ीं डॉक्टर कृष्णा आर्य ने लोकगीत के माध्यम से कहा-
झूला तो झूलण गई राधिका, जी कोई गावै गीत मल्हार, झूले राधिका।
नान्हि नान्हि बूंदिया पड़ण लगी जी कोई बरसै मूसलधार, झूले राधिका।।
इसके बाद सुधा बत्रा पानीपत ने सुनाया-
सावन आया झूमकर,
धरती की प्यास बुझाने,
धरती, अम्बर का स्नेह छलकाने,
सबके दिलों को ठंडक पहुंचाने,
आओ सखियों झूला झूले कान्हा ने मधुर बंसी बजाई।
नीरजा शर्मा मोहाली ने अपनी रचना में कहा-
सावन का महीना, पींगें पड़ गई हर ओर,
आओ सखी झूला झूलें मच गया यह शोर।
कुसुम धीमान कनाडा ने सावन के बारे में कहा-
खूब सजे हैं बाजार सभी, घेवर की भरमार है,
पायल बिछुए कुमकुम बिंदी, नारी का अधिकार है।
झूला झूलें मिलकर सखियां, सावन की बौछार है,
छम-छम करती बरखा आई, बूंदों का त्योहार है।।
सोनिमा सत्या ने धरती आसमान की मोहब्बत दर्शाते हुए कहा-
धरती की मोहब्बत है जो आसमान को बुलाती है, बारिश के जरिए ही वह आसमान से मिल जाती है।
सुमन चंडीगढ़ ने कहा-
मेरा पहला सावन देख-देख कर तेरा मेरा प्यार साथिया,
सावन में बादलों ने नीर का अंबार लगाया था,
उन झड़ियों को रोक कर छत पर हमने स्वीमिंग पूल बनाया था।
इस गोष्ठी में संगीता शर्मा ने जहां दोहे सुनाए, वहीं रेणू अब्बी तथा सरोज चोपड़ा ने गीत सुनाया।