अलौकिक, असाधारण, अविस्मरणीय, अविश्वसनीय है श्री महाकाल लोक

12 OCTOBER: भारत हमेशा से ही विश्वगुरु रहा है, जिसके केंद्र में सर्वदा अध्यात्म विराजमान रहा और ये इसलिए संभव हो पाया कि भारत की सनातन संस्कृति हजारों साल पुरानी है। भारत की वर्तमान केंद्र सरकार भी इस सांस्कृतिक पहचान को कायम रखने के लिए पूरजोर कोशिश कर रही है। पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार ने भारत की सांस्कृतिक विरासत और धरोहरों के पुनरुद्धार के लिए जो कदम उठाए हैं, वे काफी सराहनीय हैं। श्री महाकाल लोक का लोकार्पण के दौरान पीएम ने अपने भाषण में कहा कि आजादी के बाद पहली बार चारधाम प्रोजेक्ट के जरिए हमारे चारों धाम ऑल वेदर रोड्स से जुड़ने जा रहे हैं। इतना ही नहीं, आजादी के बाद पहली बार करतारपुर साहिब कॉरिडॉर खुला है, हेमकुंड साहिब रोपवे से जुड़ने जा रहा है। इसी तरह, स्वदेश दर्शन और प्रासाद योजना से देशभर में हमारी आध्यात्मिक चेतना के ऐसे कितने ही केन्द्रों का गौरव पुनर्स्थापित हो रहा है। और अब इसी कड़ी में, ये भव्य, अतिभव्य ‘महाकाल लोक’ भी अतीत के गौरव के साथ भविष्य के स्वागत के लिए तैयार हो चुका है। पीएम का यह संदेश देशवासियों को भरोसा दिलाने के लिए काफी है कि भारत की संस्कृति और सभ्यता को अक्षुण्ण रखने के लिए वे कितने कृत संकल्प हैं।

जन-जन का विकास है पर्यटन स्थलों का विकास

पिछले सात-आठ सालों में यह साफ आभास होने लगा है कि देश में पर्यटन स्थलों का विकास जन-जन के विकास से जुड़ने जा रहा है। बनारस का विश्वनाथ मंदिर हो या अयोध्या का राम मंदिर, सोमनाथ का मंदिर या फिर उज्जैन का श्री महाकाल लोक, ये सिर्फ मंदिर नहीं, भारत के आस्था हैं, देश के विकास के परिचायक हैं। जरा पीएम ने श्री महाकाल लोक के लोकार्पण के दौरान उनके भाषण को सुनिये, जिससे साफ पता चल जाता है कि भारत किस तरह से सांस्कृतिक रूप से दिन-प्रतिदिन समृद्धि पा रहा है। पीएम ने अपने भाषण में कहा कि आज जब हम उत्तर से दक्षिण तक, पूरब से पश्चिम तक अपने प्राचीन मंदिरों को देखते हैं, तो उनकी विशालता, उनका वास्तु हमें आश्चर्य से भर देता है। कोणार्क का सूर्य मंदिर हो या महाराष्ट्र में एलोरा का कैलाश मंदिर, ये विश्व में किसे विस्मित नहीं कर देते? कोणार्क सूर्य मंदिर की तरह ही गुजरात का मोढेरा सूर्य मंदिर भी है, जहां सूर्य की प्रथम किरणें सीधे गर्भगृह तक प्रवेश करती हैं। इसी तरह, तमिलनाडू के तंजौर में राजाराज चोल द्वारा बनवाया गया बृहदेश्वर मंदिर है। कांचीपुरम में वरदराजा पेरुमल मंदिर है, रामेश्वरम में रामनाथ स्वामी मंदिर है। बेलूर का चन्नकेशवा मंदिर है, मदुरई का मीनाक्षी मंदिर है, तेलंगाना का रामप्पा मंदिर है, श्रीनगर में शंकराचार्य मंदिर है। ऐसे कितने ही मंदिर हैं, जो बेजोड़ हैं, कल्पनातीत हैं, ‘न भूतो न भविष्यति’ के जीवंत उदाहरण हैं। हम जब इन्हें देखते हैं तो हम सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि उस दौर में, उस युग में किस तकनीक से ये निर्माण हुये होंगे। हमारे सारे प्रश्नों के उत्तर हमें भले ही न मिलते हों, लेकिन इन मंदिरों के आध्यात्मिक सांस्कृतिक संदेश हमें उतनी ही स्पष्टता से आज भी सुनाई देते हैं। जब पीढ़ियां इस विरासत को देखती हैं, उसके संदेशों को सुनती हैं, तो एक सभ्यता के रूप में ये हमारी निरंतरता और अमरता का जरिया बन जाता है।

राष्ट्र को समर्पित

पीएम मोदी ने मध्य प्रदेश के उज्जैन में श्री महाकाल लोक परियोजना का पहला चरण राष्ट्र को समर्पित कर दिया है। जब प्रधानमंत्री नंदी द्वार से श्री महाकाल लोक तक पहुंचे तो पारंपरिक धोती पहने हुए थे। आंतरिक गर्भगृह में पहुंचने के बाद प्रधानमंत्री ने पूजा और दर्शन किए और मंदिर के पुजारियों की उपस्थिति में भगवान श्री महाकाल के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना की। आरती करने और पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद प्रधानमंत्री आंतरिक गर्भगृह के दक्षिणी कोने में बैठ गए और मंत्रों का जाप करते हुए ध्यान किया। प्रधानमंत्री नंदी प्रतिमा के बगल में भी बैठे और हाथ जोड़कर प्रार्थना की।

प्रधानमंत्री ने श्री महाकाल लोक राष्ट्र को समर्पित करते हुए पट्टिका का अनावरण किया। प्रधानमंत्री ने मंदिर के संतों से भी मुलाकात की और उनसे संक्षिप्त बातचीत की। इसके बाद प्रधानमंत्री ने महाकाल लोक मंदिर परिसर का दौरा किया, वहां भ्रमण किया और सप्तऋषि मंडल, मंडपम, त्रिपुरासुर वध और नवगढ़ को देखा। प्रधानमंत्री ने भित्ति चित्र देखे जिनमें कई कहानियां उकेरी हुई थीं। इनमें शिव पुराण में वर्णित सृजन का कार्य, गणेश के जन्म, सती और दक्ष की कहानियां शामिल थीं। श्री मोदी ने बाद में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम देखा जिसे इस अवसर पर प्रदर्शित किया गया और मानसरोवर में मलखंब प्रदर्शन भी देखा। इसके बाद उन्होंने भारत माता मंदिर के दर्शन किए।

चलिए जानते हैं यह परियोजना तीर्थयात्रियों को कैसे अपने संस्कृति और अध्यात्म को लेकर गर्व की अनुभूति करानेवाला सिद्ध होगा।

श्री महाकाल लोक का महत्व

महाकाल लोक परियोजना का पहला चरण, विश्व स्तरीय आधुनिक सुविधाएं प्रदान करके यहां मंदिर में आने वाले तीर्थयात्रियों के अनुभव को समृद्ध करने में मदद करेगा। इस परियोजना का उद्देश्य इस पूरे क्षेत्र में भीड़भाड़ को कम करना और विरासत संरचनाओं के संरक्षण और जीर्णोद्धार पर विशेष जोर देना है।

लागत

इस परियोजना के तहत मंदिर परिसर का करीब सात गुना विस्तार किया जाएगा। इस पूरी परियोजना की कुल लागत लगभग 850 करोड़ रुपये है। इस मंदिर का मौजूदा फुटफॉल वर्तमान में लगभग 1.5 करोड़ प्रति वर्ष है, इसके दोगुना होने की उम्मीद है। इस परियोजना के विकास की योजना दो चरणों में बनाई गई है।

निर्माण

यहां महाकाल पथ में 108 स्तंभ हैं जो भगवान शिव के आनंद तांडव स्वरूप (नृत्य रूप) को दर्शाते हैं। महाकाल पथ के किनारे भगवान शिव के जीवन को दर्शाने वाली कई धार्मिक मूर्तियां स्थापित की गई हैं। इस पथ के साथ-साथ बने भित्ति चित्र शिव पुराण में वर्णित सृजन के कार्य, गणेश के जन्म, सती और दक्ष की कहानियों पर आधारित है। इस प्लाजा का क्षेत्रफल 2.5 हेक्टेयर में फैला हुआ है और एक ये कमल के तालाब से घिरा हुआ है, जिसमें पानी के फव्वारे के साथ शिव की मूर्ति है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सर्विलांस कैमरों की मदद से इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर द्वारा इस पूरे परिसर की चौबीसों घंटे निगरानी की जाएगी।

पीएम मोदी के भाषण के मुख्य अंश

-महाकाल की नगरी उज्जैन के बारे में हमारे यहाँ कहा गया है- “प्रलयो न बाधते तत्र महाकालपुरी” अर्थात्, महाकाल की नगरी प्रलय के प्रहार से भी मुक्त है। हजारों वर्ष पूर्व जब भारत का भौगोलिक स्वरूप आज से अलग रहा होगा, तब से ये माना जाता रहा है कि उज्जैन भारत के केंद्र में है। एक तरह से, ज्योतिषीय गणनाओं में उज्जैन न केवल भारत का केंद्र रहा है, बल्कि ये भारत की आत्मा का भी केंद्र रहा है।

-उज्जैन के क्षण-क्षण में,पल-पल में इतिहास सिमटा हुआ है, कण-कण में आध्यात्म समाया हुआ है, और कोने-कोने में ईश्वरीय ऊर्जा संचारित हो रही है। यहाँ काल चक्र का, 84 कल्पों का प्रतिनिधित्व करते 84 शिवलिंग हैं। यहाँ 4 महावीर हैं, 6 विनायक हैं, 8 भैरव हैं, अष्टमातृकाएँ हैं, 9 नवग्रह हैं, 10 विष्णु हैं, 11 रुद्र हैं, 12 आदित्य हैं, 24 देवियाँ हैं, और 88 तीर्थ हैं।

-किसी राष्ट्र का सांस्कृतिक वैभव इतना विशाल तभी होता है, जब उसकी सफलता का परचम, विश्व पटल पर लहरा रहा होता है।

-आजादी के अमृतकाल में भारत ने ‘गुलामी की मानसिकता से मुक्ति’ और अपनी ‘विरासत पर गर्व’ जैसे पंचप्राण का आह्वान किया है। इसीलिए, आज अयोध्या में भव्य राममंदिर का निर्माण पूरी गति से हो रहा है। काशी में विश्वनाथ धाम, भारत की सांस्कृतिक राजधानी का गौरव बढ़ा रहा है। सोमनाथ में विकास के कार्य नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। उत्तराखंड में बाबा केदार के आशीर्वाद से केदारनाथ-बद्रीनाथ तीर्थ क्षेत्र में विकास के नए अध्याय लिखे जा रहे हैं। आजादी के बाद पहली बार चारधाम प्रोजेक्ट के जरिए हमारे चारों धाम ऑल वेदर रोड्स से जुड़ने जा रहे हैं। इतना ही नहीं, आजादी के बाद पहली बार करतारपुर साहिब कॉरिडॉर खुला है, हेमकुंड साहिब रोपवे से जुड़ने जा रहा है। इसी तरह, स्वदेश दर्शन और प्रासाद योजना से देशभर में हमारी आध्यात्मिक चेतना के ऐसे कितने ही केन्द्रों का गौरव पुनर्स्थापित हो रहा है। और अब इसी कड़ी में, ये भव्य, अतिभव्य ‘महाकाल लोक’ भी अतीत के गौरव के साथ भविष्य के स्वागत के लिए तैयार हो चुका है।

-‘महाकाल लोक’ में ये परंपरा उतने ही प्रभावी ढंग से कला और शिल्प के द्वारा उकेरी गई है। ये पूरा मंदिर प्रांगण शिवपुराण की कथाओं के आधार पर तैयार किया गया है। आप यहाँ आएंगे तो महाकाल के दर्शन के साथ ही आपको महाकाल की महिमा और महत्व के भी दर्शन होंगे। पंचमुखी शिव, उनके डमरू, सर्प, त्रिशूल, अर्धचंद्र और सप्तऋषि, इनके भी उतने ही भव्य स्वरूप यहाँ स्थापित किए गए हैं। ये वास्तु, इसमें ज्ञान का ये समावेश, ये महाकाल लोक को उसके प्राचीन गौरव से जोड़ देता है। उसकी सार्थकता को और भी बढ़ा देता है।

-हमारे शास्त्रों में एक वाक्य है- ‘शिवम् ज्ञानम्’। इसका अर्थ है, शिव ही ज्ञान हैं। और, ज्ञान ही शिव है। शिव के दर्शन में ही ब्रह्मांड का सर्वोच्च ‘दर्शन’ है। और, ‘दर्शन’ ही शिव का दर्शन है। इसलिए मैं मानता हूँ, हमारे ज्योतिर्लिंगों का ये विकास भारत की आध्यात्मिक ज्योति का विकास है, भारत के ज्ञान और दर्शन का विकास है। भारत का ये सांस्कृतिक दर्शन एक बार फिर शिखर पर पहुँचकर विश्व के मार्गदर्शन के लिए तैयार हो रहा है।

-भगवान् महाकाल एकमात्र ऐसे ज्योतिर्लिंग हैं जो दक्षिणमुखी हैं। ये शिव के ऐसे स्वरूप हैं, जिनकी भस्म आरती पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। हर भक्त अपने जीवन में भस्म आरती के दर्शन जरूर करना चाहता है।

-जहां महाकाल हैं, वहाँ कालखण्डों की सीमाएं नहीं हैं। महाकाल की शरण में विष में भी स्पंदन होता है। महाकाल के सानिध्य में अवसान से भी पुनर्जीवन होता है। अंत से भी अनंत की यात्रा आरंभ होती है। यही हमारी सभ्यता का वो आध्यात्मिक आत्मविश्वास है जिसके सामर्थ्य से भारत हजारों वर्षों से अमर बना हुआ है। अजरा अमर बना हुआ है।

-भारत के लिए धर्म का अर्थ है, हमारे कर्तव्यों का सामूहिक संकल्प! हमारे संकल्पों का ध्येय है, विश्व का कल्याण, मानव मात्र की सेवा। हम शिव की आराधना में भी कहते हैं- नमामि विश्वस्य हिते रतम् तम्, नमामि रूपाणि बहूनि धत्ते! अर्थात्, हम उन विश्वपति भगवान शिव को नमन करते हैं, जो अनेक रूपों से पूरे विश्व के हितों में लगे हैं।

-हमारे इन तीर्थों ने सदियों से राष्ट्र को संदेश भी दिये हैं, और सामर्थ्य भी दिया है। काशी जैसे हमारे केंद्र धर्म के साथ-साथ ज्ञान, दर्शन और कला की राजधानी भी रहे। उज्जैन जैसे हमारे स्थान खगोलविज्ञान, एस्ट्रॉनॉमी से जुड़े शोधों के शीर्ष केंद्र रहे हैं। आज नया भारत जब अपने प्राचीन मूल्यों के साथ आगे बढ़ रहा है, तो आस्था के साथ साथ विज्ञान और शोध की परंपरा को भी पुनर्जीवित कर रहा है।

-हमें ये भी याद रखना है, ये न भूलें, जहां innovation है, वहीं पर renovation भी है। हमने गुलामी के कालखंड में जो खोया, आज भारत उसे renovate कर रहा है, अपने गौरव की, अपने वैभव की पुनर्स्थापना हो रही है।

error: Content can\\\'t be selected!!