UTTAR PRADESH: उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में पुरातत्व विभाग को पाषाण काल के कई अवशेष मिले हैं। टीम को तीन दर्जन गांवों के सर्वेक्षण में पाषाण काल के उपकरण, औजार, हड्डी, लाक की चूड़ियां, लौह उपकरण और पकी मिट्टी के बर्तनों के अवशेष मिले हैं। यह अनमोल धरोहरें 6000 साल पुरानी हैं जिन्हें पुरातत्व विभाग ने अपने कब्जे में ले लिया है। सर्वेक्षण में बौद्ध काल के पहले से ही सभ्यता होने की बात सामने आयी है। चन्देल काल में जमीन के नीचे ग्रेनाइट पत्थर से बने मंदिर को राजकीय संरक्षण में लेने की कार्यवाही भी विभाग ने शुरू कर दी है।
36 गांवों में हुए सर्वे से मिले कई अवशेष
क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ. एसके दुबे के नेतृत्व में राहुल राजपूत एवं संदीप कुमार सहित अन्य कर्मियों की टीम ने हमीरपुर जिले के मुस्करा विकासखंड क्षेत्र के 36 गांवों का सर्वे किया है। उन्होंने गुरुवार को बताया कि अलरा गौरा से 12वीं सदी की जैन तीर्थंकर की पद्मासनस्थं भग्न प्रतिमा सर्वे के दौरान मिली है। ऐझी गांव से मध्यकालीन पत्थर से निर्मित अस्पष्ट प्रतिमाएं भी मिली है। उत्तर मध्यकालीन तालाब एवं ईंटों से निर्मित मंदिर भी देखा गया हैं जो पुरातत्व की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। इमिलिया गांव में उत्तर मध्यकालीन भव्य मंदिर एवं गणेश की प्रतिमा तथा उमरी गांव में पूर्ण मध्यकालीन प्रतिमाओं के भग्न भाग एवं ईंटों से निर्मित उत्तर मध्यकालीन भव्य मंदिर भी भग्नावस्था में पाया गया है। कंधौली में पूर्व मध्यकाल में निर्मित विष्णु प्रतिमा, हनुमान की अस्पष्ट प्रतिमा का शीर्ष भाग, उत्तर मध्यकालीन सतीपट्ट व करगांव से प्राचीन टीला सर्वे में मिला है। यहां मध्यकालीन वीरपट्ट भी मिला है।
उत्तर मध्यकालीन रामजानकी मंदिर, प्राचीन टीले में मिले पाषाण औजार
चिल्ली गांव की सीमा में स्थित प्राचीन टीले से कृष्ण लेपित पके बर्तन, काला, लाल बर्तन व समकालीन लाल मिट्टी के बर्तनों के अवशेष देखे गये हैं। यहां हनुमान की मध्यकालीन प्रतिमा एवं मध्यकालीन रामजानकी मंदिर भी सर्वे में मिला है। जल्ला गांव में पूर्व मध्यकालीन प्रतिमाओं की धरोहरें मिली हैं। इनमें विष्णु की प्रतिमा का ऊर्ध्व भाग स्पष्ट रूप से देखा गया है। उन्होंने बताया कि तगारी गांव में प्राचीन टीला से पाषाण औजार, हड्डी, एवं लाक की चूड़ियां, लौह उपकरण व लौह मल तथा लाल बर्तनों के अवशेष पुरातत्व की दृष्टि से बड़े ही महत्वपूर्ण हैं। गांव की सीमा में पूर्व मध्यकालीन पत्थर से निर्मित मंदिर स्थित जहां प्रांगण में समकालीन दो भव्य शिव लिंग सर्वे दौरान देखे गये हैं।
नवपाषाण काल की एक सेल्ट व लाल बर्तनों के अवशेष
पुरातत्व अधिकारी के मुताबिक न्यूरिया गांव के बाहर स्थानीय नाले के दोनों ओर स्थित प्राचीन टीला से नव पाषाण कालीन एक सेल्ट एवं लाल बर्तनों के अवशेष पाये गये हैं। टीले के निकट आधुनिक मंदिर में शिवलिंग तथा पूर्व मध्यकालीन प्रतिमाओं के खंडित भाग पड़े पाये गये हैं। गांव में उत्तर मध्यकालीन वीर पट्ट भी देखा गया हैं। वहीं लोदीपुर निवादा में प्राचीन टीले से मध्यकालीन धरोहरें तथा मध्यकालीन मंदिर स्थित है। चंदेलकाल में ग्रेनाइट से निर्मित मंदिर भी भूतल से नीचे निर्मित हैं। मंदिर के गर्भगृह व सोलह स्तंभों पर मंडप बना हैं। यहां उत्तर मध्यकालीन गढ़ी के भी अवशेष व सती पट्ट पुरातत्व की नजर में खास हैं।
बेतवा नदी की घाटी में बसे गांवों में टीले से मिले लघु पाषाण उपकरण
पुरातत्व विभाग की टीम के सर्वे में बेतवा नदी की घाटी में बसे बजेहटा दरिया गांव में प्राचीन टीले से लघु पाषाण काल के उपकरण तथा मध्यकालीन लाल मिट्टी के बर्तनों के अवशेष पाये गये हैं जिन्हें शोध के लिये राजकीय संग्रहालय में रखा गया है। यहां भी मध्यकालीन मंदिर व सतीट्ट देखे गये हैं। बसवारी में पूर्व मध्यकालीन शिवलिंग, हनुमान की भव्य प्रतिमा, उत्तर मध्यकालीन चतुर्मुख शिवलिंग स्थित हैं। बांधुर बुजुर्ग गांव में एक प्राचीन टीला मिला है। बांधुर खुर्द गांव में मंदिरों और प्रतिमाओं के अलावा अंजनी माता की अद्भुत प्रतिमा मिली है। भटरा गांव से प्राचीन टीले में पाषाण काल के उपकरण औजार व लाल मिट्टी के पके बर्तनों के अवशेष पाये गये हैं।
राजकीय संरक्षण के दायरे में आयेगा चंदेलकालीन ग्रेनाइट पत्थर से बना मंदिर
क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी झांसी डॉ. एसके दुबे ने बताया कि हमीरपुर जिले के मुस्करा ब्लाक के 36 गांवों में पुरातात्विक सर्वेक्षण से इस बात की पुष्टि हो गयी है कि यहां पाषाण काल से ही मानव निवास करता आया है। इसके अलावा सर्वेक्षण में तीन ऐसे गांव मिले हैं जहां बौद्ध काल के पहले से ही मानव सभ्यता विद्यमान थी। उन्होंने बताया कि ग्रामों में चंदेलकाल तथा परवर्ती काल केपुरातात्विक अवशेष और धरोहरें मिली हैं। पहाड़ी भिटारी में चंदेल काल में जमीन के नीचे ग्रेनाइट पत्थर से बना मंदिर पुरातत्व की नजर में बहुत ही खास हैं जिसे अब राजकीय संरक्षण में लिये जाने की कार्यवाही शुरू कर दी गयी है। पुरातात्विक सर्वेक्षण में मिली प्राचीन घरोहरों और पाषाण काल के औजार व अवशेषों पर शोध किया जायेगा।