NEW DELHI: राज्यसभा ने देश के प्रमुख बंदरगाहों को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (सार्वजनिक –निजी भागीदारी) के तहत संचालित करने और उन्हें और अधिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिए महापत्तन प्राधिकरण विधेयक-2020 को पारित कर दिया।
बुधवार को इस विधेयक पर हुई चर्चा के बाद इसे सदन की मंजूरी मिल गई। जहाजरानी मंत्री मनसुख मांडविया ने विधेयक पर हुई संक्षिप्त चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि इससे बंदरगाहों के संचालन में विशेषज्ञता आएगी और बंदरगाह के समीप के शहरों का और विकास होगा वे समृद्ध होंगे।
सरकारी बंदरगाह भी ले सकेंगे अधिक उपयोगी निर्णय
चर्चा के दौरान सदस्यों द्वारा बंदरगाहों के निजीकरण की आशंका को खारिज करते हुए मांडविया ने कहा कि इस विधेयक का उद्देश्य सरकार के नियंत्रण में चल रहे बंदरगाहों की कार्यप्रणाली में सुधार करना है। इससे ये बंदरगाह निजी बंदरगाहों के बराबर हो जाएंगे और उनके साथ प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे। इस कानून के बाद सरकारी बंदरगाह भी अधिक उपयोगी निर्णय ले सकेंगे।
इससे पहले यह विधेयक 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था
इससे पहले, विधेयक को 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था और उसके बाद इसे संसदीय स्थायी समिति (पीएससी) को भेजा गया था। साक्ष्य लेने और व्यापक परामर्श करने के बाद जुलाई 2017 में पीएससी ने इस पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। जिसके आधार पर पोत परिवहन मंत्रालय ने 2018 में लोकसभा में विधेयक में आधिकारिक संशोधन पेश किया। हालांकि यह विधेयक पिछली लोकसभा के भंग होने के बाद वैध नहीं रहा।
ये हैं महापत्तन प्राधिकरण विधेयक 2020 की मुख्य विशेषताएं :-
– यह बिल प्रमुख बंदरग्राह ट्रस्ट कानून 1963 की तुलना में ज्यादा सुगठित है क्योंकि अतिच्छादित और अप्रचलित अनुभागों को समाप्त करके अनुभागों की संख्या घटाकर 134 से 76 कर दी गई है।
– नए विधेयक में बंदरगाह प्राधिकरण के बोर्ड की सरल संरचना का प्रस्ताव किया गया है, जिसमें विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले वर्तमान के 17 से 19 की तुलना में 11 से 13 सदस्य ही शामिल होंगे। पेशेवर स्वतंत्र सदस्यों वाला एक कॉम्पैक्ट बोर्ड निर्णय लेने और रणनीतिक योजना को मजबूत करेगा। राज्य सरकार, जिसमें प्रमुख बंदरगाह स्थित है, रेल मंत्रालय, रक्षा और सीमा शुल्क मंत्रालय, राजस्व विभाग के प्रतिनिधि को बोर्ड में सदस्य के तौर पर शामिल करने के अलावा सरकार की तरफ से नामित सदस्य और बड़े बंदरगाह प्रशासन के कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक सदस्य को शामिल करने का प्रावधान किया गया है।
– प्रमुख बंदरगाहों के लिए तटकर प्राधिकरण की भूमिका नए सिरे से तय की गई है। बंदरगाह प्रशासन को अब तटकर तय करने के अधिकार दिए गए हैं जो पीपीपी परियोजनों के लिए बोली लगाने के उद्देश्यों के लिए एक संदर्भ तटकर के तौर पर काम करेगा। पीपीपी ऑपरेटर बाजार की स्थितियों के आधार पर तटकर तय करने के लिए स्वतंत्र होंगे। बंदरगाह प्राधिकरण बोर्ड को भूमि सहित अन्य बंदरगाह सेवाओं और परिसंपत्तियों के लिए शुल्क का दायरा तय करने के अधिकार सौंप दिए गए हैं।
– एक सहायक बोर्ड बनाने का प्रस्ताव है, जो प्रमुख बंदरगाहों के लिए पूर्ववर्ती टीएएमपी के बचे हुए कार्य को पूरा करने, बंदरगाहों और पीपीपी रियायत पाने वालों के बीच विवादों को देखने, तनावग्रस्त पीपीपी परियोजनाओं की समीक्षा करने के लिए और तनावग्रस्त पीपीपी परियोजनाओं की समीक्षा करने के लिए उपाय सुझाने और इस तरह की परियोजनाओं को पुनर्जीवित करने के उपाय देने और बंदरगाहों/निजी ऑपरेटरों (बंदरगाहों के भीतर काम करने वाले) द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं को लेकर आई शिकायतों को देखने का काम करेगा।
– बंदरगाह प्राधिकरण बोर्डों को अनुबंध करने, योजना और विकास, राष्ट्र हित को छोड़कर शुल्क तय करने, सुरक्षा और निष्क्रियता व डिफॉल्ट के चलते आपातकालीन स्थिति की पूरी शक्तियां दी गई हैं। मौजूदा एमपीटी कानून 1963 में 22 मामलों में केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति लेना आवश्यक था।
– प्रत्येक प्रमुख बंदरगाह का बोर्ड, बंदरगाह की सीमा और भूमि के दायरे में किसी भी विकास या अवसंरचना के संबंध में विशिष्ट मास्टर प्लान तैयार करने का हकदार होगा और इस तरह का मास्टर प्लान किसी भी प्राधिकरण के स्थानीय या राज्य सरकार के नियमों से स्वतंत्र होगा।
– इसमें सीएसआर और बंदरगाह प्राधिकरण के द्वारा बुनियादी ढांचे के विकास के प्रावधान पेश किए गए थे।
– प्रमुख बंदरगाहों के कर्मचारियों के पेंशन लाभ समेत वेतन और भत्ते और सेवा की शर्तों और प्रमुख बंदरगाहों के तटकर को सुरक्षा देने के लिए प्रावधान किया गया था। ~(PBNS)