व्यंग्य: आया सावन घूम के

अब नए गीत बनाने के लिए कवि भी बेचारा मूड कैसे बनाए ? मानसून की जिद के आगे यही लिखेगा -आया सावन घूम के….। सावन का महीना, अग्निवीर करें सोर….। लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है….हर जगह ट्रेनें जली खड़ी हैं…। आज मौसम बड़ा बेईमान है… कुछ लोगों का मानना है कि मौसम विभाग का नाम अब […]

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व्यंग्य: नए-नए शब्दों की बरसात

कल पप्पू अपने पापा से पूछ रहा था- ‘डैडी, डैडी आजकल कोरोना अंकल आपके पास नहीं आ रहे ?’ बाप ने बेटे को ‘डांटा- ‘कोरोना अंकल के बच्चे…….वो खुराना अंकल हैं।’ पप्पू ने सफाई दी- ‘डैैडी मैं ये वर्ड बार-बार रेडियो, टीवी, क्लास, इधर-उधर, आपके फोन, आंटियों की बातचीत में सुन-सुन कर अंकल के नाम

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व्यंग्य: मेरे यार की शोक सभा

हमारे एक अंतरंग मित्र का अकाल चला जाना हो गया। परंपरानुसार सब गैरपरंपरागत और आधुनिक तरीके से अंतिम संस्कार के लिए इलैक्ट्रिक क्रिमेशन में इकटठे् हुए औेर खटाक-फटाक से अंतिम विदाई दे दी गई। न धुआं-न धक्कड़ ओैर एकसप्रेस-वे से निकल गए फक्कड़। कुछ रिश्तेदारों का सुझाव था कि आज के क्विक सिस्टम में लगे

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हास्य व्यंग्य: मैंने ट्वीट किया

यदि आजादी की लड़ाई के वक्त व्हाट्स एप या ट्विटर होते तो घर बैठे हम सोशल मीडिया पर ही अंग्रेजों को डरा-डरा कर आजादी ले लेते। आज गली-मोहल्ले में किसी के घर के आगे जाकर तू-तू मैं-मैं करने का किसी के पास टेैम नी है जी! सो ट्विटर हैंडल घुमाओ और मोड़ दो अपना मुंह

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हास्य व्यंग्य: बाज आए वर्क फ्रॉम होम से

हमने गाय-भैंसों के बाड़े तो गांव में देखे हैं। आपने भी जरूर देखे होंगे। बचपन में कइयों के मुंह से यह बोलते सुना था- खाला जी का बाड़ा समझ रखा है क्या ? उन दिनों खलीफा भी होंगे, खालाएं भी होंगी और उनके बाड़े भी जरूर रहे होंगे। लेकिन आज तो हमारा खुद का घर,

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व्यंग्यः एक आंसू की कीमत तुम क्या जानो बाबू ?

हम तो बचपन से ही आंसू भरे गीत सुनते आ रहे हैं, गुनगुनाते भी जा रहे हैं। कभी-आंसू भरी हैं, ये जीवन की राहें…या ये आंसू मेरे दिल की जुबान हैं… तेरी आंख के आंसू पी जा…मेरी याद में न तुम आंसू बहाना…मुझे भूल जाना, कभी याद न आना…छोड़ दो आंसुओं को हमारे लिए…वगैरा-वगैरा। जरा

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हास्य व्यंग्यः मेरी मोटर साइकिल और गणतंत्र दिवस

सुबह-सुबह हवा बहुत अच्छी थी। बाहर निकले तो देखा, हमारी मोटर साइकिल हवा हो चुकी थी। हमारे पैरों तले जमीन खिसक गई और अपनी भी हवा,  हवाई हो गई। रिपोर्ट लिखाने भागे-भागे पहुंचे  थाने। मुंशी जी व्यस्त थेे, कंप्यूटर में व्यस्त थे । हम चोरी से त्रस्त थे । बुरे ग्रहों से ग्रस्त थे। हौसले

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व्यंग्य: मैं आम आदमी हूं…

मैं आम आदमी हूं। कभी किसी की टोपी पर चिपका नजर आता हूं तो कभी आरके लक्ष्मण के कार्टूनों में दिखता हूं। या फिर ‘वाग्ले की दुनियाÓ का हिस्सा बन जाता हूं। कभी-कभी मुसद्दी लाल की तरह आफिस-आफिस भटकता हूं। मुझे ही मुद्दा बनाकर लोग लोकसभा पहुंचते हैं। मजबूत कुर्सियों पर परलोक सभा जाने तक

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चलो बुलावा आया है…शादी पे बुलाया है

अनलॉक चार के अगले दिन ही मोबाइल फोन पर जो मैसेज आया उसने लॉकडाउन के सारे दुखड़े एक मिनट में भुला दिए। छह महीने में मुंह गुलाब जामुन का टेस्ट भूल चुका था। बदन बंद-बंद सा लग रहा था। नागिन डांस करे और देखे एक मुद्द्त हो गई थी। जैसे ही मन आउटिंग को करता

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कौआ आया ऑनलाइन

ANews Office: कागा पर हमारे कवियों ने आदिकाल से ही कई गीत बनाए हैं। उनके ऊपर शगुन-अपशगुन पर निबंध तक लिख डाले। बॉलीवुड ने तो काग महाराज का बहुत शोषण किया। उससे फिल्मों में फ्री-फंड में एक्टिंग करवाई । उस पर कितने गाने फिल्मा डाले। ‘माए नी माए मुंडेर पे तेरी बोल रहा है कागा…

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