आज की कविताः बा

बा तुम थींबापू की छायादेश व घर कोधुरी पे साधाबापू के, बापू बनने कीऐतिहासिक प्रक्रिया में साथईंट बनी वो नींव कीसदा रही वो साथ। चाहे नहीं था पढ़ना आयापर बापू का साथ निभायासात वर्ष की उम्र में हो गईबापू संग सगाईतेरह वर्ष की उम्र में हो गईपिता के घर से विदाई। उन्नीस वर्ष की आयु […]

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आज की कविताः तीखे शब्द

तीखे और कड़वे शब्दहैं कमजोर की निशानी,लेकिन समझ नहीं पाता हैकोई भी अभिमानी। पैर फिसल जाने पर इंसांबच सकता है लेकिन,जुबां फिसल जाए तोबचना होता है नामुमकिन। जब कमाकर खाय मनुष्यतो कहलाये संस्कृति,जब वो छीन कर खाता हैतो बन जाय विकृति। मरणोपरांत ना सोचे, बोलेना कुछ ही कर पाए,जीवित जो ना सोचे, बोलेवो मृतप्रायः कहलाए।

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आज की कविताः डर

लोग डरते हैं भूत और प्रेतों सेमैं डरती हूं धरती के उन लोगों सेजो अपनों का खून बहा रहे हैंबलात्कारियों के कंधे से कंधामिला रहे हैं औरलोगों को ज़िंदा जला रहे हैं। लोग डरते हैं, गरीबी से, बदहाली सेमैं डरती हूं, अमीरी से, खुशहाली सेजो भाई को भाई कादुश्मन बना रही हैनाते-रिश्ते तुड़वा रही हैप्यार

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आज की कविताः मैं रिश्ते निभा नहीं पाई…

कोशिश तो बहुत की मैंनेमोहब्बत भी बहुत निभाईखुद से बहुत किया झगड़ाचुप रही कुछ बोल न पाईसुनती रही चुपचाप सदाकभी आवाज नहीं उठाईइसीलिए अच्छी कहलाई। कहलाई मैं बुरी तभीज्यों ही थी आवाज उठाईक्या करती इज्जत थी प्यारीआत्म सम्मान से भरी खुमारीगिरगिट से बदलते रंगबेगैरतों के पाखंडमेरी गैरत भुला न पाईउनके झूठे वादे कसमेंभीतर अपने उतार

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आज की कविताः खामोशी, खामोश हो जाएगी…

जिद तुम्हारी टूट जाएगीजब याद हमारीकेवल याद बन जाएगी। तुम चुपके सेमेरी खामोशी पढ़नाखामोशी जबखामोश हो जाएगी। मजा हैबदल जाने मेंबदला लेने में नहींबदल गए हम तोफितरत बदल जाएगी। खोने का अहसास है क्यापूछो मेरे दिल से जराकहना बहुत चाहा मगरचुप रहे हम सदा। नए रिश्ते जुड़ते हैंपुराने टूटने के बाददिल बहुत रोता हैदर्द फूटने

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आज की कविताः कहानी किसान की

रात के पिछले पहर मेंहल की हत्थीहाथ में पकड़ करखेतों की पगडंडी परकदम बढ़ाता चला जा रहा हैबादल जिसके मीत हैंखेत जीत के गीत हैंखुद भूखा रहकर वोजहां का पेट भरता हैवर्षा, धूप, आंधी, सर्दीकोहरा भरी कड़कती ठंडी रात मेंदुनिया को सुख पहुंचाने कोमेहनत से नहीं डरता हैउसका नाम किसान है। जिसका नाम किसान हैआज

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ऑनलाइन ‘संगीत और कविता’ कार्यक्रम में जुटे ट्राइसिटी के कवि, अपनी रचनाओं से बांधा समां

CHANDIGARH: Srijan-an institute of performing arts चंडीगढ़ की तरफ से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि व Srijan के संस्थापक डा. डीएस गुप्त की नौवीं पुण्यतिथि पर ऑनलाइन संगीत और कविता का कार्यक्रम करवाया गया, जिसमें चंडीगढ़, पंचकूला और मोहाली के कवियों ने शिरकत की । संस्था के अध्यक्ष सोमेश और जनरल सैक्रेटरी श्रीमती अमरज्योति शर्मा ने मुख्यातिथि श्रीमती

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आज की कविताः झंडा ऊंचा रहे हमारा…

झंडा ऊंचा रहे हमाराअमर रहे गणतंत्र हमाराछब्बीस जनवरी आई हैयही संदेशा लाई है। झंडा वंदन किया सभी नेजन-गण-मन मिल गाया हैरंग-बिरंगे गुब्बारों नेसबका मन हर्षाया है। भांति-भांति की छटा झांकियोंकी हर मन को भायी हैछब्बीस जनवरी आई हैबंटती आज मिठाई है। झंडा फहरा रहा भवनों परहर घर पर मैदानों मेंइसकी छटा निराली देखोजोश भरे जवानों

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कवियों ने कविताओं से भारत की आजादी और महानता का किया यशोगान

CHANDIGARH: गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में साहित्य व कला परिषद ने `हमारा प्यारा भारत’ विषय पर विशेष काव्य गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया। मुख्य अतिथि प्रसिद्ध शिक्षाविद रविंद्र तलवार थे, जबकि अध्यक्षता वरिष्ठ कवि प्रो. मोहन सपरा ने की। कार्यक्रम के आरंभ में अध्यक्ष प्रेम विज और महासचिव विनोद शर्मा ने अतिथियों का स्वागत किया और

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आज की कविताः मैं समझ नहीं पाई…

प्रसव पीड़ा को सहती हुईउसकी चीखपहुंच गई वहांजहां निवास करती हैसृष्टि।निढाल होपरास्त सा महसूसकरती हैजब पता चलता हैकिपैदा हुई है बेटी।क्योंकिबेटी के आने सेन होता है कोईखुशन मिलती है बधाईपड़ी रहती हैअकेलीछा जाता हैसन्नाटा चारों ओरहो जाते हैं सब खामोश।न कोई पूछता हैन बूझता हैन पास आता हैन हाल पूछता हैबस मिलती हैसबसे जुदाई।बेटा होतातो

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आज की कविताः पेड़ होना परम्परा है…

जैसे पेड़ का जुडऩा जरूरी है धरती सेलहरों का जुडना जरूरी है नदी सेऔर धूप का जुडऩा जरूरी है सूरज सेवैसे ही आदमी का जुडना जरूरी है परम्परा सेपेड़, लहरें और धूपधरती की शाश्वत परम्परायेंही तो हैं दरअसल पिताजैसे नींव है आदमी कीवैसे ही परम्परा नींव हैपिता की जैसे धरती का अस्तित्व सूरज सेवैसे ही

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आज की कविताः यथार्थ

किताबों में लिखा हैमन की सुनोमन की कहोमन की करो। की थी एक बारमैंने भी मन की,मन की लिखी थीतो शब्द रूठ गए,थोड़ा सा सच बोलातो अपने भूल गएज़रा सी आवाज़ उठाईंतो रिश्ते टूट गए। मौन रही जब तकसबने कमज़ोर माना,निशब्द रही तोगूंगी जाना। पर अब नहीं,अब नहीं जी सकतीदोहरी ज़िंदगी,नहीं लगा सकती नकाब,नहीं करना

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आज की कविताः बदलता वर्ष

साल बदलने से क्या होता हैलोग तो वही हैं,पड़ोस भी वही है,सोच भी वही है,विचार भी वही हैं,नीयत भी वही है,मंशा भी वही है,क्या कुछ पुराना बदलेगा ?शंका बस यही है। साल बदलने से क्या होता हैतू भी वही और मैं भी वही हुँ,नाते-रिश्ते वही हैं, जलन-कुढ़न वही है,ईर्ष्या भी वही है,ताने-वाने वही औरकड़वाहटें भी

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‘उदास हूं मैं बहुत मत बुलाओ तुम मुझे, तन्हा हूं मैं बहुत मत सताओ तुम मुझे’

आज की कविता: रक्त संबंध चुप रहने दो मुझेनहीं करनी कोई बातमत करो कोई सवालनहीं रहा कोई जवाब। करने दो आराम मुझेनहीं कहीं जाना मुझेथम जा ज़िन्दगी जरानहीं कुछ पाना मुझे। उदास हूं मैं बहुतमत बुलाओ तुम मुझेतन्हा हूं मैं बहुतमत सताओ तुम मुझे। मैं किसी की नहींना कोई मेरा हैनहीं करनी कोई तकरारना ही कोई

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