व्यंग्य: मेरे यार की शोक सभा

हमारे एक अंतरंग मित्र का अकाल चला जाना हो गया। परंपरानुसार सब गैरपरंपरागत और आधुनिक तरीके से अंतिम संस्कार के लिए इलैक्ट्रिक क्रिमेशन में इकटठे् हुए औेर खटाक-फटाक से अंतिम विदाई दे दी गई। न धुआं-न धक्कड़ ओैर एकसप्रेस-वे से निकल गए फक्कड़। कुछ रिश्तेदारों का सुझाव था कि आज के क्विक सिस्टम में लगे […]

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व्यंग्य: मैं आम आदमी हूं…

मैं आम आदमी हूं। कभी किसी की टोपी पर चिपका नजर आता हूं तो कभी आरके लक्ष्मण के कार्टूनों में दिखता हूं। या फिर ‘वाग्ले की दुनियाÓ का हिस्सा बन जाता हूं। कभी-कभी मुसद्दी लाल की तरह आफिस-आफिस भटकता हूं। मुझे ही मुद्दा बनाकर लोग लोकसभा पहुंचते हैं। मजबूत कुर्सियों पर परलोक सभा जाने तक

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