आज की कविताः तीखे शब्द

तीखे और कड़वे शब्दहैं कमजोर की निशानी,लेकिन समझ नहीं पाता हैकोई भी अभिमानी। पैर फिसल जाने पर इंसांबच सकता है लेकिन,जुबां फिसल जाए तोबचना होता है नामुमकिन। जब कमाकर खाय मनुष्यतो कहलाये संस्कृति,जब वो छीन कर खाता हैतो बन जाय विकृति। मरणोपरांत ना सोचे, बोलेना कुछ ही कर पाए,जीवित जो ना सोचे, बोलेवो मृतप्रायः कहलाए। […]

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आज की कविताः डर

लोग डरते हैं भूत और प्रेतों सेमैं डरती हूं धरती के उन लोगों सेजो अपनों का खून बहा रहे हैंबलात्कारियों के कंधे से कंधामिला रहे हैं औरलोगों को ज़िंदा जला रहे हैं। लोग डरते हैं, गरीबी से, बदहाली सेमैं डरती हूं, अमीरी से, खुशहाली सेजो भाई को भाई कादुश्मन बना रही हैनाते-रिश्ते तुड़वा रही हैप्यार

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