कठिन हालात में भी हार न मानने का संदेश देती है ‘सुराही’ : चौटाला

हरियाणा के डिप्‍टी सी.एम. ने किया डॉ. नरवाल के काव्‍य संग्रह का विमोचन

CHANDIGARH: मनुष्‍य को विकट एवं कठिन परिस्थितियों में भी मन-मसोस कर बैठने की बजाय इनका डटकर सामना करते हुए कुछ न कुछ सकारात्‍मक कार्य करते रहने चाहिए। यह उद्गार हरियाणा के उप मुख्‍यमन्‍त्री दुष्‍यन्‍त चौटाला ने शिक्षक दिवस के अवसर पर हरियाणा निवास में भाखड़ा-ब्‍यास प्रबंध बोर्ड के सदस्‍य-सिंचाई डॉ. गुलाब सिंह नरवाल द्वारा लिखित काव्‍य संग्रह “सुराही” का विमोचन करते हुए व्‍यक्‍त किए।

चौटाला ने डॉ. नरवाल के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि उन्‍होंने विश्‍व-व्‍यापी करोना महामारी (कोविड-19) के दौरान पूरे देश भर में 24 मार्च से लागू रहे लॉकडाऊन में अपना सरकारी कार्य प्रभावित किए बिना फ्री टाइम एवं छु्टि्टयों का सदुपयोग करते हुए कविताएं लिखने का शतक लगाकर एक नया कीर्तिमान स्‍थापित किया है। उप मुख्‍यमन्‍त्री ने कहा कि डॉ. नरवाल का यह प्रयास हमें स्‍वार्थ, छल-कपट एवं अहंकार को छोड़कर निस्‍वार्थ एवं प्रेम भाव से जीवन जीने की सीख देता है। “सुराही” के विमोचन अवसर पर मौजूद रही हरियाणा की मुख्‍य सचिव केशनी आनन्‍द अरोड़ा ने भी डॉ.नरवाल के काव्‍य संग्रह की सराहना करते हुए कहा कि उनका प्रयास साहित्‍य प्रेमियों के साथ-साथ आम जन मानस के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।

शिक्षक दिवस के अवसर पर हरियाणा निवास में डॉ. नरवाल के काव्‍य संग्रह “सुराही” का विमोचन करते उप मुख्‍यमन्‍त्री दुष्‍यन्‍त चौटाला। साथ हैं मुख्‍य सचिव केशनी आनन्‍द अरोड़ा ।

गौरतलब है कि करोना महामारी के कारण हाशिए पर पहुंचे मानव जीवन, अकेलेपन और वर्षों बाद कानों में गूंजती पक्षियों की चहचहाट ने डॉ. नरवाल के मन पर गहरा प्रभाव डाला तथा वे बचपन यादों में लौटकर कविताएं लिखने के लिए प्रेरित हुए। कार्यालय की तमाम दायित्‍वों को निभाने के साथ-साथ उन्‍होंने हर दिन एक नई कविता लिखकर, देखते ही देखते कविताओं का शतक लगा दिया। 100 कविताओं वाले “सुराही” नामक उनके काव्य संग्रह में जहां उन्‍होंने अपने बाल्यकाल से लेकर अब तक की अपनी संघर्षमयी जीवन शैली एवं कटु अनुभवों को कलमबद्ध किया है, वहीं उन्होंने अपनी कविताओं में प्रकृति प्रेम,रोमांस,विरह के साथ-साथ आधुनिकता की चकाचौंध में तार-तार होते सामाजिक सरोकारों, नारी उत्‍पीड़न,विज्ञान, संस्‍कृति, स्‍वार्थ एवं शोषण को कलमबद्ध किया है। निसंदेह उनका यह प्रयास सराहनीय होने के साथ-साथ अतुलनीय भी है। उम्मीद है कि कविताओं का यह शतक साहित्‍य/काव्य प्रेमियों के दिलो-दिमाग पर अपनी अमिट छाप छोड़ेगा और कठिन परिस्थितियों में भी हंसी-खुशी से जीने की राह दिखाएगा ।

ग्रामीण परिवेश में पले -बढ़े डॉ.नरवाल का अतीत बहुत ही संघर्ष पूर्ण रहा है और गरीबी के कारण उन्हें बचपन में ही पढ़ाई छोड़ने को मजबूर होना पड़ा था, पर पढ़ाई के प्रति उनकी रूचि को देख कर उनके नाना-नानी उन्हें अपने गॉव ले गए और वहां के स्कूल में उनका दाखिला करवाया। यह शिक्षा के प्रति उनकी गहन रूचि की ही प्रतिफल है कि आज डॉ. नरवाल पी.एच.डी. बॉटनी के साथ-साथ इंजीनियरिंग, मैनेजमैंट, कम्‍पयूटर साइंस, लॉ, हिस्‍ट्री, पब्लिक एडमिनीस्‍ट्रेशन, एनवारन्‍मैंट सहित कई विषयों में 14 डिग्री एवं 7 पी.जी.डिप्‍लोमा/डिप्‍लोमा होल्‍डर हैं। साहित्‍य के प्रति उनके लगाव के चलते अंतरराष्‍ट्रीय एवं राष्‍ट्रीय स्‍तर की पत्रिकाओं में उनके अब तक 14 शोध पेपर भी प्रकाशित हो चुके हैं।

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