हर मांगलिक कार्य में सबसे पहले श्री गणेश की पूजा करना भारतीय संस्कृति में अनिवार्य माना गया है। व्यापारी वर्ग बही-खातों, यहां तक कि आधुनिक बैंकों में भी लेजर्स आदि में सर्वप्रथम श्री गणेशाय नमः अंकित किया जाता है। नववर्ष तथा दीवाली के अवसर पर लक्ष्मी एवं गणेश जी की ही आराधना से शेष कार्यक्रम आरंभ किए जाते हैं। विवाह में लग्न पत्रिका में भी श्री गणेशाय नमः लिखा जाता है।
कोई भी पूजा अर्चना, देव पूजन, यज्ञ, हवन, गृह प्रवेश, विद्यारंभ, अनुष्ठान हो, सर्वप्रथम गणेश वंदना ही की जाती है, ताकि हर कार्य निर्विघ्न समाप्त हो। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी गणेश जी के प्रादुर्भाव की तिथि संकट चतुर्थी कहलाती है परंतु महीने की हर चौथ पर भक्त गणपति की आराधना करते हैं। गणेश जी हिन्दुओं के आराध्य देव हैं, जिन्हें देवताओं में विशेष स्थान प्राप्त है। विवाह हो या कोई भी महत्वपूर्ण कार्य, निर्विघ्न पूर्ण करने के लिए सर्वप्रथम गजानन की ही पूजा की जाती है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को श्री गणेश जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। गणपति जी का जन्मकाल दोपहर को माना गया है। गणेशोत्सव भाद्रपद की चतुर्थी से लेकर चतुर्दशी तक 10 दिन चलता है। इस बार 11 दिवसीय श्री गणेश पर्व 10 सितंबर से लेकर 21 सितंबर तक मनाया जाएगा। 9 सितंबर की रात्रि 12 बजकर 19 मिनट पर चतुर्थी आरंभ हो गई है तथा 10 सितंबर की रात्रि 21ः 58 तक रहेगी।
श्री गणेश चतुर्थी पर चित्रा नक्षत्र तथा ब्रहम योग होगा, जो कोई भी शुभ कार्य आरंभ करने के लिए विशेष मुहूर्त भी होगा। वैसे तो हर महीने शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली चौथी तिथि श्री गणेश या विनायक चतुर्थी कहलाती है परंतु कृष्ण पक्ष के बाद आने वाली चौथ को पत्थर चौथ या कलंक चौथ भी कहते हैं, जो इसी दिन होगी। ये बुद्धि के देवता हैं। विघ्न विनाशक हैं। चूहा इनका वाहन है। ऋद्धि-सिद्धि दो पत्नियां हैं। कलाकारों के लिए गणेश जी की आकृति बनाना सबसे सुगम है। एक रेखा में भी इनका चित्रण हो जाता है। वे हर आकृति और हर परिस्थिति में ढल जाते हैं। गणेश जी की छोटी आखें एकाग्र होकर लक्ष्य प्राप्ति का संदेश देती हैं तो बड़े कान सबकी बात सुनने की सहन शक्ति देते हैं। विशाल मस्तक परंतु छोटा मुंह इंगित करता है कि चिन्तन अधिक, बातें कम की जाएं। लंबी सूंड कहती है कि हर हालत में सजग रहकर कष्टों का सामना करें। एकदन्त का अर्थ है कि हम एकाग्रचित्त होकर चिन्तन, मनन, अध्ययन व शिक्षा पर ध्यान दें। बड़ा उदर सबकी बुराई बड़े कान से सुनकर बड़े पेट में ही रखने की शिक्षा देता है। छोटे पैर उतावला न होने की प्रेरणा देते हैं। चंचल वाहन मूषक मन की इंद्रियों को नियंत्रण में रखने की प्रेरणा प्रदान करता है। आज सिद्धि विनायक व्रत रखा जाता है। इसे कलंक चौथ या पत्थर चौथ भी कहा जाता है।
गणेश चतुर्थी पूजा व मूर्ति स्थापना का शुभ मुहूर्त
आज पूजा का शुभ मुहुर्त मध्याह्रकाल में 11:03 से 13:33 तक है यानि 2 घंटे 30 मिनट तक।
कैसे करें पूजा ?
पूजन से पूर्व शुद्ध होकर आसन पर बैठें। एक ओर पुष्प, धूप, कपूर, रोली, मौली, लाल चंदन, दूर्वा, मोदक आदि रख लें। एक पटड़े पर साफ पीला कपड़ा बिछाएं। उस पर गणेश जी की प्रतिमा, जो मिट्टी से लेकर सोने तक किसी भी धातु में बनी हो, स्थापित करें। गणेश जी का प्रिय भोग मोदक व लडडू है। मूर्ति पर सिंदूर लगाएं, दूर्वा अर्थात हरी घास चढ़ाएं व शोडशोपचार करें। धूप, दीप, नैवेद्य, पान का पत्ता, लाल वस्त्र तथा पुष्पादि अर्पित करें। इसके बाद मीठे मालपुओं तथा 11 या 21 लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए। इस पूजा में संपूर्ण शिव परिवार-शिव, गौरी, नंदी तथा कार्तिकेय सहित सभी की शोडशोपचार विधि से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। पूजा के उपरांत सभी आवाहित देवी-देवताओं को विधि- विधानानुसार विसर्जन करना चाहिए परंतु लक्ष्मी जी व गणेश जी का नहीं करना चाहिए। गणेश प्रतिमा का विसर्जन करने के बाद उन्हें अपने यहां लक्ष्मी जी के साथ ही रहने का आमंत्रण करें। यदि कोई कर्मकांडी यह पूजा संपन्न करवा रहा है तो उसका आशीष प्राप्त करें और यथायोग्य पारिश्रमिक दें। सामान्यतः तुलसी के पत्ते छोड़कर सभी पत्र- पुष्प गणेश प्रतिमा पर चढ़ाए जा सकते हैं।
गणपति जी की आरती से पूर्व गणेश स्तोत्र या गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें ।
नीची नजर करके चंद्रमा को अर्घ्य दें, इस मंत्र का जाप कर सकते हैं-
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः। निर्विध्न कुरु मे देव सर्वकार्येशु सर्वदा ।। ’
इसके अलावा ओम् गं गणपतये नमः मंत्र गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए ही काफी है।
कलंक चतुर्थी या पत्थर चौथ क्या है, कैसे करें बचाव ?
विशेष ध्यान रखें कि आज के दिन चांद न देखें। इसे कलंक चतुर्थी और पत्थर चौथ भी कहते हैं। मान्यता है कि चंद्रदर्शन से मिथ्यारोप लगने या किसी कलंक का सामना करना पड़ता है। दृष्टि धरती की ओर करके और चंद्रमा की कल्पना मात्र करके अर्घ्य देना चाहिए। मान्यता है कि एक बार गणेश जी चंद्र देवता के पास से गुजरे तो उन्होंने गणपति का उपहास उड़ाया। गणेश जी ने श्राप दिया कि आज के दिन जो तुझे देख भी लेगा वह कलंकित हो जाएगा। शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने भी भूलवश इसी दिन चांद देख लिया था और फलस्वरूप उन पर हत्या व चोरी का आरोप लगा था। यदि अज्ञानतावश या जाने-अनजाने यह दिख जाए तो निम्न मंत्र का पाठ करें-
सिंह प्रसेनम् अवधात, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्रास स्वमन्तक।।
इसके अलावा आप हाथ में फल या दही लेकर भी दर्शन कर सकते हैं। यदि आप पर कोई मिथ्यारोप लगा है तो भी इसका जाप करते रहें। दोष मुक्त हो जाएंगे।
दक्षिणावर्त गणपति की मूर्ति का रहस्य
गणेश जी की सभी मूर्तियां सीधी या उत्तर की ओर सूंड वाली होती हैं। यह मान्यता है कि गणेश जी की मूर्ति जब भी दक्षिण की ओर मुड़ी बनाई जाती है तो वह टूट जाती है। कहा जाता है कि यदि संयोगवश आपको दक्षिणावर्ती मूर्ति मिल जाए और उसकी विधिवत उपासना की जाए तो अभीष्ट फल मिलते हैं। गणपति जी की बाईं सूंड में चंद्रमा का प्रभाव और दाई में सूर्य का माना गया है। प्रायः गणेश जी की सीधी सूंड तीन दिशाओं से दिखती है। जब सूंड दाईं ओर घूमी होती है तो इसे पिंगला स्वर और सूर्य से प्रभावित माना गया है। ऐसी प्रतिमा का पूजन विध्न विनाश, शत्रु पराजय, विजय प्राप्ति, उग्र तथा शक्ति प्रदर्शन आदि जैसे कार्यों के लिए फलदायी माना जाता है, जबकि बाईं ओर मुड़ी सूंड वाली मूर्ति को इडा नाड़ी से चंद्र प्रभावित माना गया है। ऐसी मूर्ति की पूजा स्थाई कार्यों के लिए की जाती है। जैसे-शिक्षा, धन प्राप्ति, व्यवसाय, उन्नति, संतान सुख, विवाह, सृजन कार्य, पारिवारिक खुशहाली के लिए। सीधी सूंड वाली मूर्ति का सुशुम्ना स्वर माना जाता है और इनकी आराधना ऋद्धि-सिद्धि, कुण्डलिनी जागरण, मोक्ष, समाधि आदि के लिए सर्वोत्तम मानी गई है। संत समाज ऐसी मूर्ति की ही आराधना करता है। सिद्धि विनायक मंदिर में दाईं ओर सूंड वाली मूर्ति है। इसी लिए इस मंदिर की आस्था और आय आज शिखर पर है।
गणेश जी का चित्र या मूर्ति कैसे रखी जाए और वास्तु अनुसार किन बातों का रखें ख्याल ?
घर के मंदिर में तीन गणेश प्रतिमाएं नहीं रखनी चाहिए। मूर्ति का मुंह सदा आपके घर के अंदर की ओर होना चाहिए, पीठ कभी नहीं। उनकी दृष्टि में सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य व वैभव है, जो आपके यहां प्रवेश करता है। पीठ में दरिद्रता होती है, जो रोग, शोक, नकारात्मक उर्जा लाती है। अतः कुछ लोग गलती से घर के द्वार या माथे पर गणेश जी की मूर्ति या संगमरमर की टाईल्स लगवा देते हैं और सारी उम्र फिर भी दरिद्र रह जाते हैं। इस दोष को दूर करने के लिए उसके समानान्तर उसके पीछे एक और चित्र या मूर्ति ऐसे लगाएं कि गणेश जी की दृष्टि निरंतर आपके घर पर रहे।
मूर्ति रखने के कुछ नियम
गणेश भगवान को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। घर में सुख-समृद्धि और कष्टों को दूर करने के लिए लोग घर में गणेश जी की मूर्ति रखते हैं। इतना ही नहीं, लोग गणेश भगवान की मूर्ति गिफ्ट में भी देते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान श्री गणेश को घर में रखने के कुछ नियम होते हैं। वास्तु के अनुसार अगर इन बातों को नजरअंदाज कर दिया जाए तो ये अशुभ भी हो सकता है।
घर में यहां न रखें मूर्ति
गणेश भगवान की मूर्ति को घर की किसी दीवार या कोने में बिना सोचे-समझे नहीं रख सकते। घर में बाथरूम की दीवार पर गणेश भगवान की मूर्ति न लगाएं। इतना ही नहीं, घर के बेडरूम में भी भगवान गणेश की मूर्ति लगाना शुभ नहीं होता। ऐसा करने से वैवाहिक जीवन में कलह और पति-पत्नी के बीच बेवजह तनाव बना रहता है।
नृत्य करती मूर्ति न लाएं
वास्तुशास्त्र के अनुसार भगवान गणेश की नृत्य करती हुई मूर्ति घर में न लाएं और न ही किसी को उपहार में दें. ऐसा कहा जाता है कि गणेश जी की नृत्य करती हुई मूर्ति घर में लगाने से घर में कलह-क्लेश होता रहता है। अगर किसी को गिफ्ट में दो तो उनके घर भी कलह-क्लेश होने लगता है।
लड़की की शादी में न दें गणेश
गणेश जी की मूर्ति किसी लड़की की शादी में देना अशुभ होता है. ऐसा इसलिए कहा जाता है कि लक्ष्मी और गणेश हमेशा साथ होते हैं. ऐसे में घर की लड़की के साथ गणेश जी भी दे देंगे तो घर की समृद्धि भी उनके साथ चली जाती है।
बाईं ओर हो सूंड
अगर आप घर के लिए गणपति लेने जा रहे हैं तो इस तरह के गणपति खरीदें, जिनकी सूंड बाईं ओर की तरफ हो. घर के लिए हमेशा वाममुखी गणपति लाने चाहिए. क्योंकि दाईं ओर सूंड वाले गणपति की पूजा करने के लिए पूजा के विशेष नियमों का पालन करना पड़ता है।
संतान प्राप्ति के लिए लाएं बाल स्वरूप
वास्तुशास्त्र के अनुसार नवविवाहित जोड़ा या फिर संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले लोगों को घर में गणपति के बाल स्वरूप की मूर्ति रखनीचाहिए। धार्मिक मान्यता है कि इससे माता-पिता के प्रति सम्मान रखने वाली संतान की प्राप्ति होती है। वहीं, नौकरी और व्यवसाय की दिक्कतें दूर करने के लिए घर में गणपति के सिंदूरी स्वरूप की फोटो लगानी चाहिए। इससे दिक्कतें दूर होती हैं और सफलता मिलती है।
बैठी मुद्रा में हों गणपति
ऐसा कहा जाता है कि अगर आप घर के लिए गणपति लेने जा रहे हैं तो गणपति की बैठी हुई मूर्ति को शुभ माना जाता है. ऐसी मूर्ति की पूजा करने से स्थाई लाभ होता है। इतना ही नहीं, इस दौरान आने वाली रुकावटें भी दूर हो जाती हैं. गणपति की ऐसी मूर्ति न लें, जिसमें गणेश के कंधे पर नाग के रूप में जनेउ न हो. ऐसी मूर्ति को भी अशुभ माना जाता है, जिसमें गणेश जी कावाहन न हो. ऐसी प्रतिमा की पूजा करने से दोष लगता है. गणेश की ऐसी मूर्ति की स्थापना करें जिनके हाथों में पाश और अकुंश दोनों हों।शास्त्रों में गणपति के ऐसे ही रूप का वर्णन मिलता है।
गणेश चतुर्थी कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार माता पार्वती स्नान करने से पहले चंदन का उपटन लगा रही थीं। इस उबटन से उन्होंने भगवान गणेश को तैयार किया और घर के दरवाजे के बाहर सुरक्षा के लिए बैठा दिया।इसके बाद मां पार्वती स्नान करने लगीं। तभी भगवान शिव घर पहुंचे तो भगवान गणेश ने उन्हें घर में जाने से रोक दिया। इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया।मां पार्वती को जब इस बात का पता चला तो वह बहुत दुखी हुईं।इसके बाद भगवान शिव ने उन्हें वचन दिया कि वह गणेश को जीवित कर देंगे।भगवान शिव ने अपने गणों से कहा कि गणेश का सिर ढूंढ़ कर लाएं।गणों को किसी भी बालक का सिर नहीं मिला तो वे एक हाथी के बच्चे का सिर लेकर आए और गणेश भगवान को लगा दिया।इस प्रकार माना गया कि हाथी के सिर के साथ भगवान गणेश का दोबारा जन्म हुआ।मान्यताओं के अनुसार यह घटना चतुर्थी के दिन ही हुई थी। इसलिए इस दिन को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है।
- मदन गुप्ता सपाटू, 458, सैक्टर 10, पंचकूला-134109, संपर्क- 9815619620, 0172-2577458