Shradh Paksha 10 से 25 सितंबर तक: क्यों करें श्राद्ध और कौन सी राशि के जातक क्या करें ?

अक्सर आधुनिक युग में श्राद्ध का नाम आते ही इसे अंधविश्वास की संज्ञा दे दी जाती है। प्रश्न किया जाता है कि क्या श्राद्ध की अवधि में ब्राहमणों को खिलाया गया भोजन पित्तरों को मिल जाता है? क्या यह हवाला सिस्टम है कि पृथ्वी लोक में दिया और परलोक में मिल गया ? फिर जीते जी हम माता-पिता को नहीं पूछते, मरणेापरांत पूजते हैं। ऐसे कई सवाल हैं, जिनके उत्तर तर्क से देने कठिन होते हैं, फिर भी उनका औचित्य अवश्य होता है।

आप अपने सुपुत्र से कभी पूछें कि उसके दादा-दादी या नाना-नानी का क्या नाम है। आज के युग में 90 प्रतिशत बच्चे या तो सिर खुजलाने लग जाते हैं या ऐं…ऐं… करने लग जाते हैं। परदादा का नाम तो रहने ही दें। यदि आप चाहते हैं कि आपका नाम आपका पोता भी जाने तो आप श्राद्ध के महत्व को समझें। सदियों से चली आ रही भारत की इस व्यावहारिक एवं सुंदर परंपरा का निर्वाह अवश्य करें। हम पश्चिमी सभ्यता की नकल करके मदर्स-डे, फादर्स-डे, सिस्टर्स-डे, वूमेन-डे, वेलेंटाइन-डे आदि पर ग्रीटिंग कार्ड या गिफ्ट देकर डे मना लेते हैं। उसके पीछे निहित भावना या उदे्श्य को अनदेखा कर देते हैं परंतु श्राद्धकर्म का एक समुचित उद्देश्य है, जिसे धार्मिक कृत्य से जोड़ दिया गया है। श्राद्ध आने वाली संतति को अपने पूर्वजों से परिचित करवाते हैं। जिन दिवंगत आत्माओं के कारण पारिवारिक वृक्ष खड़ा है, उनकी कुर्बानियों व योगदान को स्मरण करने के ये 15 दिन होते हैं।

इस अवधि में अपने बच्चों को परिवार के दिवंगत पूर्वजों के आदर्श व कार्यकलापों के बारे में बताएं, ताकि वे कुटुंब की स्वस्थ परंपराओं का निर्वाह करें। ऐसा नहीं है कि केवल हिन्दुओं में ही मृतकों को याद करने की प्रथा है। ईसाई समाज में निधन के 40 दिनों बाद एक रस्म की जाती है, जिसमें सामूहिक भोज का आयोजन होता है। इस्लाम में भी 40 दिनों बाद कब्र पर जाकर फातिहा पढ़ने का रिवाज है। बौद्ध धर्म में भी ऐसे कई प्रावधान हैं। तिब्बत में इसे तंत्र-मंत्र से जोड़ा गया है। पश्चिमी समाज में मोमबत्ती प्रज्जवलित करने की प्रथा है। दिवंगत प्रियजनों की आत्माओं की तृप्ति, मुक्ति एवं श्रद्धा पूर्वक की गई क्रिया का नाम ही श्राद्ध है। आश्विन मास का कृष्णपक्ष श्राद्ध के लिए तय है। ज्योतिषीय दृष्टि से इस अवधि में सूर्य कन्या राशि पर गोचर करता है। इसलिए इसे कनागत भी कहते हैं। जिनकी मृत्यु तिथि मालूम नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस को किया जाता है।

इसे सर्वपितृ अमावस या सर्वपितृ श्राद्ध भी कहते हैं। यह एक श्रद्धा पर्व है, भावना प्रघान पक्ष है। इस बहाने अपने पूर्वजों को याद करने का एक रास्ता है। जिनके पास समय अथवा धन का अभाव है, वे भी इन दिनों आकाश की ओर मुख करके दोनों हाथों द्वारा आह्वान करके पितृगणों को नमस्कार कर सकते हैं। श्राद्ध ऐसे दिवस हैं, जिनका उद्देश्य परिवार का संगठन बनाए रखना है। विवाह के अवसरों पर भी पितृ पूजा की जाती है। दिवंगत परिजनों के विषय में वास्तुशास्त्र का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। घर में पूर्वजों के चित्र सदा नैऋत्य दिशा में लगाएं। ऐसे चित्र देवताओं के चित्रों के साथ न सजाएं। पूर्वज आदरणीय एवं श्रद्धा के प्रतीक हैं पर वे ईष्ट देव का स्थान नहीं ले सकते। जीवित होते हुए अपनी न तो प्रतिमा बनवाएं और न ही अपने चित्रों की पूजा करवाएं। ऐसा अक्सर फिल्म उद्योेग या राजनीति में होता है, जिसे किसी भी प्रकार शास्त्रसम्मत नहीं माना जा सकता। हमारे समाज में हर सामाजिक व वैज्ञानिक अनुष्ठान को धर्म से जोड़ दिया गया था, ताकि परंपराएं चलती रहें।श्राद्धकर्म उसी श्रृंखला का एक भाग है, जिसके सामाजिक या पारिवारिक औचित्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता।

धार्मिक मान्यताएं
हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है। मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण न किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानी पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए। हिन्दू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल में पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं। मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं, ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।

ब्रह्म पुराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दी जाए, वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है।

मान्यता है कि अगर पितर रुष्ट हो जाएं तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितरों की अशांति के कारण धन हानि और संतान पक्ष से समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। संतान-हीनता के मामलों में ज्योतिषी पितृ दोष को अवश्य देखते हैं। ऐसे लोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्र. भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है।

श्राद्ध में कौओं का महत्त्व
कौए को पितरों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता है तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है।

पितृ दोष में अवश्य करें श्राद्ध
मान्यता है कि ज्योतिषीय दृष्टि से यदि कुंडली में पितृ दोष है तो निम्न परिणाम देखने को मिलते हैं
1.संतान न होना
2.धन हानि

  1. गृह क्लेश
  2. दरिद्रता
  3. मुकदमे
  4. कन्या का विवाह न होना
  5. घर में हर समय बीमारी
  6. नुक्सान पर नुक्सान
  7. धोखे
  8. दुर्घटनाएं
  9. शुभ कार्यों में विघ्न

कैसे करें श्राद्ध ?
इसे ब्राहमण या किसी सुयोग्य कर्मकांडी द्वारा करवाया जा सकता है। आप स्वयं भी कर सकते हैं।
ये सामग्री ले लें – सर्प-सर्पिनी का जोड़ा, चावल, कालेतिल, सफेद वस्त्र, 11 सुपारी, दूध, जल तथा माला.। पूर्व या दक्षिण की ओर मुंह करके बैठें। सफेद कपड़े पर सामग्री रखें। 108 बार माला से जाप करें या सुख-शांति, समद्धि प्रदान करने तथा संकट दूर करने की क्षमा याचना सहित पित्तरों से प्रार्थना करें। जल में तिल डालकर 7 बार अंजलि दें। शेषसामग्री को पोटली में बांधकर प्रवाहित कर दें। हलवा, खीर, भोजन ब्राहमण, निर्धन, गाय, कुत्ते, पक्षी को दें।

श्राद्ध के 5 मुख्य कर्म अवश्य करने चाहिए
1. तर्पण- दूध, तिल, कुशा, पुष्प, सुगंधित जल पितरों को नित्य अर्पित करें।

  1. पिंडदान-चावल या जौ के पिंडदान करके भूखों को भोजन भेाजन दें।
  2. वस्त्र दान- निर्धनों को वस्त्र दें।
  3. दक्षिणाः भोजन के बाद दक्षिणा दिए बिना एवं चरण स्पर्श बिना फल नहीं मिलता।
  4. पूर्वजों के नाम पर कोई भी सामाजिक कृत्य जैसे-शिक्षा दान, रक्त दान, भोजन दान, वृक्षारोपण, चिकित्सा संबंधी दान आदि अवश्य करना चाहिए।

किस तिथि को करें श्राद्ध ?
जिस तिथि को जिसका निधन हुआ हो उसी दिन श्राद्धकिया जाता है। यदि किसी की मृत्यु प्रतिपदा को हुई है तो उसी तिथि के दिन श्रद्धा से याद किया जाना चाहिए। यदि देहावसान की तिथि नहीं मालूम तो फिर भी कुछ सरल नियम बनाए गए हैं। पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का नवमी पर किया जाना चाहिए। जिनकी मृत्यु दुर्घटना, आत्मघात या अचानक हुई हो, उनका चतुदर्शी का दिन नियत है। साधु-सन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी पर होगा। जिनके बारे कुछ मालूम नहीं, उनका श्राद्ध अंतिम दिन अमावस पर किया जाता है, जिसे सर्वपितृ श्राद्ध कहते हैं।

श्राद्ध सारिणी
पूर्णिमा श्राद्ध- 10 सितंबर 2022
प्रतिपदा श्राद्ध- 10 सितंबर 2022
द्वितीया श्राद्ध- 11 सितंबर 2022
तृतीया श्राद्ध- 12 सितंबर 2022
चतुर्थी श्राद्ध- 13 सितंबर 2022
पंचमी श्राद्ध- 14 सितंबर 2022
षष्ठी श्राद्ध- 15 सितंबर 2022
सप्तमी श्राद्ध- 16 सितंबर 2022
अष्टमी श्राद्ध- 18 सितंबर 2022
नवमी श्राद्ध- 19 सितंबर 2022
दशमी श्राद्ध- 20 सितंबर 2022
एकादशी श्राद्ध- 21 सितंबर 2022
द्वादशी श्राद्ध- 22 सितंबर 2022
त्रयोदशी श्राद्ध- 23 सितंबर 2022
चतुर्दशी श्राद्ध- 24 सितंबर 2022
अमावस्या श्राद्ध- 25 सितंबर 2022

किस राशि वाले क्या करें
मेष:
मेष राशि के जातक श्राद्ध पक्ष के दौरान रांगे की धातु से बना सिक्का पानी में प्रवाहित करें। साथ ही श्राद्ध पक्ष में प्रतिपदा के दिन अपने परिजनों के नाम से गरीबों को भोजन करवाएं।
वृषभ: वृषभ राशि के जातक श्राद्धपक्ष में किसी भी दिन बटुकभैरव मंदिर में जाकर दही-गुड़ का भोग लगाएं। पितरों के नाम से 21 बच्चों को भोजन कराकर उन्हें सफेद वस्त्र भेंट करें।
मिथुन: मिथुन राशि के जातक पितरों के नाम से श्राद्ध पक्ष में किसी भी दिन पक्षियों को बाजरा खिलाएं। उनके पानी की व्यवस्था करें। इसके साथ ही किसी सार्वजनिक स्थान पर प्याउ लगवाएं।
कर्क: पितृ दोष से मुक्ति के लिए कर्क राशि के जातक श्राद्धपक्ष के किसी भी दिन 400 ग्राम साबुत बादाम बहते पानी में प्रवाहित करें। शिवलिंग का दूध से अभिषेक करें और गरीबों को दूध-चावल से बनी खीर बांटें। श्राद्ध पक्ष में गरीबों को सूखे अनाज का दान करें।
सिंह: सिंह राशि के जिन जातकों की कुंडली में पितृ दोष लगा हुआ है, वे श्राद्ध पक्ष में गरीबों को यथाशक्ति सूखे अनाज का दान करें और उन्हें पीले रंग के वस्त्र भेंट करें। स्वयं प्रतिदिन तुलसी के पौधे में जल चढ़ाएं।
कन्या: इस राशि के जातक पूरे श्राद्ध पक्ष के दौरान सुंदरकांड का पाठ करें और अंतिम दिन यानी सर्वपितृ अमावस्या के दिन गरीब और अनाथों को भोजन-वस्त्र भेंट करें। खासकर दिव्यांगों को भोजन जरूर करवाएं।
तुला: तुला राशि के जातक पितृ दोष से मुक्ति के लिए दूध-चावल से बनी खीर और नमकीन चावल गरीबों में बांटें। 7 गरीब कन्याओं को चप्पल और छाता भेंट करें।
वृश्चिक: इस राशि के जातक पितरों के नाम से 5 गरीबों को दो रंग का कंबल या गर्म वस्त्र दान करें। उन्हें भोजन करवाएं या भरपेट भोजन करने जितना पैसा दान दें। गाय को हरा चारा खिलाएं। पक्षियों के दाना-पानी का इंतजाम करें।
धनु: धनु राशि के जातक पक्षियों के दाना-पानी का इंतजाम करें। गौशाला में चारा भेंट करें। पितरों के नाम से किसी तीर्थ स्थान में गरीबों को भोजन करवाएं।
मकर: मकर राशि के जातक पितृदोष से मुक्ति के लिए श्राद्ध पक्ष में किसी भी दिन गंगाजल डले हुए पानी से नहाएं। किसी शनि मंदिर में जाकर दृष्टिहीन और दिव्यांग बच्चों या बड़ों को भोजन करवाएं।
कुंभ: कुंभ राशि के जातक पितृदोष के निवारण के लिए 11 श्रीफल लें और यदि पितरों के नाम पता हैं तो उनके नाम लेते हुए एक-एक श्रीफल बहते जल में प्रवाहित करें। गरीबों को पवित्र नदी के किनारे बैठाकर भोजन करवाएं।
मीन: इस राशि के जातक श्राद्ध पक्ष के किसी भी दिन गरीबों को दूध या मावे से बनी खाने की वस्तुएं भेंट करें। गाय जिसका हाल ही में बच्चा हुआ हो, उसे हरा चारा खिलाएं। गौ दान भी किया जा सकता है।

-मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद

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