Saturn: अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ के अनुसार हमारे सौर मंडल में 8 ग्रह हैं, जिनमें से प्रत्येक अपने चंद्रमा के साथ बहुमुखी है। हालांकि एकमात्र ग्रह, जो वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित करता है, वह दूसरा सबसे बड़ा ग्रह शनि है। खगोल विज्ञान से इतर शनि को आम तौर पर लोग एक ऐसा ग्रह मानते हैं, जिससे हर मनुष्य का अपने जीवन में कभी न कभी शुभ या अशुभता की स्थिति में पाला जरूर पड़ता है। ज्योतिष विज्ञान की नजर से देखें तो सौर मंडल में नौ ग्रह गिने जाते हैं।
इंसान के जीवन में शनि ग्रह की बड़ी महत्ता है। इसलिए आजकल तो कोई मंदिर बाकी नहीं, जिसमें शनि देव विराजमान न हों। शनि को कर्म फल दाता तथा सभी ग्रहों में न्यायिक दंडाधिकारी भी कहा गया है। शनि अकेला ऐसा ग्रह है, जो इंसान को उसके कर्म के मुताबिक फल जरूर देता है। ज्योतिष शास्त्र कहता है कि अच्छे कर्म करने वालों पर शनि प्रसन्न रहकर उनका जीवन सुखमय बना देते हैं तो बुरे व पाप कर्म करने वालों को दंड, यहां तक कि किसी-किसी को असहनीय पीड़ा तक देते हैं लेकिन यदि इसी शनि ग्रह को खगोल विज्ञान की दृष्टि से देखें व जानें तो शनि ग्रह वाकई बहुत अद्भुत है। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिरकार, इसके बारे में इतना अद्भुत क्या है ? शनि ग्रह पर हीलियम गैस का विशाल भंडार है। इसमें गैस और धूल से बने छल्ले हैं, जो इस ग्रह को सबसे राजसी रूप देते हैं। इसके लगभग 82 चंद्रमा हैं। शनि पर हर साल 10 मिलियन टन हीरों की बारिश होती है। इन सबके अलावा एक और बात है, जो सबको चौंका देती है।
शनि के उत्तरी ध्रुव, लगभग 79 डिग्री उत्तर में स्थित एक षट्कोणीय बादल (6 भुजाओं वाला) है, जिसकी प्रत्येक भुजा लगभग 14,500 किलोमीटर लंबी है। इसे पहली बार 1981 में वोयाजर मिशन के दौरान खोजा गया था और बाद में नासा के कैसिनी अंतरिक्ष यान द्वारा 2006 में इसकी पुष्टि की गई थी। षट्कोणीय बादल का सतह क्षेत्र 192 मिलियन वर्ग मील है, जो पृथ्वी के सतह क्षेत्र, जो की 197 मिलियन वर्ग मील, है के समान है। षट्कोणीय बादल की प्रत्येक भुजा पृथ्वी के व्यास से भी अधिक लंबी है। षट्कोणीय बादल को रंग बदलने के लिए भी जाना जाता है। नवंबर 2012 में बादल नीले रंग में देखा गया था। वहीं सितंबर 2016 में यह पीले रंग में देखा गया। वैज्ञानिकों का सुझाव है कि यह धुंध पैदा करने वाले रसायनों के कारण हो सकता है, जो मौसम के साथ बदलते हैं।
इसका एक संबंध भंवर से भी है, जो तरल पदार्थ और हवाओं का घूमता हुआ द्रव्यमान है। यह देखा गया है कि भंवर केवल गर्म अवधि के दौरान मौजूद होता है। ग्रह के अंदर मौजूद वायुमंडलीय प्रवाह इन विशाल भंवरों का कारण बनते हैं, क्योंकि वे भूमध्य रेखा के पास विशाल और परिभाषित क्षैतिज जेट बनाते हैं। वोयाजर और कैसिनी ने ऐसी विशेषताओं की पहचान की है, जो बता सकती हैं कि यह कैसे बना। षट्कोणीय बादल के बिंदु उसी दर से घूमते हैं, जिस पर शनि अपनी धुरी पर घूमता है। यदि हम पृथ्वी की समानताओं पर विचार करें तो एक जेट स्ट्रीम वायु धारा, जो पृथ्वी पर देखी गई है, शनि पर 360 किमी/घंटा तक पूर्व की ओर बहती है।
इस षट्कोणीय बादल का अभी भी वैज्ञानिकों द्वारा ठीक से अध्ययन नहीं किया गया है। इसके केंद्र में एक विशाल तूफान देखा जा सकता है, जो विभिन्न बादल संरचनाओं को जन्म देता है। कैप्चर की गई छवियों की मदद से धुंधली परतें भी देखी गई हैं, हालांकि शनि के षट्भुज को डिकोड करने के लिए अधिक वायुमंडलीय डेटा की आवश्यकता है। इस पर वैज्ञानिकों का शोध अभी जारी है। अब तक मिली जानकारियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि भविष्य में शनि ग्रह के कई ऐसे रहस्य सामने आ सकते हैं, जो इंसान को चौंका देंगे। इसलिए खगोल शास्त्रियों तथा अन्य वैज्ञानिकों की दिलचस्पी शनि ग्रह में न केवल शुरू से देखी जाती रही है, बल्कि अब बढ़ती भी जा रही है।