NEW DELHI, 30 JULY: देश की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को संसद भवन के केंद्रीय सभागार में देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद की शपथ ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना ने उन्हें 15वें राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई। राष्ट्रपति मुर्मू ने हिन्दी में शपथ लेने के बाद पुस्तिका में हस्ताक्षर किए। इसके साथ ही वह देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति बन गईं। इसी के साथ अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के राष्ट्रपति के आवास यानि राष्ट्रपति भवन में रहेंगी। ऐसे में आइए जान लेते हैं राष्ट्रपति भवन से जुड़ी विशेष जानकारी…
राष्ट्रपति भवन में 340 कमरे
राष्ट्रपति भवन को देखें तो इसका वर्णन भारत की शक्ति, शान और सुंदरता की परिणति के रूप में किया जा सकता है। दरअसल, यह इमारत है ही इतनी खूबसूरत कि यदि कोई इसे देखे तो बस देखता ही रह जाए। राष्ट्रपति भवन वास्तुकारिता की असाधारण कल्पनाशील और दक्ष वास्तुकार सर एडविन लुट्येन्स की कृति थी। सर लुट्येन्स ने ही इस अंग्रेजी के एच आकार वाले भवन की संकल्पना की थी जो 330 एकड़ संपदा पर पांच एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस भवन की कुल चार मंजिलों पर 340 कमरे हैं।
कब बनकर तैयार हुआ था राष्ट्रपति भवन ?
हजारों श्रमिकों जिनमें राजगीर, बढ़ई, कलाकार, संगतराश और कटर्स शामिल हैं, के कठिन प्रयासों से इस उत्कृष्ट कार्य को वर्ष 1929 में पूरा किया गया। भारत के वायसराय के आवास के रूप में मूल रूप से निर्मित, राष्ट्रपति भवन में इसके नाम, निवास और प्रयोजन के मामले में अनेक परिवर्तन किए गए हैं। भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति, आर. वेंकटरमण ने ठीक ही कहा है, ‘प्रकृति और मनुष्य, चट्टान और वास्तुकला को जितने शानदार ढंग से राष्ट्रपति भवन की उत्कृष्ट बनावट में सम्मिश्रित किया गया है उतना शायद किसी और कार्य में नहीं किया गया है।’
इस इमारत को कब मिला ”राष्ट्रपति भवन” का नाम ?
जब इसे निर्मित किया गया तो इसे वायसराय का आवास कहा गया। 15 अगस्त 1947 को जब भारत स्वतंत्र हुआ तो इस भवन को सरकारी आवास में परिवर्तित कर दिया गया। अंतत: राष्ट्रपति, डॉ. राजेंद्र प्रसाद के कार्यकाल के दौरान इस भवन का नाम राष्ट्रपति भवन कर दिया गया।
कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है यह भवन
बता दें, राष्ट्रपति भवन न केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम का दर्शक रहा है, बल्कि यह भारत के राजनीतिज्ञ स्वरूप होने का भी साक्षी है। यह वायसराय लार्ड इरविन के गृह के रूप में भी रहा और उसके पश्चात लार्ड माउंटबेटन, जो अंतिम ब्रिटिश वायसराय और 1947 में स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल थे, के और अन्य वायसरायों के गृह के रूप में भी रहा। लार्ड माउंटबेटन ने 1947 में राष्ट्रपति भवन के केंद्रीय गुंबद के नीचे पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को शपथ दिलाई थी। सी. राजगोपालाचारी, प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल ने भी 21 जून, 1948 को केंद्रीय गुंबद के नीचे शपथ ली और सरकारी आवास जैसा कि उस समय इसे कहा जाता था, में रहने वाले वे प्रथम भारतीय थे।
आलीशान प्रेजीडेंसियल पैलेस की शान में कैसे जुड़ी सादगी ?
गौरतलब हो, इस आलीशान प्रेजीडेंसियल पैलेस की शान को सी. राजगोपालाचारी के मामूली इशारे पर सादगी प्रदान की गई है। वायसराय के कमरे को रहने के लिहाज से अत्यंत शाही देखकर वह अपने व्यैक्तिक प्रयोजन से लिए छोटे कमरों में (जो अब राष्ट्रपति का फैमिली विंग कहा जाता है) आ गए। भवन में रहने वाले बाद के सभी निवासियों द्वारा भी ऐसा ही किया गया। भूतपूर्व वायसराय के कमरों को राज्यों और सरकार के प्रमुखों और उनके प्रतिनिधिमंडल जो भारत की राजकीय यात्रा पर आते हैं, के ठहरने के लिए गेस्ट विंग के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार ग्रहण करने के बाद डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 1950 में राष्ट्रपति भवन को अपना आवास बनाया।
राष्ट्रपति भवन के पहले दर्शक थे महात्मा गांधी
यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि स्वतंत्र भारत के राजनीतिक प्रमुखों से भी पहले महात्मा गांधी तत्काल नव निर्मित वायसराय के आवास (राष्ट्रपति भवन) के पहले दर्शक थे। उस समय वायसराय ने उन्हें एक बैठक के लिए आमंत्रित किया था जिसपर विंस्टन चर्चिल असहमत थे। इसके बावजूद महात्मा गांधी ब्रिटिश नमक के विरुद्ध आंदोलन के प्रतीक के रूप में अपनी चाय में डालने के लिए नमक अपने साथ लेकर गए। महात्मा गांधी और लॉर्ड इरविन के बीच बैठकों का क्रम अंतत: प्रसिद्ध गांधी-इरविन समझौता में पूरा हुआ जिसपर 05 मार्च 1931 को हस्ताक्षर हुए।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से राष्ट्रपति भवन में अन्य उत्सवों के साथ-साथ रक्षा अलंकरण समारोह, नेताओं के शपथ ग्रहण, पराक्रमी और विशेष उपलब्धि प्राप्तकर्ताओं के लिए सम्मान आयोजित किए गए, विश्व के नेताओं के अभिभाषण गूंजे, विभिन्न देशों के साथ समझौता और करार हस्ताक्षर किए गए, और अन्य उत्सवों के साथ-साथ भारत के स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस समारोह मनाए गए।
देश की जनता भी कर सकती है राष्ट्रपति भवन के दर्शन
लुट्येन्स की दिल्ली की इस शानदार कृति को जिसे उन्होंने एक ‘पूर्ण इकाई, उत्तम और अभिन्न’ के रूप में वर्णन किया है, अब अतुल्य भारत अभियान के माध्यम से जनता के लिए भी खोल दिया गया है। इस योजना से राष्ट्रपति मुखर्जी इस सुंदर भवन, अर्थात् राष्ट्रपति भवन को अपने देश के लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं। इस कलाकृति के द्वारा यात्रा को तीन सर्किट में बांटा गया है। सर्किट 1 में राष्ट्रपति भवन का मुख्य भवन शामिल है जिसमें इसके प्रधान कमरे जैसे दरबार हॉल, अशोक हॉल, बैंक्वेट हॉल, ड्राइंग रूम आदि शामिल हैं। सर्किट 2 में राष्ट्रपति भवन संग्रहालय की यात्रा शामिल है, जबकि सर्किट 3 में राष्ट्रपति भवन के प्रसिद्ध उद्यान, मुगल उद्यान, औषधीय उद्यान और आध्यात्मिक उद्यान का दौरा शामिल है।
राष्ट्रपति भवन की मुख्य इमारत और उद्यान सप्ताह के चार दिन, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार को भ्रमण के लिए खुले रहते हैं, जबकि राष्ट्रपति भवन संग्रहालय परिसर सोमवार को छोड़कर सभी दिन खुला रहता है। भवन के मुगल और अन्य उद्यान अगस्त से मार्च तक प्रत्येक गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार को खुले रहते हैं। यहां भ्रमण का समय प्रात: 09 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक तय है।
राष्ट्रपति भवन का निर्माण
12 दिसंबर को 1911 का दिल्ली दरबार किंग जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया। दरबार में सबसे महत्त्वपूर्ण घोषणा जिसे लगभग एक लाख लोगों ने सुना, ब्रिटिश भारत की राजधानी कलकत्ता से बदलकर दिल्ली करना था। कलकत्ता को वाणिज्य केंद्र के रूप में जाना जाता था जबकि दूसरी ओर, दिल्ली शक्ति और शान का प्रतीक थी। घोषणा के पश्चात, शाही आवास की खोज अत्यावश्यक हो गई थी। उत्तर का किंग्जवे कैंप पहली पसंद थी। एक ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुट्येन्स को भारत की नई राजधानी की योजना बनाने के लिए चुना गया और वह दिल्ली नगर योजना समिति का भाग थे जिसका कार्य स्थल और उसके नक्शे का निर्माण करना था। सर लुट्येंस और उनके सहयोगी, जो स्वच्छता विशेषज्ञ थे, को उत्तरी क्षेत्र यमुना नदी के समीप होने के कारण बाढ़ के प्रति अधिक संवेदनशील लगा। इस प्रकार, दक्षिणी ओर की रायसीना पहाड़ी, जहां खुला मैदान और ऊंचा स्थान और बेहतर जल निकासी थी, वायसराय हाऊस के लिए उपयुक्त स्थान प्रतीत हुआ।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन ने सही कहा है, ‘‘इस पहाड़ी पर प्रासाद दृश्यावली का मुकुट लगती है। मीलों दूर से दिखने वाला यह प्रासाद क्षितिज पर एक ऐसे स्मारक की भांति स्थित है जो बिलकुल अलग प्रतीत होता है। यह इमारतों में एक कंचनजंघा है जिसे दिल्ली की गर्मी की धूल भरी धुंधलाहट तथा इसकी सर्दियों का कोहरा ढक देता है, अनावृत्त कर देता है। एक आकर्षक ढांचा जो निकट भी और दूर भी लगता है, देखने में यह एकदम नजदीक प्रतीत होता है परंतु आवरण के पीछे छिप जाता है।’’
चुने गए स्थान की चट्टानी पहाड़ियों को विस्फोट से तोड़ा गया था तथा वायसराय के आवास और अन्य कार्यालयी भवनों के निर्माण के लिए भूमि समतल की गई। इस स्थान पर शिलाओं ने मजबूत नींव के रूप में अतिरिक्त फायदा पहुंचाया। निर्माण सामग्री के लाने ले जाने के लिए इमारतों के चारों ओर विशेष तौर पर एक रेलवे लाइन बिछाई गई। चूंकि नगर की योजना नदी से दूर बनाई गई थी और दक्षिण में कोई नदी नहीं बहती थी इसलिए पानी की सभी जरूरतों के लिए जमीन के भीतर से पम्प द्वारा पानी निकाला गया। इस क्षेत्र की अधिकतर भूमि जयपुर के महाराजा की थी। राष्ट्रपति भवन के अग्रप्रांगण में खड़ा जयपुर स्तंभ दिल्ली को नई राजधानी बनाने की स्मृति में जयपुर के महाराजा, सवाई माधो सिंह ने उपहार में दिया था।
राष्ट्रपति भवन के निर्माण लगा कितना समय ?
राष्ट्रपति भवन के निर्माण में सत्रह वर्ष से अधिक समय लगा। तत्कालीन गवर्नर जनरल तथा वायसराय लॉर्ड हॉर्डिंग के शासन काल में इसका निर्माण कार्य आरंभ हुआ था। वे चाहते थे कि इमारत चार वर्ष में पूरी हो जाए। लेकिन 1928 के शुरू में भी इमारत को अंतिम रूप देना असंभव था। तब तक प्रमुख बाहरी गुंबद बनना शुरू भी नहीं हुआ था। यह विलंब मुख्य रूप से प्रथम विश्व युद्ध के कारण हुआ था। अंतिम शिलान्यास भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन ने किया और वह 6 अप्रैल, 1929 को नवनिर्मित वायसराय हाऊस के प्रथम आवासी बने।
किसने बनाया राष्ट्रपति भवन ?
राष्ट्रपति भवन में मुख्य भवन का निर्माण हारून-अल-रशीद ने किया जबकि अग्रप्रांगण को सुजान सिंह और उनके पुत्र शोभा सिंह ने बनाया। ऐसा अनुमान है कि इस महलनुमा इमारत के निर्माण में सात सौ मिलियन ईंटें और तीन मिलियन क्यूबिक फुट पत्थर लगा और तकरीबन तेईस हजार श्रमिकों ने काम किया। वायसराय हाऊस के निर्माण की अनुमानित लागत 14 मिलियन रुपए आई।
राष्ट्रपति भवन निर्माण में लगी कितनी लगत ?
आखिरी पत्थर भारत के वाइसराय और गवर्नर-जनरल लॉर्ड इरविन, और 6 अप्रैल, 1929 को नवनिर्मित वाइसराय हाउस के पहले अधिवासर द्वारा रखे गए थे। मुख्य भवन हरान-अल-रशीद ने बनाया था, जबकि फोरकोर्ट द्वारा किया गया था सुजन सिंह और उनके पुत्र सोभा सिंह यह अनुमान लगाया गया है कि सात सौ मिलियन ईंट और तीन लाख क्यूबिक फीट पत्थर इस विशाल संरचना के निर्माण के लिए चले गए थे जिसमें करीब 21 हजार मजदूर काम कर रहे थे। वाइसराय हाउस के निर्माण की अनुमानित लागत 14 मिलियन रुपए बताई जाती है।
सर एडविन लुट्येंस की संकल्पना एक ऐसे भवन का निर्माण करने की थी जो आने वाली शताब्दियों तक खड़ा रहे। उनका मानना था, ‘‘वास्तुशिल्प अन्य किसी कला से कहीं अधिक प्राधिकारी की बौद्धिक प्रगति को प्रस्तुत करता है।’’ लुट्येंस इस भवन के वास्तुशिल्प और अभिकल्पना के बारे में बहुत संजीदा थे तथा प्राचीन यूरोपीय शैली को पसंद करते थे। एच आकार का भवन एक भव्य शैली में विस्तृत भौगोलिक भिन्नताओं को दर्शाता है।
इसके बावजूद, इस वास्तुशिल्पीय डिजायन में भारतीय वास्तुशिल्प की अनेक विशेषताएं समाहित की गई हैं। उदाहरण के रूप में, गुंबद सांची के स्तूप से प्रेरित था; छज्जे, छतरी और जाली तथा हाथी, कोबरा, मंदिर के घंटे आदि जैसे नमूनों पर भारतीय छाप है। इस परियोजना में उनके सहयोगी हरबर्ट बेकर थे जिन्होंने नॉर्थ ब्लॉक और साऊथ ब्लॉक का निर्माण किया था। लुट्येंस और बेकर ने दिल्ली के बहुत सारे डिजायन बनाए जिनमें से अधिकांश को राष्ट्रपति भवन संग्रहालय में संरक्षित और प्रदर्शित किया गया है।