दलितों के बीच फूट डालने का काम करेगा कोटे में कोटाः कमलेश बनारसीदास

चंडीगढ़ की पूर्व मेयर बोलींः सबसे पहले सामान्य वर्गों में क्रीमी लेयर तय हो

CHANDIGARH, 14 AUGUST: सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी कोटे में कोटा दिए जाने की मंजूरी को लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है। दलित समुदाय के तमाम जनप्रतिनिधि इसका विरोध कर रहे हैं। अब चंडीगढ़ की पूर्व मेयर कमलेश बनारसीदास भी इस मामले को लेकर सामने आई हैं। उन्होंने एक बयान जारी कर कहा कि एससी-एसटी के कोटे में कोटे का प्रावधान दलितों में फूट डालने का काम करेगा। ये भारतीय सामाजिक ताने-बाने के लिए बिल्कुल उचित नहीं है। बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के बनाए संविधान में एससी-एसटी के लिए तय की गई आरक्षण प्रणाली में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है।

पूर्व मेयर कमलेश बनारसीदास ने कहा कि भारत में सदियों से दलितों के साथ उच्च जातियों द्वारा भेदभाव, छुआछूत, घृणा का बर्ताव किया जाता रहा है। अपने समय में डा. अम्बेडकर ने खुद दलितों पर अत्याचारों को देखा, महसूस किया तथा भुगता भी। कमलेश बनारसीदास ने कहा कि दलित चाहे कितना भी पढ़ लें, उन्हें कितना भी ज्ञान हो लेकिन दलितों के साथ उच्च जातियों का भेदभावपूर्ण व्यवहार खत्म नहीं होगा। इसको डा. अंबेडकर खूब अच्छी तरह समझ चुके थे। इसलिए बाबा साहब डा. भीमराव अंबेडकर ने संविधान में दलितों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की थी, जिसकी वजह से आज दलित समाज के कुछ लोगों ने तरक्की की तो कुछ लोगों को बर्दाश्त नहीं हो रहा है। दलितों के साथ उच्च जातियों का भेदभावपूर्ण व्यवहार आज भी जारी है।

कमलेश बनारसीदास ने कहा कि सामान्य वर्गों के लोग सदियों से सत्ता-शासन व प्रशासन में हैं, उनमें आज तक क्रीमी लेयर क्यों नहीं है। सबसे पहले सामान्य वर्गों में क्रीमी लेयर तय हो। फिर वह अपना सब जगह से अधिकार छोड़ें और अपने वर्गों में जितने भी गरीब या पिछड़े रह गए हैं, उनको अधिकार दें। न कि दलितों की आरक्षण व्यवस्था पर नजर डालें। उन्होंने कहा कि अभी तो सरकारी नौकरियों में भी सभी पात्र दलितों को प्राथमिकता पर भर्ती नहीं किया जा रहा है, इसलिए दलितों की सैकड़ों पोस्टें ख़ाली रह जाती हैं। जिनको नौकरी मिल भी रही है, कुछ लोग क्रीमी लेयर की बात करके उनकी नौकरी भी छीनने की कोशिश कर रहे हैं।

पूर्व मेयर कमलेश बनारसीदास ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर फैसला देने वाले सात जजो में कितने जज दलित थे। दलितों के लिए फैसले में दलित जजों का ही बहुमत न हो तो ये कैसा न्याय है। उन्होंने कहा कि इस फेसले ने यह भी बता दिया है कि कोर्ट में अभी दलित जजों की कितनी संख्या है। कमलेश बनारसीदास ने कहा कि दलितों का हक छीनकर सामान्य वर्गों को दिया जाएगा तो दलित इसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेंगे।

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