CHANDIGARH: पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने शुक्रवार को पंजाब विधानसभा में सदन का नेतृत्व करते हुए केंद्र द्वारा तीन खेती कानून बिना शर्त वापस लेने की मांग की। उन्होंने खेती कानूनों के पीछे के केंद्र के असली इरादे को बेनकाब करने के लिए राष्ट्र से 10 सवाल पूछते हुए कहा कि इन कानूनों को किसान और राज्य किसी भी कीमत पर मंज़ूर नहीं करते।
उन्होंने भारत सरकार को यह भी अपील की कि सुखद हल के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए आंदोलनकारी किसानों के खि़लाफ़ दर्ज सभी मामले और नोटिस वापस लिए जाएं।
केंद्र की तरफ से लाए खेती कानूनों को रद्द करने का प्रस्ताव लाते हुए मुख्यमंत्री ने विधानसभा में ऐलान किया कि इन कानूनों को मंज़ूर नहीं किया जा सकता और इनको किसानों को नुक्सान पहुंचाण के लिए ज्यों का त्यों नहीं रख सकते क्योंकि ये न सिफऱ् सहकारी संघवाद के सिद्धांतों के खि़लाफ़ हैं बल्कि इनका उद्देश्य स्पष्ट तौर पर निरार्थक है।
प्रस्ताव जो बाद में सदन में उपस्थित सदस्यों द्वारा सर्वसम्मति के साथ पास हो गया, सदस्यों के भारत सरकार के ‘ग़ैर जिम्मेदारना और असंवेदनशील व्यवहार’ के खि़लाफ़ नाराजग़ी ज़ाहिर करता है। इससे स्थिति बिगड़ गई है और किसानों में गुस्सा बढ़ा है। इसमें किसानों और राज्य के हित में खेती कानूनों को बिना शर्त वापस लेने और एम.एस.पी. आधारित अनाज की सरकारी खरीद की मौजूदा प्रणाली को जारी रखने की माँग की गई है।
मुख्यमंत्री द्वारा इस मुद्दे पर दिए जा रहे भाषण के दौरान अकाली दल के विधायकों को ग़ैर-जिम्मेदारना व्यवहार के कारण स्पीकर द्वारा निलंबित कर दिया गया था और आप के सदस्यों ने वोटिंग से पहले वॉकआउट कर दिया था।
कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने प्रस्ताव को विधानसभा में पेश करते हुए कहा कि शायद इन कानूनों का उद्देश्य किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य पूरा करना था परन्तु ऐसा नहीं लगता। किसान इनको अपनी रोज़ी रोटी के लिए ख़तरा मानते हैं और इसके चलते उन्होंने इन कानूनों के खि़लाफ़ संघर्ष शुरू कर दिया और इनको वापस लेने की माँग कर रहे हैं। 5 जून, 2020 जब से ये तीन ऑर्डीनैंस केंद्र द्वारा लाए गए हैं, तभी से राज्य सरकार द्वारा इनका विरोध शुरू करने का हवाला देते हुए उन्होंने इस बात को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया कि केंद्रीय खेती कानूनों को निष्प्रभाव करने के लिए पंजाब विधानसभा द्वारा पास किये गए बिलों को अभी तक राष्ट्रपति ने सहमति नहीं दी जोकि भारतीय संविधान के आर्टीकल 254 (2) लागू करने के लिए ज़रूरी है।
केंद्रीय खेती कानूनों को तुरंत रद्द करने की जरूरत पर जोर देते हुये मुख्यमंत्री ने मुल्क के आगे 10 अहम सवाल रखे जो इनकी कमियों का पर्दाफाश करती हैं कि यह कानून किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं। उन्होंने सवाल किये कि-1. पूरी तरह से अनियमित प्राईवेट मंडियों का लाभ किस को होगा?2. प्राईवेट मंडियों में मंडी फीस, सैस और टैक्सों की 100 प्रतिशत माफी का लाभ किस को होगा?3. सरकारी अधिकारियों को प्राईवेट मंडी में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की पेशकश से रोकने का लाभ किस को होगा?4. जब हम आढ़तिया सिस्टम को खत्म कर दिया तो इस लाभ किस को होगा क्योंकि कानून के मुताबिक आढ़ती सरकार द्वारा तय कीमतों के अनुसार फसल की सफाई, फसल को उतारने, भराई करने और थैलों की सिलाई समेत मंडियों में सेवा प्रदान करने के लिए पाबंद हैं?5. इस समय पर मंडी फीस/चार्ज की अदायगी खरीददार द्वारा किये जाना लाजिमी है तो जब किसानों से यह वसूलियां करने की आजादी से मंडियों को अनियमित कर दिया गया तो इसका लाभ किस को होगा?6. जब प्राईवेट मंडियों को मंडी में किसी भी गतिविधि के लिए सर्विस चार्ज तय करने की आजादी दे दी गई तो इसका लाभ किस को होगा?7. जब किसानों को कोरर्पोरेटों से समझौता कर लेने से सम्बन्धित किसी भी विवाद के लिए सिवल अदालत तक पहुँच करने के लिए रोक दिया गया तो इसका लाभ किस को होगा?8. जब किसान और कोरर्पोरेट के दरमियान किसी भी विवाद में दखल देने के लिए सरकार को अयोग्य ठहरा दिया गया तो इसका लाभ किस को होगा?9. जब प्राईवेट व्यक्तियों/कोरर्पोरेटों की तरफ से अनाज भंडार कर लेने की सीमा खत्म कर दी गई तो इसका लाभ किस को होगा?10. जब बीज और खादों की तय शर्तों को पूरी तरह नियंत्रण मुक्त कर दिया गया और सरकार को इसलिए किसी भी पैमाने को तय करने से अयोग्य ठहरा दिया गया तो इस का लाभ किस को होगा?मुख्यमंत्री ने कहा कि चाहे कोई भी खुल कर बोलने की हिम्मत न करे परन्तु इन सवालों के जवाब स्पष्ट हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार भलीभाँति जानती है कि भारत सरकार के पास इन कानूनों को वापिस लिए जाने के बिना कोई चारा नहीं है और परखी हुई मौजूदा खेती मंडीकरण प्रणाली को जारी रखने की इजाजत दी जाये जिससे किसानों और खेत कामगारों की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा को यकीनी बनाया जा सके।
प्रस्ताव
सदन अफसोस जाहिर करता है कि भारत सरकार ने नये खेती कानूनों ‘किसानी फसल व्यापार और वाणिज्य (उत्साहित करने और आसान बनाने) एक्ट’ 2020, ‘जरूरी वस्तुएँ (संशोधन) एक्ट’ 2020 और ‘किसानों के (सशक्तिकरण और सुरक्षा) कीमतों के भरोसे और खेती सेवाओं संबंधी करार एक्ट’ 2020 के विरुद्ध किसान आंदोलन से पैदा हुए मौजूदा संकट को न तो हल किया है और न ही भारत के राष्ट्रपति ने भारतीय संविधान की धारा 254 (2) के अंतर्गत 20 अक्तूबर, 2020 को पास किये गए संशोधन बिलों, किसान फसल, व्यापार और वाणिज्य (उत्साहित करने और आसान बनाने) (विशेष उपबंध और पंजाब संशोधन) बिल -2020, ‘किसानों के (सशक्तिकरण और सुरक्षा) कीमत के भरोसो संबंधी करार और खेती सेवाओं (विशेष उपबंध और पंजाब संशोधन) बिल-2020 और जरूरी वस्तुएँ (विशेष व्यवस्थाएं और पंजाब संशोधन) बिल-2020 और ‘दा कोड आफ सिविल प्रोसीजर (पंजाब संशोधन) बिल-2020 को सहमति दी।
प्रस्ताव के मुताबिक इस निष्पक्ष और गैर-जिम्मेदाराना रवैये ने स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है और किसानों के दरमियान बेचैनी और गुस्सा बढ़ा है जो नये केंद्रीय खेती कानूनों के खिलाफ शांतमयी आंदोलन कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में न सिर्फ बड़ी संख्या में किसानों और खेत कामगारों का जीवनयापन बुरी तरह प्रभावित हुआ बल्कि राज्य में कारोबार, व्यापार और उद्योग को भी बड़े घाटे का सामना करना पड़ा। यहाँ तक कि अब तक 125 किसानों और खेत कामगारों की कीमती जाने भी चलीं गई। भारत सरकार के इस पक्षपाती और अनुचित रवैये के नतीजे के तौर पर किसान इन नये खेती कानूनों को रद्द करने की माँग पर डटे हुए हैं।
सदन यह प्रस्ताव करता हुआ एक बार फिर भारत सरकार को किसानों और राज्य के बड़े हितों के मद्देनजर बिना शर्त यह कानून वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर आधारित अनाज की खरीद की मौजूदा प्रणाली को जारी रखने की अपील करता है