आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी को कवियों ने कविताओं से किया नमन

CHANDIGARH: “आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी भारतीय समाज और संस्कृति के समवाह रचनाकारों में से हैं। निबंध, आलोचना, उपन्यास में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। वे मानवीय मूल्यों के पोषक तथा समाज और संस्कृति के अग्रसर रहे हैं।” यह उद्गार आज साहित्य व कला विकास परिषद, चंडीगढ़ की विशेष ऑनलाइन गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में शिक्षाविद और कवि प्रोफेसर अशोक सभरवाल ने व्यक्त किए। अध्यक्षा के रूप में कवियत्री डॉ. किरण वालिया उपस्थित रहीं। इससे पूर्व परिषद के अध्यक्ष प्रेम विज ने अतिथियों का स्वागत किया और हाल ही में बिछड़े वरिष्ठ साहित्यकार डॉ नरेंद्र मोहन और केदारनाथ केदार को श्रद्धांजलि दी। कार्यक्रम का संचालन नीरू मित्तल नीर तथा धन्यवाद डॉ विनोद शर्मा और सरिता मेहता ने किया।

डॉ. किरण वालिया ने एक स्त्री की छोटी सी चाहत “चाय की एक प्याली” को शब्दों में बांधा। डॉ विनोद शर्मा ने “दिन जीवन के यूं ही महक जाते सुकर्म करते महक फैलाते” सुनाई। अपनी कविता में प्रेम विज ने मां और बच्चे के रिश्ते को अपरिभाषित बताया और सफेद कपड़ो में घूमते हुए फरिश्तों का जिक्र किया। डॉ अनीश गर्ग ने कविता “इतना आसान नहीं होता विरह के गीत लिखना” सुनाई। डॉ. प्रज्ञा शारदा ने अपनी कविता “बुद्ध तुम कहां हो” सुनाई। डॉ सरिता मेहता ने “बड़ा कशमकश का दौर है ना कहीं ओर ना कहीं छोर है” प्रस्तुत की। नीरू मित्तल नीर ने “जिंदगी तेरे प्रश्नपत्र इतने मुश्किल क्यों हैं” सुनाई।

इनके अलावा विजय कपूर, आर के मल्होत्रा, आर के भगत, राशि श्रीवास्तव, अलका कांसरा, बीएस चौहान, नीरजा शर्मा, बीके गुप्ता, डेज़ी बेदी जुनेजा और हरेंद्र सिन्हा ने अपनी खूबसूरत रचनाओं से गोष्ठी में चार चांद लगा दिए।

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