प्राचीन काल से हमारी संस्कृति हमारी पहचान का हिस्सा: अरुण सूद

चंडीगढ़ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने भाग लिया बंगाली ज्वैलर्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित दुर्गा पूजा में

CHANDIGARH: हमारे देश की संस्कृति की जड़ें इतनी सुदृढ़ हैं कि हमारे में से कोई भी व्यक्ति किसी अन्य स्थल पर बस जरूर जाता है, परन्तु वो अपनी सभ्यता, संस्कृति को वहां पर भी संजो कर रखता है। पुरातन समय से हमारी परम्पराएं, हमारी संस्कृति हमारी पहचान का हिस्सा हैं। ये बात भारतीय जनता पार्टी चंडीगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष अरुण सूद ने बंगाली ज्वैलर्स एसोसिएशन चंडीगढ़ द्वारा सेक्टर 37 स्थित भगवान परशुराम भवन में आयोजित श्री दुर्गा पूजा की रजत जयंती के दौरान कही। इस अवसर पर उनके साथ पार्टी के जिला अध्यक्ष रविन्द्र पठानिया, महिला मोर्चा की प्रदेश महामंत्री नेहा अरोड़ा, जिला महामंत्री रवि रावत और वैभव पराशर, युवा मोर्चा के प्रदेश महामंत्री जसमनप्रीत सिंह, महिला मोर्चा जिला अध्यक्ष रुचि कपूर भी उपस्थित थीं।

गौरतलब है कि बंगाली ज्वैलर्स एसोसिएशन गत 25 वर्षों से मां दुर्गा की पूजा-अर्चना का आयोजन करती आ रही है और इस बार इसकी रजत जयंती मनाई जा रही है। संस्था के सचिव शान्ति राम माजी ने बताया कि ये पूजा 11 अक्टूबर से शुरू हुई और 19 अक्टूबर तक चलेगी | आज महाष्टमी पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण सूद ने अपने साथियों के साथ सर्वप्रथम मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की और उसके बाद रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लिया। संस्था के अध्यक्ष अनिल माजी व अन्य ने गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया। उपस्थित सभी लोगों को नवरात्र, विजय दशमी की बधाई देते हुए अरुण सूद ने कहा कि हमारे देश में देवताओं के साथ- साथ देवी के रूप को भी पूजा जाता है। ये मां का स्वरूप ही है कि जब-जब संसार में ममता लुटाने की बात हो तो मां को प्रथम माना जाता है और जहां-जहां महिषासुर जैसे राक्षसों का अंत करना हो तो ये मां चंडी का रूप धारण करके उसका संहार करती है।

दुर्गा पूजा के आयोजन के बारे में बताते हुए माजी ने कहा कि बंगाली हिंदुओं के लिए दुर्गा पूजा से बड़ा कोई उत्सव नहीं है। इसलिए उसी की तर्ज पर चंडीगढ़ में भी उनकी संस्था ने भव्य पंडाल का निर्माण किया है, जिसमें दुर्गा की प्रतिमा महिषासुर का वध करते हुए बनाई गई है। दुर्गा के साथ अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी बनाई गई हैं। देवी के पीछे उनका वाहन शेर , दाईं ओर सरस्वती और कार्तिका, और बाईं ओर लक्ष्मी-गणेश हैं। साथ ही छाल पर शिव की प्रतिमा या तस्वीर भी है। इस पूरी प्रस्तुति को चाला कहा जाता है। देवी त्रिशूल को पकड़े हुए होती हैं और उनके चरणों में महिषासुर नाम का असुर होता है। उन्होंने बताया कि दुर्गा पूजा के लिए चली आ रही परंपराओं में चोखूदान सबसे पुरानी परंपरा है। ‘चोखूदान’ के दौरान दुर्गा की आंखों को चढ़ावा दिया जाता है। अष्टमी के दिन अष्टमी पुष्पांजलि का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग सुबह-सुबह उठ कर दुर्गा को फूल जरूर अर्पित करते हैं।

संध्या आरती का इस दौरान खास महत्व है। संध्या आरती नौ दिनों तक चलने वाले त्योहार के दौरान रोज शाम को की जाती है। संगीत, शंख, ढोल, नगाड़ों, घंटियों और नाच-गाने के बीच संध्या आरती की रस्म पूरी की जाती है। उन्होंने बताया कि पारम्परिक वेशभूषा में विजयदशमी वाले दिन महिलाएं सिंदूर खेला करेंगी और एक-दूसरे को सिंदूर लगाएंगी। इसी के साथ समापन होगा पूरे उत्सव का। इस दौरान पारम्परिक धुनुची नृत्य भी पेश किया जाएगा। धुनुची नृत्य असल में शक्ति नृत्य है। बंगाल पूजा परंपरा में यह नृत्य मां भवानी की शक्ति और ऊर्जा बढ़ाने के लिए किया जाता है। धुनुची में नारियल की जटा व रेशे (कोकोनट कॉयर) और हवन सामग्री (धुनी) रखी जाती है। उसी से मां की आरती की जाती है। धुनुची नृत्य सप्तमी से शुरू होता है और अष्टमी और नवमी तक चलता है।

error: Content can\\\'t be selected!!