CHANDIGARH, 29 SEPTEMBER: सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के करनाल आगमन पर विशाल निरंकारी संत समागम का आयोजन सेक्टर-12 स्थित मिनी सचिवालय के ग्राउंड में किया गया। इस संत समागम मे हरियाणा के अतिरिक्त दिल्ली, चंडीगढ़, पंजाब एवं उतर प्रदेश से आए श्रद्वालु भक्तों ने सम्मिलित होकर सत्गुरू माता जी के प्रवचनों द्वारा स्वयं को सराबोर किया और उनकी छत्रछाया में समागम का भरपूर आनंद प्राप्त किया।
नवंबर माह में होने वाले 75वें सन्त समागम का जिक्र करते हुए सतगुरु माता जी ने करनाल शहर के नाम को सेवा से जोड़ते हुए कहा कि कर नाल (हाथों से) सेवा करनी है। अहंकार को त्याग करके की गई सेवा श्रेष्ठ होती है। सेवा केवल एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर ही नहीं की जाती, अपितु दिनचर्या में जो भी कार्य निरंकार प्रभु के अहसास में हो रहे हैं, वो सेवा है। जिस प्रकार पानी चाहे झरने से बहे या तालाब में हो, किन्तु वह रहेगा पानी ही। सत्गुरू माता जी ने कहा कि निरंकार से जुडऩे के लिए तीन महत्वपूर्ण एवं सरल साधन सेवा, सुमिरण, सत्संग है जिनसे जुड़कर हमारे मन के भाव सुनहरे होते चले जाते है, फिर जीवन का हर पल भक्तिमय बन जाता है। परमात्मा श्रेष्ठ एवं पूर्ण है और इसकी बनाई हुई सृष्टि भी उतनी ही पूर्ण है किन्तु यह जानते हुए भी कि हम इस पूर्ण के अंश है फिर भी हम एक दूसरे के लिए नफरत, ईष्र्या, वैर जैसे नकरात्मक भावों को मनों में बसाते है। अत: ऐसे भावों का त्याग करके हर पल में भक्ति भरा जीवन जीए।
सत्गुरु माता जी ने बगुले एंव हंस का उदाहरण देते हुए समझाया कि बगुला और हंस दोनों देखने में लगभग एक समान होते है किन्तु दोनों के स्वभाव में बहुत अंतर होता है। बगुला जहां छल कपट को अपनाता है वहीं हंस चतुर, चालाकियों से दूर पवित्र, स्वच्छ हृदय का होता है। सत्गुरू माता जी का हमें समझाने का भाव यही कि चाहे हम सभी संत कहलाते है किन्तु वास्तविक रूप में हम योग्य तभी बनते है जब हमारे हृदय निर्मल और नम्रता प्रेम, करूणा जैसे मानवीय गुणों से युक्त हों। करनाल ज़ोन के ज़ोनल इंचार्ज श्री सतीश हंस ने सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज का करनाल पहुंचकर सभी श्रद्धालुओं एव प्रभु प्रेमीयों को अपना आशीर्वाद प्रदान करने के लिए हृदय से आभार व्यक्त किया। इसके साथ ही प्रशासन एवं स्थानिक सज्जनों के सहयोग के लिए भी धन्यवाद प्रकट किया।