कृषि मंत्री रणदीप नाभा ने इन कानूनों को देश के संघीय ढांचे पर हमला करार दिया
सदन ने सभी फसलों के लिए एम.एस.पी. लाजिमी करने की मांग की
CHANDIGARH: पंजाब के कृषि मंत्री रणदीप सिंह नाभा ने तीनों कृषि कानूनों को संघीय ढांचे पर हमला करार देते हुये आज इन काले कानूनों के विरोध में प्रस्ताव पेश करते हुये किसानी की रक्षा के लिए इन कानूनों को तुरंत रद्द करने की माँग की।
पंजाब विधान सभा के विशेष तौर पर बुलाए गए इस सत्र के दौरान इस बात पर चिंता ज़ाहिर की गई कि राज्य सभा में विवादित बिलों के पास होने पर विरोधी पक्ष की संख्या के आधार पर विभाजन की माँग को स्वीकार नहीं किया गया था।
प्रस्ताव में कहा गया है कि समवर्ती सूची की एंट्री 33 व्यापार एवं वाणिज्य सम्बन्धित है और कृषि न तो व्यापार और न ही वाणिज्य है। किसान न तो व्यापारी है और न ही व्यापारिक गतिविधियों में शामिल है। किसान सिर्फ़ काश्तकार /उत्पादक होते हैं, जो अपनी उपज को ए.पी.एम.सी. मंडी में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर या व्यापारी के द्वारा निर्धारित कीमत पर बेचने के लिए लाते हैं।
पंजाब विधान सभा ने केंद्र सरकार की तरफ से समवर्ती सूची की एंट्री 33 (बी) में खाद्य पदार्थ शब्द को कृषि सामग्री (कृषि उपज) के समान होने की गलत व्याख्या करके संसद को गुमराह करने के काम की निंदा की और कहा गया कि केंद्र सरकार की तरफ से जो सीधे तौर पर नहीं किया जा सकता था उसको परोक्ष तौर पर प्राप्त करने के लिए के लिए सवालिया और गलत कार्यवाही की गई।
पंजाब विधान सभा ने केंद्र सरकार को याद करवाया कि ए.पी.एम.सी. एक्टों की संवैधानिक वैधता और मंजूरी है। यह राज्य के कानून हैं जो इस धारणा के अधीन बनाऐ गए हैं कि कृषि और कृषि मंडीकरण राज्य का विषय है। एक्टों के अधीन स्थापित की गई नियमित मंडियों की एक कानूनी बुनियाद, बुनियादी ढांचा और एक व्यापारी या सरकारी खरीद एजेंसी द्वारा की गई हर खरीद को दस्तावेज़ी रूप देने के लिए एक अच्छी तरह परिभाषित विधि है। दूसरे तरफ़ ग़ैर-नियमित मंडियों बिना किसी बुनियादी ढांचे, बिना किसी संस्थागत सहायता और बिना किसी जवाबदेही के फज़ऱ्ी व्यापारिक केन्द्रों के समान हैं।
पंजाब विधान सभा किसान हितैशी नियमित मंडियों (ए.पी.एम.सी. मंडियों) को योजनाबद्ध ढंग से ख़त्म करके व्यापारी समर्थकी ग़ैर-नियमित मंडियों के साथ बदलने पर केंद्र सरकार के यत्नों की सख़्त निंदा करती है। पंजाब विधान सभा व्यापारियों और कारपोरेशनों को मार्केट फीस, ग्रामीण विकास फीस आदि का भुगतान किये बिना ग़ैर-नियमित मंडियों से खरीद करने की इजाज़त देने और इस तरह नियमित मंडियों के मुकाबले ग़ैर-नियमित मंडियों को नाजायज फ़ायदा पहुँचाने के लिए दीं गई अनुचित रियायतों पर चिंता महसूस करती है। इससे व्यापार ए.पी.एम.सी. मंडियों से निजी मंडियों में तबदील होगा और राज्य सरकार को वित्तीय नुकसान होने के साथ-साथ ग्रामीण विकास पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
पंजाब विधान सभा का यह विशेष सत्र केंद्र सरकार को याद दिलाता है कि 86 प्रतिशत किसानों के पास बहुत थोड़ी ज़मीन है जो कि बढ़ई, जुलाहे, मिस्त्री और ग़ैर-हुनरमंद मज़दूरों जैसे ग्रामीण श्रमिकों के साथ मिलकर ग्रामीण आर्थिकता की रीढ़ की हड्डी बनते हैं। केंद्र सरकार इन विवादित कानूनों के द्वारा उनकी ज़मीनों और पेशे को छीन कर उनको कारपोरेटों के रहमो-कर्म पर छोडऩे का रास्ता साफ कर रही है।
पंजाब विधान सभा का यह विशेष सत्र संसद में एक विशेष्ज्ञ कानून बनाने की माँग करता है जो कि सीमांत और छोटे किसानों के हितों की रक्षा करे जिससे उनको कॉर्पोरेट के द्वारा होने वाले शोषण से बचाया जा सके जो कटाई के सीजन के दौरान एम.एस.पी. से कम कीमत पर उपज की खरीद कर सकते हैं और इसको भंडार करके उपभोक्ताओं को उच्च कीमतों पर बेच सकते हैं। सुझाए गए विशेष कानून में किसानों को कानूनी गारंटी प्रदान करनी चाहिए कि उनकी उपज की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर नहीं की जायेगी और न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर कृषि उपज की खरीद करना अपराध होगा। पंजाब विधान सभा माँग करती है कि सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद लाजि़मी होनी चाहिए और व्यापक लागतों को ध्यान में रखते हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाना चाहिए।