CHANDIGARH: अपने विशाल सैन्य युद्धाभ्यास और चीन से पेश चुनौती के अभूतपूर्व पैमाने को उजागर करते हुए शनिवार को सुरक्षा एवं विदेशी माहिरों ने सुझाव दिया गया कि भारत को क्वाड जैसी मुद्दा-आधारित भू-रणनीतिक बहुपक्षीय साझेदारी बनाने के लिए और अधिक आक्रामक आचरण अपनाना होगा ताकि ड्रैगन को उसकी हद में रखने के लिए भारत के पूर्ण सामथ्र्य का लाभ लिया जा सके।
एमएलएफ 2020 के दूसरे दिन के दौरान ‘द क्वॉड: दी इमर्जिंग इंडो-पैसिफिक नेवल एलायंस’ के विषय पर वर्चुअल रूप से आयोजित एक विचार-विमर्श के दौरान हमारे पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लाम्बा (सेवानिवृत्त) सहित शीर्ष पैनलिस्टों के प्रमुख हस्तियों के समूह द्वारा विचार व्यक्त किए गए।
चर्चा के दौरान अपने विचार साझा करते हुए, विख्यात रक्षा समालोचक और इंस्टीट्यूट ऑफ साऊथ एशियन सट्डीज़ नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के निदेशक प्रो. सी. राजा मोहन ने कहा कि दिल्ली को अतीत से सीखना चाहिए कि गठजोड़ संबंधी अकादमिक बहस भारत को पेश असाधारण आर्थिक और सुरक्षा चुनौतियों संबंधी अपने निर्णयों को धूमिल न करें।
राजा मोहन ने कहा कि भारत पहले की अपेक्षा अधिक बड़े खतरों का सामना कर रहा है और अब इसे और अधिक साझेदारियों की जरूरत है। उन्होंने एक पक्षपाती समझे जाने के चलते भारत के एक सक्रिय क्वाड भागीदार बनने के प्रति इसकी पूरानी चलती आ रही अनिच्छा संबंधी विचार प्रकट किए।पूरी तरह बदल चुके वैश्विक परिदृश्य, जहां भारत अब निष्पक्ष नहीं रह सकता जैसा कि अब तक हमारी नीति रही है, संबंधी बात करते हुए उन्होंने कहा कि हमें क्वाड को मजबूत करते हुए और अन्य क्षेत्रीय तंत्रों को बढ़ाते हुए कई मोर्चों पर बहुत तेजी से आगे बढऩा होगा।
जिस तरह से चीन आज हमें धमकाता है, उससे हमें मज़बूत अंतरराष्ट्रीय गठबंधन के साथ साझेदारी, जिसके लिए फिलहाल क्वाड एक महत्वपूर्ण केन्द्र बिंदू हो सकता है, के द्वारा सैन्य क्षमता के साथ-साथ राष्ट्रीय आर्थिक क्षमता में सुधार करने की आवश्यकता है।
चर्चा का सचंालन करते हुए, नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा (सेवानिवृत्त) ने भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के चार देशों के एक क्लब के रूप में क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग या क्वाड के गठन संबंधी बात कही, जिसके गठन संबंधी 2007 में तत्कालीन जापानी प्रधान मंत्री शिंजो आबे द्वारा विचार पेश किए गए थे। 2004 के सुनामी के दौरान इन 4 लोकतंत्रों के बीच समन्वय के मद्देनजर बना यह समूह, उस समय ऑस्ट्रेलिया द्वारा चीन से दुश्मनी मोल न लेने के कारण अधर में ही लटका रह गया था। अब क्षेत्र में चीन के आक्रामक और अडिय़ल रवैये के कारण 2017 में इसका महत्व काफी बढ़ गया।
विचार-विमर्श में हिस्सा लेते हुये कॅरियर डिपलोमैट और पूर्व राजदूत श्याम सरन, जो 2004 के दौरान विदेश सचिव थे, जब भारत में सुनामी आई थी, को याद किया कि भारत ने हमारी समुद्री फौजों की तरफ से तत्काल कार्यवाही के लिए बाहरी देशों से सराहा गया है। 2007 के बाद कोआड के पीछे हटने के असली कारण का खुलासा करते हुये सरन ने बताया कि अमरीका, जो वास्तव में समूह की महत्ता को नीचा दिखाना चाहता था क्योंकि वह ईरान परमाणु सौदे को आगे बढ़ाने के लिए चीन और रूस के समर्थन को छोडऩा नहीं चाहता था।
कोआड को फिर सुरजीत करने के कारणों पर प्रकाश डालते हुये उन्होंने कहा कि भारत और जापान, आस्ट्रेलिया समेत दूसरे देशों को अडिय़ल चीन की तरफ से पेश चुनौती के कारण तुरंत फिर से एकजुट होने की जरूरत है। इसके अलावा इन चारों देशों के बीच सुरक्षा सम्बन्ध बहुत समान हैं।वाइस एडमिरल प्रदीप चैहान ने कहा कि कोआड केवल एक समुद्री गठजोड़ ही नहीं है। उन्होंने कहा कि चीन भारत को अपने विरोधियों में से एक मानता है और हम अभी इस चुनौती से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं और इस चुनौती को कम आंक में ले रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि हमें एक तत्काल असमैट्रिक रणनीति बनाने की जरूरत है और चीन को पछाडऩे के लिए अपने सामथ्र्य को बेहतर बना कर अपनी शक्तियों को सभ्यक ढंग से इस्तेमाल करना चाहिए।
आर.सी.ई.पी. का हवाला देते हुये उन्होंने कहा कि अन्य देशों पर काबू पाने के लिए चीन अपनी आर्थिक प्रमुखता को मजबूत कर रहा है। भारत की तरफ से आर.सी.ई.पी से बाहर रहने का फैसला, जिसको चीन ने गलत करार दिया है, वह भूमी-रणनीतक लक्ष्यों को हासिल करने के मुताबिक नहीं है। उन्होंने कहा कि चीन बढ़ रहे हौसलों को रोकने के लिए हमें कुछ साहसिक कदम उठाने की जरूरत है।पुनर-सुरजीती की रफ्तार पर संतोष जताते हुये सरन ने कहा कि भारत समझौतेे के लिए खुल कर आगे बढ़ा है परन्तु भविष्य में और ज्यादा भागीदारी बेहतर होगी, विशेष कर एशियान मैंबर देशों सम्बन्धी।
चीन को लताड़ते हुये उन्होंने कहा कि यह गठजोड़ का हिस्सा बनना चीन के सबसे अधिक हित में है क्योंकि चारों देशों का सामथ्र्य एक बड़ी शक्ति के तौर पर काम करता है।पूर्व राजदूत ने दोहराते हुये कहा कि कोआड के भविष्य का रास्ता चीन के रूख पर निर्भर करेगा, कोआड को आगे ले जाने के लिए भारत को झिझकने की जगह हमेशा कोआड को और ज्यादा शक्तिशाली बनाने के लिए अनुकूल वातावरण पैदा करने पर जोर देना चाहिए।