9 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना ने मेघना नदी पार करके पाकिस्तान को पीछे हटने के लिए मजबूर किया
इस युद्ध के सम्मानित सैनिकों ने युद्ध की रोंगटे खड़े कर देने वाली घटनाओं पर प्रकाश डाला
CHANDIGARH: मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल के आखिरी दिन के तीसरे सत्र में बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम की एक बहुत ही महत्वपूर्ण लड़ाई की कहानी पर चर्चा हुई, जो भारतीय वायु सेना और थल सेना द्वारा संयुक्त रूप से लड़ी गई। इस सैशन का शीर्षक ‘‘क्रॉसिंग द रिवर मेघना’’ रहा।इस सैशन का संचालन स्क्वाड्रन लीडर राणा छीना ने किया।
इस सैशन के दौरान मौजूद पैनलिस्टों में सम्मानित सैन्य जनरल थे जिन्होंने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की इस महत्वपूर्ण लड़ाई में भाग लिया। इस लड़ाई को युद्ध इतिहास में ‘‘क्रॉसिंग ऑफ रिवर मेघना’’ के रूप में दर्ज किया गया है।इस सैशन का उद्घाटन लेफ्टिनेंट जनरल गुरबख्श सिंह सिहोटा ने किया, जिन्होंने इस युद्ध में एक पायलट के रूप में अपनी भूमिका निभाई।
उन्होंने विस्तारपूर्वक बताया कि कठिन परिस्थितियों के बावजूद, 9 दिसंबर, 1971 को 5 से 15 किमी लंबी मेघना नदी को पार कर लिया गया और पाकिस्तानी सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा।बाद में, मेजर चंद्रकांत, जिन्होंने यह युद्ध लड़ा और मेघना नदी को पार करते हुए जमीनी लड़ाई में हिस्सा लिया।
उन्होंने इस युद्ध के दौरान लड़ी गई जमीनी लड़ाई का भावुक वर्णन किया। उन्होंने बताया कि चाहे उन्हें जबरदस्त नुकसान हुआ, लेकिन इसके बावजूद भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेनाओं को खदेडऩे और बांग्लादेश को आजाद कराने में अद्वितीय बहादुरी दिखाई।इसके बाद ग्रुप कैप्टन सीएस संधू, जो लड़ाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे, ने लड़ाई की कुछ रौंगटे खड़े कर देनी वाली घटनाओं पर प्रकाश डाला। संधू ने पायलट के रूप में लड़ाई लड़ी।
उन्होंने कहा कि रात के समय हेलीकॉप्टर को उड़ाना बहुत मुश्किल था क्योंकि हेलीकॉप्टर को रात के समय मेघना नदी को पार करना था। उन्होंने बताया कि चूंकि वे दुश्मन के इलाके के ऊपर उड़ रहे थे और न तो हेलीकॉप्टर की नेविगेशन लाइट को चलाया जा सकता था और न ही हेलीकॉप्टर की गति बढ़ाई जा सकती थी। क्योंकि कई हेलिकॉप्टरों ने एक साथ उड़ान भरी थी, उन्होंने बताया कि कैसे हेलीकॉप्टरों ने केवल गति को काबू में रख करके एक दूसरे के बीच दूरी बनाये रखी।
उन्होंने कहा कि उनके हेलीकॉप्टरों पर दुश्मन सैनिकों के द्वारा गोलीबारी की गई, जिससे उनके कई लोग घायल हो गए और उनमें से कुछ की बाद में मौत हो गई। उन्होंने कहा कि आखिरकार उन्होंने कठिन हालातों के बावजूद लड़ाई जीत ली।इसके बाद लेफ्टिनेंट जनरल शमशेर मेहता, जिन्होंने इस लड़ाई में टैंक ब्रिगेड की कमान संभाली, ने टैंक ब्रिगेड द्वारा किए गए बलिदानों और मौतों पर प्रकाश डाला।