CHANDIGARH: मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल-2020 के तीसरे दिन ‘‘प्लूरल्ज़्िम, डिफेंस फोर्सिस एंड द क्व्श्चन ऑफ हू इज़ ऐन इंडियन’’, पर एक विशेष सैशन आयोजित किया गया जिसमें जनरल वीपी मलिक, वित्त मंत्री पंजाब मनप्रीत सिंह बादल, मेजर जनरल एपी सिंह और कर्नल शांतनु पांडे ने भाग लिया।
चर्चा का संचालन करते हुए लेफ्टिनेंट जनरल एनएस बराड़ ने कहा कि बहुलतावाद दुनिया में एक बड़ा गंभीर मुद्दा है। इसलिए यह चर्चा हमें इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं पर गहन चर्चा करने में मदद करेगी और यह समझने में मदद करेगी कि कैसे हमारी सेनाएं विविधता से भरे भारत देश में एक छत के नीचे अखंडता और शांति के साथ रहती हैं।
मेजर वीपी मलिक ने कहा कि आज हमारे सशस्त्र बल विविधता और एकता की मूल अवधारणा के सच्चे प्रतिबिंब हैं। भारतीय सैनिक विभिन्न वर्गें, धर्मों से संबंध रखते हैं और बैरेकों में एक साथ रहते हैं और एक ही रसोई में पका खाना खाते हैं। धर्मनिरपेक्षता, अनुशासन, अखंडता, निष्ठा वे आवश्यक मूल्य हैं जो हमारे पुरूष और महिला सैनिकों में मौजूद हैं। कुशल और समर्पित सैनिक अपनी सेवाओं से मुक्त होने के बाद भी एक राष्ट्रीय निर्माणकर्ता और आदर्श बने रहते हैं जिससे राष्ट्रीय अखंडता को बनाए रखने के लिए भारतीय सेना को एक आदर्श के रूप में अपनी स्थिति पर हमेशा गर्व करने का अवसर मिलता है।
उन्होंने कहा कि हमें भारतीय सेना में एकता और बहुलतावाद संबंधी बहुत चिंता है। लोग हमारे राष्ट्र का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, वे हमारी सेनाओं को सकारात्मक और निष्पक्ष मानते हैं। और हमारे सामने मुख्य प्रश्न यह है कि हम कैसे अपने राष्ट्रों का निर्माण और अपने लोगों के बीच अंतरराज्यीय राष्ट्रवाद पैदा करें, लेकिन वोट बैंक की राजनीति हमारे लोगों को बाँटती है। राजनीतिक रणनीतिकार क्षेत्रीय और राष्ट्रीय विकास के बजाय सामाजिक इंजीनियरिंग के बारे में बात करते रहते हैं। इसलिए हमारे स्कूलों और कॉलेज की शिक्षा को एनसीसी और अन्य संस्थानों जैसे छात्रों के कार्यक्रमों के माध्यम से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ेगी जो धर्मनिरपेक्ष हैं। वे बहुत उपयोगी भूमिका निभा सकते हैं और इसे हर जगह प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि यह कहते हुए दुख होता है कि पूरे भारत में बड़ी संख्या में स्कूल हैं, लेकिन अभी तक उन्होंने मुख्य रूप से एनसीसी को नहीं अपनाया है।
एम.एल.एफ- 4 के दिलचस्प और महत्वपूर्ण सत्रों में से एक में भाग लेते हुए, वित्त मंत्री मनप्रीत बादल ने कहा कि जहां तक मुगलों का सवाल है, दारा शिकोह जो शाहजहाँ को बहुत पसंदीदा थे और जब सम्राट शाहजहाँ बहुत बीमार थे तो उसी समय औरंगजेब ने लड़ाई के लिए आगरा की ओर कूच करना शुरू कर दिया। जब यह युद्ध हुआ, तो शाही सेना दारा शिकोह के हम में थी, लेकिन अधिकांश सेना ने उसका साथ छोड़ दिया और जो लोग दारा शिकोह और सम्राट शाहजहाँ के समर्थन में खड़े थे, हिंदू राजपूत थे। इसी तरह, महाराजा रणजीत सिंह के समय, ज्यादातर सैनिक मुस्लिम थे और सेनापति इतालवी और फ्रांसीसी थे। उन्होंने यह भी साझा किया कि 1946 तक लगभग 70 प्रतिशत मुस्लिम आबादी था और पंजाब विधान परिषद में केवल 3 मुस्लिम सदस्य थे।
जनरल एपी सिंह ने कहा कि यहां तक कि यहां विभिन्न धर्मों के लोग हैं, हम सभी खुशी से रहते हैं और जातियों में विभिन्नता भी है। उन्होंने कहा कि अगर वह सेना के बारे में बात करें जहां विभिन्न क्षेत्रों, संस्कृति और धर्मों से आने वाले हमारे सैनिक हैं, वे एक साथ रहते हैं और सभी धर्मों और मूल्यों का सम्मान करते हैं।
कर्नल पांडे ने कहा कि छत्रपति शिवा जी महाराज और लक्ष्मी बाई जी की सेना का इतिहास समृद्ध है जो हमारे लिए जातिवाद से परे और प्रेरणादायक थे। इसी तरह, हम एक ही छत के नीचे रहते हैं और हम एक ईश्वर में विश्वास करते हैं और हम किसी भी कीमत पर जीत में विश्वास रखते हैं।
मॉडरेटर एनएस बरार ने 1969 में इनायत अली खान से मिलने के दौरान अपने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा किया जो उन्हें पहली बार सेना के शिविर में ले गए। उन्होंने कहा कि अभी भी हम अच्छे दोस्त हैं और हमने हमेशा एक.दूसरे को त्योहारों पर शुभकामनाएं देते हैं, जब भी मौका मिलता, हम साथ में अच्छा समय बिताते हैं। यह हमारी भारतीय सेना की पहचान को दर्शाता है।
इस सत्र के दौरान, कर्नल सौरभ सिंह शेखावत की एक विशेष वीडियो भी प्रदर्शित की गयी, जिसमें शेखावत ने कहा कि जब मैंने पहला कदम सेना में रखा, तब मेरे सीनियर ने मुझसे मेरी जाति के बारे में पूछा और मैंने तुरंत जवाब दिया हिंदू राजपूत। उन्होंने मुझे गंदे पानी में डुबकी लगाने का आदेश दिया। उसके बाद, उन्होंने फिर से मुझसे मेरी जाति के बारे में पूछा तब मैंने जवाब दिया कि मैं भारतीय सेना का एसएफ/एलीन वालंटियर फोर्स हूं और यही हमारी सेना की ताकत है।