उमंग अभिव्यक्ति मंच की काव्य गोष्ठी में ऑनलाइन जुटीं कई रचनाकार, मां की महिमा का किया गुणगान

PANCHKULA: उमंग अभिव्यक्ति मंच पंचकूला ने मातृ दिवस के उपलक्ष्य में ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया और पर्यावरण को बचाने के लिए खूबसूरत स्लोगन भी दिया। मंच की फाउंडर श्रीमती नीलम त्रिखा व शिखा श्याम राणा ने बताया कि इस काव्य गोष्ठी में ट्राइसिटी के अलावा देश के कई हिस्सों से रचनाकारों ने भाग लिया।

उन्होंने कहा कि श्री साईं फाउंडेशन पुणे के अध्यक्ष संजय भाऊ के साथ मिलकर पर्यावरण को बचाने के लिए एक मुहिम चलाई हुई है, जिसमें राष्ट्रीय स्तर की काव्य गोष्ठी का समय-समय पर आयोजन किया जाता है। उन्होंने कहा कि कोरोना के चलते पिछले 1 वर्ष में अब सभी जान चुके हैं कि पर्यावरण हमारे लिए कितना जरूरी है। अगर अपने आप को सुरक्षित रखना है तो हमें अपनी इस धरा को हरा-भरा भी रखना होगा, ताकि स्वच्छ हवा हम सभी को मिले और हम सब स्वस्थ रहें।

इस मौके पर सभी ने देश में खुशहाली की मंगल कामना करते हुए मां की महिमा का गुणगान किया। रचनाकारों ने कहा कि भगवान के बाद धरती पर मां को ही सर्वोपरि माना गया है। मां की दुआओं में बहुत शक्ति है। काव्य गोष्ठी में नीलम त्रिखा, सोनीमा सत्या, धीरज शर्मा, नीरजा शर्मा, डॉ. प्रज्ञा शारदा, दिलप्रीत, रेणुका, दृष्टि त्रिखा, अलका शर्मा, सुनीता गर्ग, आभा मुकेश साहनी, शहला जावेद, आरती, प्रिया, गीता उपाध्याय, राशि श्रीवास्तव, निशा वर्मा, सीता श्याम, नीरू मित्तल, संगीता शर्मा कुंद्रा, डॉ. ममता सूद आदि ने अपनी रचनाओं के माध्यम से मां बनाने पर ईश्वर का शुक्रिया अदा किया।

नीलम त्रिखा ने अपनी रचना मैं नसीबो वाली मां ने बेटी रतन धन पाया है सुनाई। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. प्रज्ञा शारदा ने शायद इसलिए वह मां कहलाती है रचना पेश की। नीरजा शर्मा ने कहा, मां तो बस मां होती है, बच्चों के दिल की राह होती है…। राशि श्रीवास्तव ने मां का जीवन में महत्व बताते हुए कहा, जीवन जो देती हमको उसे देंगे क्या भला, मां मांगती कहां है कुछ दुआओं के सिवा। आभा साहनी ने कहा, ना छू पाएगी कभी कोई बला भी मुझे, कंपन भरे हाथों का साया जो है सिर पे मेरे।

निशा वर्मा ने कहा, कोई मां को शक्ति कोई आधार, कोई सागर, कोई पतवार तो कोई बेशकीमती उपहार कहता है, पर मां किसी परिभाषा में बांधी नहीं जा सकती, मां को पूरा वर्णित कर सके ऐसा आखर ही कोई नहीं। धीरजा शर्मा ने कहा, जब कभी रिश्तों की गुत्थियां उलझ-उलझ जाती हैं, मां जाने कब चुपके से पास चली आती है। सुनीता गर्ग ने कहा, मां से बढ़कर ना कोई मां तो खुद भगवान है सींचती है अपने खून से चलना भी सिखलाती है। सीता श्याम ने मां की यादों में जीते हुए कहा, जब मां होती थी तो कैसे प्यार और स्नेह जताती थी। मणि शर्मा मनु ने कहा, तू मातृत्व है, व्यक्तित्व है, अस्तित्व है, तू ममता है, छाया है, साया है।

अलका शर्मा ने कहा, मां के पैरों में जन्नत है, हमारी अपनी मन्नत है, श्रेष्ठ विचार है, आत्मा परमात्मा है, मां मां नहीं सर्वात्मा है। रेणुअब्बी रेणू ने कहा, मां ने अपने खून से हमको सींचा, छुपा अपने आंचल में सदा ही भींचा। गीता उपाध्याय ने कहा, तुने मुझे पैदा करके जिंदगी दी, नया नाम दिया, नया परिवेश दिया, करोड़ों जन्म भी कम हैं कैसे करूं तेरा शुक्रिया…।

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