CHANDIGARH: वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) इंडिया और लैक्साई लाइफ साइंसिस प्राइवेट लिमिटेड ने कोविड के उपचार के लिए पेट के कीड़ों की दवा निकोलसमाइड का दूसरे चरण का नैदानिक परीक्षण शुरू कर दिया है। इन कंपनियों को भारतीय औषध महानियंत्रक – डीजीसीआई से नियामक मंजूरी मिल चुकी है। इस फैसले पर सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ शेखर सी मांडे ने प्रसन्नता व्यक्त की है।
सुरक्षा के पहलू से भी इस दवा की कई बार की जा चुकी है जांच
इस परीक्षण के माध्यम से अस्पताल में भर्ती कोविड रोगियों के उपचार में निकोलसमाइड की प्रभावकारिता, सुरक्षा और सहनशीलता का कई बिन्दुओं के माध्यम से मूल्यांकन किया जाएगा। निकोलसमाइड का व्यस्क लोगों और बच्चों में फीता कृमि संक्रमण के उपचार में व्यापक इस्तेमाल किया जा चुका है। सुरक्षा के पहलू से भी इस दवा की कई बार जांच की जा चुकी है और इसे खुराकों के विभिन्न स्तरों पर मानवीय उपयोग के लिए सुरक्षित पाया गया है।
कोविड -19 रोगियों के फेफड़ों में होने वाली सिंकिटिया की समस्या को करेगा दूर
निकोलसमाइड एक जेनेरिक और सस्ती दवा है, जो भारत में आसानी से उपलब्ध है और भारत के लोगों को उपलब्ध कराया जा सकता है। इस परियोजना में किंग्स कॉलेज, लंदन के अनुसंधान समूह द्वारा निकोलसमाइड की पहचान एक आशाजनक पुनर्खरीद दवा के रूप में की गई थी। डीजी-सीएसआईआर के सलाहकार डॉ राम विश्वकर्मा ने बताया कि
क) कोविड -19 के रोगियों के फेफड़ों में देखी गई सिंकिटिया या फ्यूज्ड कोशिकाएं संभवतः SARS-CoV-2 स्पाइक प्रोटीन की फ्यूजोजेनिक गतिविधि के परिणामस्वरूप होती हैं और निकलोसामाइड सिंकिटिया गठन को रोक सकता है।
ख) स्वतंत्र रूप से किए गए सीएसआईआर-आईआईआईएम, जम्मू और एनसीबीएस, बेंगलुरु के सहयोगात्मक अनुसंधान ने हाल ही में प्रदर्शित किया है कि निकलोसामाइड भी एक संभावित SARS-CoV2 प्रवेश अवरोधक है, जो पीएच निर्भर एंडोसाइटिक मार्ग के माध्यम से वायरल प्रवेश को अवरुद्ध करता है।
इन दो स्वतंत्र प्रायोगिक अध्ययनों को देखते हुए, निकोलामाइड अब कोविड-19 रोगियों में नैदानिक परीक्षण के लिए एक आशाजनक उम्मीदवार के रूप में उभरा है।
निकोलसमाइड हो सकता है एक सस्ता और प्रभावी विकल्प
सीएसआईआर-आईआईसीटी हैदराबाद के निदेशक डॉ श्रीवारी चंद्रशेखर ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आईआईसीटी में विकसित उन्नत तकनीक के आधार पर लक्षाई लाइफ साइंसेज द्वारा सक्रिय फार्मास्युटिकल संघटक (एपीआई) बनाया जा रहा है और लैब इस महत्वपूर्ण नैदानिक परीक्षण में भागीदार है, जो परीक्षण सफल होने पर मरीजों के लिए लागत प्रभावी चिकित्सा विकल्प प्रदान कर सकता है।
पिछले साल ही शुरू कर दिए गए थे परीक्षण के प्रयास
लक्षई के सीईओ डॉ राम उपाध्याय ने बताया कि निकलोसामाइड की क्षमता को देखते हुए पिछले साल ही क्लिनिकल परीक्षण करने के प्रयास शुरू किए गए थे। ड्रग रेगुलेटर से मंजूरी मिलने के बाद इस हफ्ते अलग-अलग जगहों पर क्लीनिकल ट्रायल शुरू कर दिया गया है और उम्मीद है कि यह ट्रायल 8-12 हफ्ते में पूरा हो जाएगा। भारतीय अध्ययनों में नैदानिक परीक्षणों के दौरान सृजित सफल नैदानिक साक्ष्य के आधार पर, आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण की मांग की जा सकती है, ताकि कोविड-19 रोगियों के लिए अधिक उपचार विकल्प उपलब्ध हों।