हास्य के रंग-कवियों के संग: रचनाकारों ने कविताओं के जरिए सुनाए लॉकडाउन के अनुभव

CHANDIGARH: उमंग अभिव्यक्ति मंच पंचकूला ने ‘हास्य के रंग, कवियों के संग’ कार्यक्रम का आयोजन किया। ऑनलाइन आयोजित किए गए इस कार्यक्रम में चंडीगढ़ ट्राइसिटी के अलावा कुरुक्षेत्र, कैथल व अंबाला से भी रचनाकारों ने हिस्सा लिया और कोरोनाकाल में लॉकडाउन को जरूरी मानते हुए अपने बहुत सारे खट्टे-मीठे अनुभव हास्य कविताओं के माध्यम से व्यक्त किए। साथ ही जीवन में हंसना कितना जरूरी है, इसके बारे में भी बताया। रचनाकारों ने कहा कि हास्य से इम्युनिटी बढऩे के साथ-साथ इसका स्वास्थ्य पर भी बहुत पॉजिटिव असर पड़ता है।

उमंग अभिव्यक्ति मंच की फाउंडर श्रीमती नीलम त्रिखा ने बताया कि यह मंच इस तरह के कार्यक्रम का आयोजन करता रहता है, जिसमें कोई भी हिस्सा ले सकता है। हास्य कवि सम्मेलन की होस्ट शीनू वालिया थीं। इस कार्यक्रम में चंडीगढ़ से जाने-माने साहित्यकार, व्यंग्यकार अरुण बेताब ने भी हिस्सा लिया और अपनी कविताओं से सभी को खूब हंसाया। कार्यक्रम में नीलम त्रिखा, शिखा श्याम राणा, शीनू वालिया, अलका शर्मा बोस, मणि शर्मा मनु, निशा वर्मा, डा. हरविंदर कौर, दृष्टि त्रिखा, नीरू मित्तल, डॉ. प्रज्ञा शारदा, डॉक्टर ममता सुद कुरुक्षेत्र, कविता रोहिला कुरुक्षेत्र, संगीता शर्मा कुंद्रा, मधु गोयल कैथल, नीरजा शर्मा ने भाग लिया।

हास्य कवि अरुण बेताब ने अपनी बहुत ही चर्चित हास्य कविता, ‘भगवन कलियुग में भी नीचे आकर देखो, धूनी यहां रमा कर देखो’ सुनाई।
नीलम त्रिखा ने हास्य कविता, ‘एक शादीशुदा ने बन कुंवारा लॉकडाउन में खूब मौज उड़ाई’ सुनाई। पंचकूला से अलका शर्मा बोस ने हास्य रस की कविता, ‘एक अपना है लल्लू लाल-शादी करके हुआ बुरा हाल’ सुनाई।

शीनू वालिया ने ब्रैण्ड के पीछे भागती युवा पीढ़ी को अपनी कविता ‘ऐसे देश महान नहीं है, बनाना होगा महान’ से स्वदेशी का संदेश दिया।
नीरजा शर्मा ने ‘ये करोना कौन है ? एक वायरस, जिंदगी लेकर ही रहता है और मैं कौन ? मेरी जिंदगी पति बाथरूम में बंद’ रचना सुनाकर वाहवाही लूटी। अलका शर्मा ने विद्यार्थी और अध्यापक के बीच मूक संवाद से हास्य कविता को प्रस्तुत किया। मधु गोयल कैथल ने ‘कोरोनाकाल में हेयर कटिंग को लेकर मचा हंगामा, गंजा भी तैयार हो गया, पहनकर फटा पाजामा’ सुनाकर सभी को लोटपोट कर दिया।
मणि शर्मा मनु ने ‘बात पुराने जमाने की हंसने और हंसाने की’ रचना सुनाकर तालियां बटोरीं। डॉ. प्रज्ञा शारदा ने ‘कुंडली-पंडित जी ने मिलाई थी. जब हमारी कुंडलियां तो कुंडलियों के मिलने पर मैं बड़ा इतराई थी’ रचना के माध्यम से हंसी की फुहारें छोड़ दीं।

निशा वर्मा ने हास्य रस से ओतप्रोत अपनी कविता, ‘एक पत्नी की कलाकारी से परेशान पति की गाथा सुनाते हुए कहा, ‘तुम्हारी कला के प्रदर्शन का माध्यम में बनूं, इसकी चाह नहीं…।’ कविता रोहिला कुरुक्षेत्र ने अपनी रचना, ‘सोणी-सोणी वेणी लगाकर किया दुल्हन ने श्रृंगार, मेकअप पूरा हो गया, हो गई दुल्हन तैयार’ प्रस्तुत की। डा. हरविंदर कौर ने हास्य कविता ‘बेलन की गाथा’ प्रस्तुत की।

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