महर्षि दयानंद सरस्वती जी का जन्मोत्सव एवं बोधोत्सव धूमधाम से संपन्न
CHANDIGARH: केंद्रीय आर्य सभा, चंण्डीगढ, पंचकूला और मोहाली के तत्वाधान में आर्य शिक्षण संस्थाओं और आर्य समाजों के सहयोग से आर्य समाज सेक्टर 22 में महर्षि जन्म उत्सव एवं बोध उत्सव धूमधाम से संपन्न हो गया है कार्यक्रम के दौरान सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश से पधारे प्रवक्ता डॉ. शिवदत्त पांडे ने कहा कि यह संसार ईश्वर का है इसलिए इसकी व्यवस्था भी ईश्वर के द्वारा ही की गई है। वेद भी यही कहता है इसलिए आर्य समाज विश्व को वैदिक बनाना चाहता है। उन्होंने कहा कि यह संसार हमारा नहीं है।
यह सृष्टि सभी को समान रूप से प्राप्त हुई है। इस ब्रह्मांड को बनाने वाला ईश्वर ही है। उन्होंने कहा कि भाषा एक है। इसे देने वाला वाचस्पति ईश्वर ही है। केवल मात्र संस्कृत ही भाषा है। अन्य तो सभी प्रकार की बोलियां कहलाती हैं। बोली वह होती है जो वस्तु के गुण को प्रकाशित करे। संस्कृत तो वस्तु के गुण को व्यक्त करती है। अल्लाह, गॉड इत्यादि सभी शब्द संस्कृत से निकले हुए हैं। भाषा का प्रतिनिधित्व करने वाला परमात्मा ही है।
उसने यह दुनिया और सृष्टि अपने लिए नहीं बनाई है बल्कि जीव मात्र के लिए बनाई है। परमात्मा ने हमें वेद रूपी ज्ञान दे रखा है इसलिए उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। ज्ञान की कोई सीमा नहीं है। यह अनंत है। आज वेद कई बोलियों में भी उपलब्ध है। आर्य समाज का मानना है कि जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं उन सब का मूल आदि परमेश्वर है इसलिए आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य मूल से जोड़ना है।
ईश्वर सच्चिदानंद स्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वांतर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टि करता है, उसी की उपासना करने योग्य है। उन्होंने आर्य समाज के दस नियमों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह नियम ब्रह्मांड को व्यवस्थित करने वाले हैं।
व्यक्ति कर्मों से ही अमर नहीं होता है। कर्म न करने वाले की मृत्यु संभव है। इस मौके पर स्वामी ओंकारानंद जी ने कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने कई कुप्रथाओं और भ्रांतियों का निवारण किया। उन्होंने कहा कि वेद वाणी वैचारिक क्रांति है। यह एक विचार है जो ईश्वर प्रदत्त है। उन्होंने कहा कि आंतरिक ज्ञान से समर्पण की भावना आती है। दूसरों के प्रति दया और सहानुभूति रखनी चाहिए और त्याग की भावना से सेवा करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि सबकुछ परमात्मा का है इसमें मेरा कुछ नहीं है। इससे त्याग की भावना आती है और आत्मा का विकास होता है। सोचने की प्रक्रिया ध्यान से ही हो सकती है। इसके लिए आंतरिक जागरण अति आवश्यक है। उन्होंने कहा कि त्याग, सेवाभाव और प्रेम की कमी होने से व्यक्ति सिद्धांत हीन होता है इसलिए व्यवहार का मधुर होना आवश्यक है।
शांति से ही समाज का विकास हो सकता है। कार्यक्रम के दौरान महर्षि दयानंद ट्रस्ट करतारपुर के प्राचार्य उद्दयन शास्त्री ने कहा आज बदलते परिवेश में आर्य समाज के प्रत्येक सदस्य का कर्तव्य बनता है कि वह आगे आकर महर्षि दयानंद और वेदों के प्रचार- प्रसार को जन-जन तक पहुंचाएं ताकि हर व्यक्ति को उसका लाभ मिल सके।
उन्होंने सभी लोगों अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया। इस मौके पर रविंद्र तलवाड़, रघुनाथ राय आर्य, प्रकाश चंद्र शर्मा, डॉ. विनोद शर्मा, कमल कृष्ण महाजन, रामेश्वर गुप्ता, नरेश निझावन, लक्ष्मण प्रसाद, अनिल वालिया, अशोक आर्य, मधु बहल, सुनीता रन्याल, अनुजा शर्मा, आर्य समाजों के सदस्य, पदाधिकारी और स्कूलों के प्रिंसिपल, टीचर्स और कई गणमान्य लोगों ने विशेष तौर रूप से भाग लिया ।