NEW DELHI: कोरोना की दूसरी लहर के बीच रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ( डीआरडीओ ) ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। दरअसल, संगठन के द्वारा ऐसी दवा तैयार की गई है जो कि देश को कोविड संकट से उबारने में गेमचेंजर साबित हो सकती है। सिर्फ इतना ही नहीं डीआरडीओ की इस दवा को यानि देश के पहले ओरल ड्रग को इमरजेंसी इस्तेमाल की ड्रग्स कंट्रोलर से मंजूरी भी मिल चुकी है।
अगले सप्ताह तक 10 हजार खुराक मिलने की उम्मीद
डॉक्टर रेड्डीज लैब के सहयोग से तैयार पानी में घोलकर पीने वाली ’2-डीऑक्सी-डी-ग्लूकोज’ (2-डीजी) नामक इस दवा की 10 हजार खुराक अगले सप्ताह तक मिलने की उम्मीद है। बताना चाहेंगे, इस दवा के इस्तेमाल की शुरुआत देशभर में चल रहे डीआरडीओ के कोविड केयर अस्पतालों से होगी, जहां मौजूद सशस्त्र बलों के डॉक्टर अपनी निगरानी में मरीजों को दवा देंगे।
110 कोविड रोगियों पर टेस्ट की जा चुकी हैयह दवा
2-डीजी डीआरडीओ ने हैदराबाद स्थित डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज के साथ मिलकर विकसित की है। इस दवा का नाम 2-डिऑक्सी-डी-ग्लूकोज (2-डीजी) है, जिसका क्लीनिकल ट्रायल पूरा हो चुका है। चिकित्सीय परीक्षण के दौरान 110 कोविड रोगियों को यह दवा दी गई, उनमें से अधिकांश की आरटी-पीसीआर टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आई है। साथ ही अस्पताल में भर्ती गंभीर मरीजों में ऑक्सीजन की निर्भरता को भी इस दवा ने कम किया है। इस तरह मेडिकल ट्रायल के दौरान सामने आया कि 2-जी दवा कोविड मरीजों को जल्द स्वस्थ करने में मदद करती है। इसलिए अब ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने 1 मई को गंभीर कोविड-19 रोगियों के लिए इस दवा के इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दी है।
अप्रैल 2020 में शुरू हुआ था दवा का परीक्षण
इस दवा के परीक्षण का पहला चरण अप्रैल 2020 में कोविड-19 की पहली लहर के दौरान शुरू हुआ था। तब परीक्षण में पाया गया कि यह दवा संक्रमित कोशिकाओं में जमा होकर वायरस को शरीर में आगे बढ़ने से रोक देती है। इन परिणामों के आधार पर डीसीजीआई ने मई, 2020 में दूसरे चरण यानी क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति दी थी। मई से अक्टूबर, 2020 के दौरान किए गए अगले चरण के परीक्षणों में भी यह दवा सुरक्षित पाई गई और कोविड-19 रोगियों की रिकवरी में तेजी से सुधार दिखा। डीसीजीआई ने नवम्बर, 2020 में तीसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति दी। इस दौरान दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु के 27 कोविड अस्पतालों में 220 मरीजों पर परीक्षण किया गया।
ऐसे होता है दवा का प्रयोग
यह दवा पाउच में पाउडर के रूप में आती है, जिसे पानी में घोलकर मरीज को दिया जाता है। डीआरडीओ ने कहा कि यह दवा वायरस से संक्रमित कोशिकाओं में जमा होकर वायरस को शरीर में आगे बढ़ने से रोक देती है। इससे पहले डीआरडीओ ने अपने आधिकारिक बयान में बताया है कि इस दवा का इस्तेमाल कोविड मरीजों के चल रहे इलाज के साथ सहायक या वैकल्पिक तौर पर दिया जा सकता है। इसका उद्देश्य प्राथमिक उपचार की सहायता करना है।
कोविड के इलाज में देश के पहले ओरल ड्रग (मुंह से लेने वाली दवा) को इमरजेंसी इस्तेमाल की ड्रग्स कंट्रोलर से मंजूरी मिलने के बाद डीआरडीओ प्रमुख डॉ. जी. सतीश रेड्डी का कहना है कि तीन चरणों में प्रभावी साबित होने के बाद अब आसानी से बड़े पैमाने पर इस दवा का उत्पादन किया जा सकता है, जिससे कोविड संकट के समय देश के स्वास्थ्य ढांचे पर पड़ रहे बोझ से राहत मिलेगी। अब इसे आसानी से उत्पादित और देश में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराया जा सकता है। अगले सप्ताह तक हमारे पास 10 हजार खुराक तैयार होंगी और अगले तीन हफ्तों में एक बड़ा रोलआउट होगा। कोविड मरीजों के लिए यह दवा पाउडर के रूप पाउच में उपलब्ध होगी जिसे पानी में घोलकर पिया जा सकेगा। इस दवा की उपलब्धता बढ़ाने के लिए डॉ. रेड्डी की प्रयोगशालाओं के साथ मिलकर काम किया जा रहा है।
दवा विकसित करने में डीआरडीओ के इन वैज्ञानिकों का रहा अहम योगदान
इस दवा को विकसित करने में डीआरडीओ के वैज्ञानिक डॉ. अनंत एन. भट और डॉ. सुधीर चांदना का अहम योगदान रहा है। डॉ. चांदना का कहना है कि दवा की कीमत उत्पादन पर निर्भर करेगी। फिर भी इस ओरल ड्रग के दाम तय करने के लिए उद्योग भागीदार डॉ. रेड्डी की प्रयोगशालाओं के साथ काम चल रहा है। हमारी कोशिश है कि कुछ दिनों में ही दवा का लागत मूल्य तय कर लिया जाए जिससे यह पता चल सके कि बाजार में उपलब्ध होने पर क्या कीमत होगी। दूसरे वैज्ञानिक डॉ. अनंत एन. भट का कहना है कि एंटी-कोविड दवा 2-डीजी को शुरू में ब्रेन-ट्यूमर और कैंसर के लिए विकसित किया गया था, लेकिन इससे पहले इसका कोरोना पर परीक्षण शुरू कर दिया, जो सफल रहा। अब हम इस दवा का जल्द से जल्द उत्पादन शुरू करने पर विचार कर रहे हैं। ~(PBNS)