देवउठनी एकादशी 25 कोः कैसे करें पूजन, सुख-समृद्धि के लिए क्या करें उपाय, बता रहे हैं मदन गुप्ता सपाटू

ANews Office: भगवान विष्णु के विश्राम काल का आरंभ आषाढ़ के शुक्ल पक्ष में देवशयनी एकादशी से होता है, जो इस वर्ष पहली जुलाई को थी। इसके साथ ही चातुर्मास आरंभ हो जाता है और कार्तिक मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इस बार 24 एकादशी के स्थान पर 26 एकादशी पड़ीं और लीप वर्ष के कारण चौमासा की अवधि पांच मास हो गई। अब देवोत्थान अर्थात प्रबोधिनी एकादशी 25 नवम्बर बुधवार को है। इस बार गृहस्थियों के लिए हरि प्रबोधिनी एकादशी 25 तारीख बुधवार को होगी, जबकि वैष्णव संप्रदायों के लिए इसे 26 नवम्बर गुरुवार को मनाने का विधान है। 29 तारीख को भीष्मपंचक भी समाप्त हो रहे हैं।

मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह शयन करने के बाद जागते हैं। भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं, इसीलिए देवोत्थान एकादशी पर भगवान हरि के जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है।

देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि का प्रारंभ- 25 नवम्बर 2020 बुधवार सुबह 2 बजकर 42 मिनट से।
एकादशी तिथि समाप्त- 26 नवम्बर 2020 गुरुवार सुबह 5 बजकर 10 मिनट पर।

देवोत्थान एकादशी व्रत, पूजा विधि व उपाय
प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और उनसे जागने का आह्वान किया जाता है। इस दिन होने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं-

  • इस दिन प्रातःकाल उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए। रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीए जलाने चाहिए।
  • परिवार के सभी सदस्यों को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का पूजन करना चाहिए।
  • देवउठनी एकादशी का व्रत समस्त प्रकार के पाप, शोक, दुख, संकटों का नाश करने वाला होता है। इसलिए आप वर्ष की किसी भी एकादशी पर व्रत नहीं रखते हों, लेकिन इस एकादशी के दिन व्रत जरूर रखें। इस दिन सूर्योदय पूर्व जागकर स्नान कर भगवान विष्णु का विधिवत पूजन करें। एकादशी व्रत का संकल्प लें और एकादशी व्रत कथा का पाठ या श्रवण करें।
  • देव उठनी एकादशी के दिन अपने पूजा स्थान पर एक मिट्टी के कलश में मिश्री भरकर उस पर सफेद वस्त्र बांधें और ऊपर एक श्रीफल रखें। कलश पर स्वास्तिक बनाएं और इसका विधिवत पूजन कर किसी ब्राह्मण को दान करें। इससे आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  • जिन लोगों के विवाह में बाधा आ रही हो। कई प्रयासों के बाद भी विवाह की बात नहीं बन पा रही हो, वे युवक-युवतियां देवउठनी एकादशी के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में जाग जाएं। जब आकाश में तारे हों, तभी स्नान करें और लक्ष्मी-विष्णु की पूजा कर विष्णु सहस्रनाम के 7 पाठ करें। महालक्ष्मी और विष्णु को मिश्री का भोग लगाकर अपनी मनोकामना कहें। शीघ्र विवाह का मार्ग प्रशस्त होगा।
  • जिन दंपतियों का विवाह जीवन कष्टपूर्ण चल रहा हो। पति-पत्नी के संबंधों में कटुता हो, वे देवउठनी एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण का मंत्र ओम् कृं कृष्णाय नमः मंत्र की एक माला जाप करें। श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री का भोग लगाएं। वैवाहिक जीवन में शांति आएगी और पति-पत्नी के संबंध मधुर बनेंगे।
  • आर्थिक संकटों और कर्ज से मुक्ति के लिए एकादशी का व्रत करें। शाम के समय पूजा स्थान पर लाल रंग के ऊनी आसान पर बैठकर ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र की एक माला जाप करें। भगवान विष्णु को हलवे का नैवेद्य लगाएं और तुलसी में प्रतिदिन शाम के समय दीपक लगाना प्रारंभ करें।
  • एकादशी के दिन से प्रारंभ करके लगातार 21 दिन पीपल में कच्चा दूध और पानी मिश्रित करके चढ़ाना प्रारंभ करें। पीपल के वृक्ष की जड़ से थोड़ी सी गीली मिट्टी लेकर मस्तक और नाभि पर लगाएं। रोग मुक्ति होने लगेगी।
  • जीवन में लगातार कोई न कोई परेशानी बनी हुई हो। बेवजह के संकट आ रहे हों तो एकादशी के दिन शाम के समय तुलसी विवाह संपन्न कराएं। किसी कन्या को भोजन करवाकर उसे वस्त्र, श्रंगार का सामान भेंट दें।
  • प्रेम, आकर्षण और सम्मोहन प्राप्ति के लिए देवउठनी एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधाजी का श्रृंगार करें, उन्हें वस्त्र, मुकुट पहनाएं और माखन का भोग लगाएं। इसके बाद त्रेलोक्य मोहनाय नमः मंत्र की 21 माला जाप करें, आपके व्यक्तित्व में एक अद्भुत आकर्षण पैदा हो जाएगा।
  • यह एकादशी सुख, सौभाग्य और उत्तम संतान प्रदान करने वाली एकादशी भी कही गई है। इसलिए संभव हो तो पति-पत्नी दोनों जोड़े से इस व्रत को करें और फिर देखें उनके जीवन में कितनी तेजी से परिवर्तन आता है।
  • इस एकादशी के दिन तुलसी विवाह संपन्न कराने से परिवार में कोई संकट नहीं रहता, समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। इस दिन दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है।
  • देवउठनी एकादशी के दिन से शादियों का शुभारंभ हो जाता है। सबसे पहले तुलसी मां की पूजा होती है। देवउठनी एकादशी के दिन धूमधाम से तुलसी विवाह का आयोजन होता है। तुलसी जी को विष्णु प्रिया भी कहा जाता है, इसलिए देव जब उठते हैं तो हरिवल्लभा तुलसी की प्रार्थना ही सुनते हैं।
  • देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी जी का विवाह शालिगराम से किया जाता है। अगर किसी व्यक्ति को कन्या नहीं है और वह जीवन में कन्यादान का सुख प्राप्त करना चाहता है तो वह तुलसी विवाह कर प्राप्त कर सकता है।

पौराणिक कथा
शालिगराम भगवान विष्णु का ही एक स्वरूप हैं। मान्यता है कि जलंधर नाम का एक असुर था। उसकी पत्नी का नाम वृंदा था, जो बेहद पवित्र व सती थी। उनके सतीत्व को भंग किए बगैर उस राक्षस को हरा पाना नामुमकिन था। ऐसे में भगवान विष्णु ने छलावा करके वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया और राक्षस का संहार किया। इस धोखे से कुपित होकर वृंदा ने श्री नारायण को श्राप दिया, जिसके प्रभाव से वो शिला में परिवर्तित हो गए। इस कारण उन्हें शालिगराम कहा जाता है। वहीं, वृंदा भी जलंधर के समीप ही सती हो गईं। अगले जन्म में तुलसी रूप में वृंदा ने पुनः जन्म लिया। भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि बगैर तुलसी दल के वो किसी भी प्रसाद को ग्रहण नहीं करेंगे। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने कहा कि कालांतर में शालिगराम रूप से तुलसी का विवाह होगा। देवताओं ने वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु के शालिगराम रूप का विवाह तुलसी से कराया। इसलिए प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि के दिन तुलसी विवाह कराया जाता है।

मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, 9815619620

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