कौआ आया ऑनलाइन

ANews Office: कागा पर हमारे कवियों ने आदिकाल से ही कई गीत बनाए हैं। उनके ऊपर शगुन-अपशगुन पर निबंध तक लिख डाले। बॉलीवुड ने तो काग महाराज का बहुत शोषण किया। उससे फिल्मों में फ्री-फंड में एक्टिंग करवाई । उस पर कितने गाने फिल्मा डाले। ‘माए नी माए मुंडेर पे तेरी बोल रहा है कागा… या भोर होते कागा पुकारे काहे राम…वगैरा-वगैरा।

वैसे कौए की आवाज को कर्कश कहा जाता है। उसे संदेश वाहक बना दिया जाता है। पितृपक्ष में उसे काक भुशंड का प्रतिनिधि मान कर पितरों को भोजन पहुंचाने के लिए कोरियर ब्वाय बना दिया जाता है। उसे जौमैटो का डिलीवरी मैन बना दिया जाता है। अब जरूरत हो तो गधे को भी बाप बनाना पड़ता है तो कौए को भी कई बार पितरों का प्रतिनिधि मान लिया जाता है। बेचारे 11 महीने 15 दिन बेकार कांव-कांव करते रहते हैं। पड़ोसी की छत पर बैठ कर गाने लगे तो लोग पड़ोसी को ऐसा समझने लगते हैं मानो सेहत विभाग ने उसके घर पर कोरोना का पोस्टर चिपका दिया हो और बस …..। 

2020 में आधे लोगों की नौकरियां छू मंतर हो गईं। अच्छा भला व्यापार चौपट हो गया। आटो वाले सवारियों की जगह सब्जियां ढोने लगे, निठ्ल्ले लंगरों की लाइनों मे लग गए। ग्रोसरी की दुकानें जिन पर मक्खियां तक नहीं फटकती थीं, दुकानदारों ने ग्राहकों को दो गज की दूरी पर लाइन हाजिर करवा दिया। खाना बनाने वाले सेनेटाइजर और मास्क बनाने लगे। थर्स्टी क्रो घड़े में कंकर डाल कर पानी पीने की बजाय नल की टोंटी घुमा कर पीने लगा। कारोना ने पंछियों को भी आधुनिक बना दिया। इसी बीच प्रधानमंत्री ने लालकिले से आत्म निर्भर बनने का लोशन लगा दिया।

जिन्होंने चंदे इकट्टे करके लंगर लगवाए, फोटो खिंचवाए, घर बैठे कोरोना योद्धा के प्रमाण पत्र, स्मृतिचिन्ह हथियाए, वो सब फुस्स होकर और आत्मनिर्भर होने के नए फा्र्मूले ढूंढने में बिजी हो गए। काफी लोग लाइन पर आ गए। ज्यादातर ऑनलाइन हो गए।  कहते हैं कि कुत्ते के भी दिन फिरते हैं। इस साल कौओं के फिर गए। श्राद्ध खाने वाले दुर्लभ हो गए। कौए आदरणीय हो गए। बनवारी हमारी हेयर कंटिंग, मालिश-वालिश किया करता था। कोरोना के कहर ने उसकी ही चंपी कर डाली। कहा जाता है- आदमियों में नउआ और पंछियों में कौआ, इन दोनों का कोई सानी नहीं। बस यही फार्मूला आत्मनिर्भर बनने में काम आ गया।

लोकल को वोकल बनाने का गुर। मुसीबत को सुअवसर बनाने का सीक्रेट। श्राद्धों में गाय, श्वान और कागों की डिमांड ज्यादा होती है। गायवाय तो मिल जाती हैं परंतु इस मौके पर कौए दुर्लभ प्राणी बन जाते हैं। वैसे दिनभर कांय-कांय कर आपको अतिथि आने का संदेश देते हों पर श्राद्ध के समय अपनी टौर दिखाने लगते हैं। बनवारी ने भी एक चुस्त-फुर्त काग महाराज को चुग्गा डाला, अपना बनाया और पितृ पक्ष में उसकी डोर सर्विस शुरू कर दी। ऑनलाइन बुकिंग। पांच सौ रुपए विजिटिंग फीस, पांच मिनट काग महाराज के दर्शन, सर्विस चार्जिज अलग से, हलवा, पूरी, खीर आप्शनल। बनवारी और काग महाराज पूरे 15 दिन बिजी। पूरे साल का कोटा पोकेट में। दोनों आत्मनिर्भर…। (व्यंंग्य )

मदन गुप्ता सपाटू, फोन- 9815619620

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