पटाखा बैनः हम राजनीति नहीं, धक्केशाही का विरोध कर रहे, तुगलकी फैसला मंजूर नहींः कैलाश जैन

कहा- लोगों के नुकसान की परवाह किए बिना मनचाहे नादिरशाही फैसले सुनाने का आदी हो गया है प्रशासन

CHANDIGARH: चंडीगढ़ उद्योग व्यापार मंडल के संयोजक कैलाश चंद जैन ने चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा दीवाली के अवसर पर शहर में पटाखे बेचने व फोड़ने पर बैन लगाए जाने के विरोध को राजनीति करार देने वाले लोगों को आड़े हाथ लिया है। जैन ने कहा, हम पटाखा बैन पर राजनीति नहीं, बल्कि प्रशासन की धक्केशाही का विरोध कर रहे हैं, जो पटाखों के कारोबारियों के साथ की गई है। उन्होंने कहा कि प्रशासन का पटाखों पर बैन का फैसला पूरी तरह तुगलकी है और नामंजूर है।

दुकानदारों के नुकसान की भरपाई कैसे होगी

व्यापारियों की तरफ से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में चंडीगढ़ उद्योग व्यापार मंडल के संयोजक कैलाश चंद जैन ने कहा है कि प्रशासन का यह फैसला बिल्कुल मंजूर नहीं किया जा सकता। इस फैसले से दुकानदारों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। जिन दुकानदारों ने पहले ही माल खरीदा हुआ है अथवा ऑर्डर दिया हुआ है उनके लिए तो यह फैसला आफत बनकर आया है। उनको भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। उनके नुकसान की भरपाई कैसे होगी, यह बड़ा सवाल है । प्रशासन को इस बाबत सोचना चाहिए था। अगर फैसला लेना ही था तो इस प्रकार का फैसला पहले करते। अब एन मौके पर ऐसा फैसला करके प्रशासन दुकानदारों के साथ धक्केशाही कर रहा है। उन्होंने प्रशासन के अधिकारियों से अपील की है कि वे इस फैसले पर पुनर्विचार करें और पटाखे बेचने की अनुमति प्रदान करें ।

प्रशासन 2 महीने पहले निर्णय लेता तो अच्छा होता, अब विरोध होना ही चाहिए

कैलाश चंद जैन का यह भी कहना है कि इस फैसले से हिंदू धर्मावलंबियों की भावनाएं भी आहत हुई हैं। उन्होंने कहा कि पॉल्यूशन और कारोना से हम भी डरते हैं लेकिन प्रशासन को अगर यह फैसला लेना ही था तो 2 महीने पहले लिया जाता तो ज्यादा अच्छा होता। कम से कम दुकानदारों का नुकसान तो न हो पाता। अब जो दुकानदार समान लेकर आ चुके हैं, उनका क्या होगा, उनके नुकसान की भरपाई कैसे होगी। उन्होंने कहा कि बड़ी अजीब बात है कि प्रशासन 2 दिन पहले शहर में पटाखों की 96 स्टालों को मंजूरी देने के लिए दुकानदारों का शॉर्टलिस्ट करता है और आज बैन लगा देता है। यह दोहरा मापदंड क्यों? उन्होंने कहा कि प्रशासन लोगों के नुकसान की परवाह किए बिना मनचाहे नादिरशाही फैसले सुनाने का आदी हो गया है। इसका विरोध होना ही चाहिए।

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