कांग्रेस: भड़ास निकली, गुस्सा बाकी ! युवा बनाम बुजुर्ग की लड़ाई अब शीर्ष पर

पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए चंडीगढ़ समेत सभी केंद्र शासित प्रदेशों की कांग्रेस इकाइयों का राहुल को समर्थन

ANews Office: कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर मचे घमासान को शांत करने के लिए सोमवार को बैठी कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की मीटिंग में जो कुछ हुआ, वो तो कल ही सबके सामने आ चुका है लेकिन जिसे फिलहाल छुपा लिया गया है, वो है गुस्सा।

गुस्सा सोनिया गांधी भी हैं, नाराज राहुल और प्रियंका गांधी भी। क्रोध में गुलाम नबी आजाद जैसे भी हैं तो आक्रोश में कपिल सिब्बल सरीखे भी हैं। फिलहाल, खुलकर जताना कोई नहीं चाह रहा है। ट्रेलर जरूर दिखा चुके हैं। पार्टी में नेतृत्व के सवाल से भड़की रोष की इस ज्वाला को शांत तो सीडब्ल्यूसी की इसी बैठक में हो जाना था लेकिन राहुल गांधी ने जिस अंदाज में आग पर मिट्टी डालने की कोशिश की, उसने लपटों को हवा दे दी।

राहुल का यह रुख सबके लिए बिल्कुल अप्रत्याशित था लेकिन उनके इस कदम को मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान की सियासी गर्मी में तपे पार्टी के गर्म खून के साथ खड़े होने का एक नमूना माना जा रहा है। इससे संकेत मिल रहे हैं कि पार्टी में निचले स्तर से लहराए गए बुजुर्ग बनाम युवा की लड़ाई के झंडे को अब शीर्ष पर राहुल गांधी ने खुद थाम लिया है।

लिहाजा, आने वाले दिनों में कांग्रेस के भीतर नया द्वंद्व खड़ा होता दिख रहा है। इसकी परिणिति क्या और किस रूप में होगी, कह पाना जल्दबाजी है लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में परिवर्तन की क्रांति अब तय मानी जा रही है। यह बात अलग है कि सीडब्ल्यूसी की इस मीटिंग को अभी बेनतीजा कहा जा रहा है किंतु कांग्रेस में इस वर्चुअल मीटिंग की आवाजें आने वाले कई दशकों तक सुनी जाएंगी, इससे छह महीने बाद भी इंकार नहीं किया जा सकेगा।

बुजुर्ग टीम ने राहुल को राहुल गांधी नहीं बनने दिया

सोनिया गांधी वर्ष 1998 में पहली बार कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनी थीं। वर्ष 2017 तक उन्होंने कांग्रेस का नेतृत्व किया। इसके बाद राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाया गया लेकिन माना जाता रहा कि बुजुर्गों की टीम से घिरा पार्टी का युवा नेतृत्व खुद ही दिशा नहीं पकड़ पाया या आरोपों की मानें तो बुजुर्ग टीम ने राहुल को राहुल गांधी बनने ही नहीं दिया, क्योंकि युवा सोच में बुजुर्ग नेताओं के हित हिलने लगे।

लिहाजा, राहुल ने 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद पद से इस्तीफा दे दिया। तब से सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष हैं। हालांकि उन्होंने यह कहते हुए पुन: अध्यक्ष पद संभाला था कि नया अध्यक्ष चुने जाने तक वह इस पद पर रहेंगी और उनका एक साल का कार्यकाल जुलाई में पूरा हो गया है। सोनिया गांधी पिछले कुछ समय से बीमारी के चलते भी पार्टी की गतिविधियों में सक्रियता से भाग नहीं ले रही हैं लेकिन पार्टी कभी ये नहीं भूलती कि सोनिया गांधी के नेतृत्व में ही कांग्रेस 2004 में सरकार बनाने में सफल हुई थी और 2009 में दोबारा सत्ता में लौटी भी।

अब हालात बदल गए हैं। मोदी, शाह-नड्डा की तिकड़ी भाजपा को दिनोंदिन मजबूत कर रही है तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस की बनी-बनाई सरकार पार्टी की बुजुर्गियत के हाथों शहीद हो गई। राजस्थान में जैसे-तैसे कैसे बच पाई, यह भी सब समझते हैं लेकिन जानने का वक्त अब यह है कि कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन का रास्ता भी राजस्थान की रण कथा ने ही प्रशस्त किया है।

युवा असंतोष को रोकने का मोर्चा राहुल व प्रियंका ने संभाला

पार्टी सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस में राजस्थान की अपनी सरकार बचाने की जितनी बड़ी चुनौती थी, उतना ही बड़ा चैलेंज पार्टी में युवा असंतोष और युवा पलायन को रोकने का भी था। इसके लिए मोर्चा खुद राहुल व प्रियंका गांधी ने संभाला। राजस्थान का मिशन पूरा होने के साथ ही पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन या यूं कहिए कि बुजुर्गियत से छुटकारा पाने की तैयारी शुरू कर दी गई।

सोनिया गांधी भी अब स्वास्थ्य लाभ के लिए आराम करना चाहती हैं। इसकी भनक से आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, शशि थरूर जैसे बिना जनाधार वाले पार्टी के बुजुर्ग नेताओं में खलबली मच गई। सोनिया गांधी के कृपा पात्र और राहुल के निशाने पर रहे अन्य बुजुर्ग नेता भी अपना बोरिया-बिस्तर सिमटने के डर से पार्टी में अपनी हैसियत बनाए रखने की गर्ज से दबाव के खेल में जुट गए।

इन नेताओं ने लिखा था पत्र

पार्टी में नेतृत्व के बदलाव पर 23 नेताओं का पत्र इसी खेल का परिणाम माना जा रहा है। इस पत्र पर जिन नेताओं के हस्ताक्षर बताए जा रहे हैं, उनमें राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, शशि थरूर, सांसद विवेक तन्खा, कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य मुकुल वासनिक, जितिन प्रसाद, पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा, राजेंदर कौर भट्टल, एम.वीरप्पा मोइली, पृथ्वीराज चव्हाण, पीजे कुरियन, अजय सिंह, रेणुका चौधरी, मिलिंद देवड़ा, पूर्व पीसीसी प्रमुख राज बब्बर (यूपी), अरविंदर सिंह लवली (दिल्ली) और कौल सिंह ठाकुर (हिमाचल), वर्तमान में बिहार प्रचार प्रमुख अखिलेश प्रसाद सिंह, हरियाणा के पूर्व स्पीकर कुलदीप शर्मा, दिल्ली के पूर्व स्पीकर योगानंद शास्त्री और पूर्व सांसद संदीप दीक्षित शामिल हैं।

पार्टी सूत्रों का कहना है कि नेतृत्व परिवर्तन की तैयारी से इन नेताओं को लगने लगा कि लौट-फिरके युवा नेतृत्व के नाम पर पार्टी की कमान दोबारा राहुल या प्रियंका गांधी के हाथ में सौंपी जाएगी और फिर पार्टी में उनका हाशिए पर जाना तय है। साथ ही सोनिया पद छोडऩे के साथ ही निष्क्रिय भूमिका में जाने वाली हैं। लिहाजा, लैटर बम से धमाका करके उन्होंने जो आवाज सबको सुनाई, उसमें संदेश का निचोड़ साफ था कि 2017 के बाद से 2019 तक का कांग्रेस नेतृत्व भाजपा के आगे प्रभावशाली नहीं रहा है।

उल्टा पड़ता दिख रहा दांव

पत्र में इन नेताओं ने कुछ कमेटियों के गठन की भी मांग की। यानी निशाना गांधी परिवार की नई पीढ़ी पर और कोशिश पार्टी में अपना रुतबा बनाए रखने की। शायद इसीलिए सीडब्ल्यूसी की मीटिंग में राहुल गांधी पत्र लिखने वाले नेताओं पर भड़क गए तो इससे पहले प्रियंका गांधी को भी कहना पड़ा था कि कांग्रेस का अगला अध्यक्ष गैर गांधी हो लेकिन पार्टी की यूथ ब्रिगेड के आगे बुजुर्ग नेताओं को यह दांव उल्टा पड़ता दिख रहा है।

चंडीगढ़ समेत केंद्र शासित प्रदेशों ने भेजा प्रस्ताव

कांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी के पीछे लामबंद हो रहे हैं। सोमवार को सीडब्ल्यूसी की मीटिंग से पहले चंडीगढ़ समेत देश के सभी केंद्र शासित प्रदेशों के कांग्रेस अध्यक्षों के नेतृत्व में इन राज्यों की इकाइयों ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) को सर्वसम्मति से पारित एक प्रस्ताव भेजकर कहा कि कांग्रेस की कमान राहुल गांधी के हाथ में सौंपी जाए। इन प्रदेशाध्यक्षों में चंडीगढ़ के प्रदीप छाबड़ा, दमन-दीव के प्रदेश अध्यक्ष केतन पटेल, अंडमान-निकोबार के प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद कुलदीप शर्मा, लक्षद्वीप के प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद हमदुल्लाह सईद तथा दादर नागर हवेली के प्रदेश अध्यक्ष महेश शर्मा शामिल हैं।

अभी वक्त का तकाजा कुछ और

सीडब्ल्यूसी की मीटिंग के बाद गुलाम नबी आजाद के घर अलग से एक मीटिंग हुई। इसमें मनीष तिवारी, शशि थरूर और कपिल सिब्बल भी शामिल हुए। अब सबकी नजर राहुल की नाराजगी के बाद इनके अगले कदम पर है। हालांकि सोनिया गांधी की तरफ से कहा ये जा चुका है कि इन नेताओं के प्रति उनके मन में कोई दुर्भावना नहीं है लेकिन सोनिया के इशारों से ही उनके संदेशों को समझने वाले जानते हैं कि वह पार्टी में कभी ऐसे नेताओं के प्रति नरम नहीं रही हैं और ये भी हो नहीं सकता कि राहुल अपने शब्दों के चयन पर मीटिंग से पहले सोनिया गांधी से विचार-विमर्श करके न आए हों पर अभी वक्त का तकाजा कुछ और है। इसे गुलाम नबी और सिब्बल जैसे नेता भी समझ रहे हैं।

सोनिया गांधी को ही अधिकृत कर सकती है पार्टी

इस बीच, पार्टी में अगले छह महीने के भीतर नया अध्यक्ष चुनने का भी काम शुरू होने जा रहा है। माना जा रहा है कि अगले दिनों में सर्वसम्मति से नया कांग्रेस अध्यक्ष चुनने के लिए पार्टी सोनिया गांधी को ही अधिकृत कर सकती है और उन पर राहुल या प्रियंका को पार्टी की कमान सौंपने का सर्वसम्मत दबाव बनाया जा सकता है।

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