चातुर्मास 20 जुलाई से: क्या 14 नवंबर तक विवाह या कोई अन्य शुभ कार्य नहीं होंगे ?

भारत में तीज-त्योहार तथा बहुत से पर्व, धार्मिक अनुष्ठान आदि पंचांग एवं ज्योतिषीय गणना के अनुसार मनाए
जाते हैं परंतु कई बार हम लकीर के फकीर बनकर देश, काल एवं परिस्थिति के अनुसार उसे व्यावहारिक नहीं बनाते तथा हजारों वर्षोंं की मान्यताओं से चिपके रहते हैं। कुछ ऐसी ही धारणा एवं मान्यताएं 20 जुलाई से 14 नवंबर के मध्य चलने वाले चातुर्मास या चौमासा अर्थात चार मास की अवधि को लेकर है, जिसमें कोई भी मंगल कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, व्यवसाय आरंभ करना आदि वर्जित माने जाते हैं।

देवताओं का यह शयनकाल देवशयनी 20 जुलाई से 14 नवंबर देव प्रबोधिनी तक 4 मास चलेगा, जिसके अंतर्गत शुभ कार्य वर्जित कहे गए हैं परंतु आधुनिक युग में ऐसा संभव नहीं है। इस मध्य ज्योतिष के अनुसार हर प्रकार के पर्व आएंगे और मनाए जाएंगे। मंगल कार्य सतयुग या अन्य युगों में चौमासा के समय वर्जित रहे होंगे परंतु क्या कलियुग में चार महीने काम रोके जा सकते हैं ? अत: धार्मिक कृत्य देश, काल, समय एवं पात्र के अनुसार परिवर्तित करके सुगम बनाए जाने की आवश्यकता है, ऐसा मेरा व्यक्तिगत मत है, क्योंकि पौराणिक काल में धार्मिक कार्यों को करने के अलावा कोई विशेष कार्य नहीं होता था परंतु आज परिस्थितियां बदल चुकी हैं। कोरानाकाल ने वैसे ही दो साल से विवाह आदि पर ग्रहण लगा रखा है। चौमासा एक धार्मिक आस्था, विश्वास एवं परंपरा का द्योतक है।

वास्तव में इन दिनों बाढ़ आने, पानी दूषित होने, रास्ते बंद होने, बीमारियां फैलने, जंगल में जहरीले कीड़े-मकौड़े पैदा होने, वायरस फेैलने आदि की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। बदलते मौसम में शरीर में रोगों का मुकाबला करने अर्थात प्रतिरोधक क्षमता क्षीण हो जाती है। इन कारणों से इन दिनों में पुरातन काल में यात्रा करना या मंगल आयोजन करना जन हिताय में बंद कर दिया जाता था। ठीक वैसे ही जैसे आधुनिक समय में समाज के लिए कोरोनाकाल में कुछ नियम बनाए गए हैं। यदि आपने रामायण धारावाहिक ध्यान से देखा हो तो उसमें भगवान श्रीराम चिंता व्यक्त करते हैं- चौमासा भी बीत चुका है, अब हमें लंका की ओर प्रस्थान कर देना चाहिए।

चार्तुमास की अवधारणा आदिकाल से चली आ रही है। उन दिनों सड़क मार्ग, रास्तों में ठहरने आदि की व्यवस्थाए नहीं थीं। विवाह तथा अन्य शुभ कार्य खुले आकाश के नीचे ही होते थे। कोविड कालखंड-2020 से 2023 तक की एक अलग व्यवस्था को छोड़कर आज आप वर्षा ऋतु में कहीं भी जा सकते हैं, विवाह आदि बंद हॉलों में कर सकते हैं। पंचांग के अनुसार जुलाई से लेकर नवंबर तक कई त्योहार आएंगे और मनाए जाएंगे, विवाहों के भी बहुत मुुहूर्त हैं।

हमारे पौराणिक ग्रन्थों में चातुर्मास के विषय में क्या कहा गया है, यह जानना भी आवश्यक है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है, इसे पद्मा एकादशी भी कहते हैं। देवशयनी एकादशी प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा के तुरन्त बाद आती है। इस वर्ष देवशयनी एकादशी 20 जुलाई को मनाई जानी है। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ भी माना गया है। देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी और पद्मनाभा के नाम से भी जाना जाता है। हरिशयनी एकादशी, देवशयनी एकादशी, पद्मा एकादशी, पद्मनाभा एकादशी सभी उपवासों में देवशयनी एकादशी व्रत श्रेष्ठतम कहा गया है। इस व्रत को करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा सभी पापों का नाश होता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना करने का महत्व होता है, क्योंकि इसी रात्रि से भगवान का शयन काल आरंभ हो जाता है, जिसे चातुर्मास या चौमासा का प्रारंभ भी कहते हैं। इस दिन से गृहस्थ लोगों के लिए चातुर्मास नियम प्रारंभ हो जाते हैं।

देवशयनी एकादशी नाम से ही स्पष्ट है कि इस दिन श्रीहरि शयन करने चले जाते हैं। इस अवधि में श्रीहरि पाताल के राजा बलि के यहां चार मास निवास करते हैं। चातुर्मास असल में संन्यासियों द्वारा समाज को मार्गदर्शन करने का समय है। आम आदमी इन चार महीनों में अगर केवल सत्य ही बोले तो भी उसे अपने अंदर आध्यात्मिक प्रकाश नजर आएगा। इन चार मासों में कोई भी मंगल कार्य जैसे विवाह, नवीन गृह प्रवेश आदि नहीं किया जाता है, ऐसा क्यों ? तो इसके पीछे सिर्फ यही कारण है कि आप पूरी तरह से ईश्वर की भक्ति में डूबे रहें, सिर्फ ईश्वर की पूजा-अर्चना करें। वास्तव में यह वे दिन होते हैं जब चारों तरफ नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढऩे लगता है और शुभ शक्तियां कमजोर पडऩे लगती हैं। ऐसे में जरूरी होता है कि देव पूजन द्वारा शुभ शक्तियों को जाग्रत रखा जाए। देवप्रबोधिनी एकादशी से देवता के उठने के साथ ही शुभ शक्तियां प्रभावी हो जाती हैं और नकारात्मक शक्तियां क्षीण होने लगती हैं।

चातुर्मास कब से शुरू होगा ?
पंचांग
के अनुसार 20 जुलाई, मंगलवार को आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से चातुर्मास शुरू होगा। इस एकादशी से भगवान विष्णु विश्राम की अवस्था में आ जाते हैं। 14 नवंबर 2021 को देवोत्थान एकादशी पर विष्णु भगवान का शयन काल समाप्त होगा।

देवशयनी एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त
देवशयनी एकादशी तिथि प्रारम्भ:
19 जुलाई 2021 को 22:00 बजे।
देवशयनी एकादशी समाप्त: 20 जुलाई 2021 को 19:17 बजे।
देवशयनी एकादशी व्रत पारण: 21 जुलाई को 05:36 से 08:21 बजे तक।

देव उठानी एकादशी (ग्यारस) 2021 का पूजा मुहूर्त
देवउठनी एकादशी ग्यारस पारण मुहूर्त:
15 नवंबर को 13:09:56 से 15:18:49 बजे तक।
हरि वासर समाप्त होने का समय: 15 नवंबर को 13:02:41 बजे।

देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह
इस
दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है। तुलसी के पौधे व शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पुरे धूमधाम से की जाती है। एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गई हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।

पूजा विधि
वे श्रद्धालु,
जो देवशयनी एकादशी का व्रत रखते हैं, उन्हें प्रात: काल उठकर स्नान करना चाहिए। पूजा स्थल को साफ करने के बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर विराजमान करके भगवान का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए।भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं। उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित करें।भगवान विष्णु को पान और सुपारी अर्पित करने के बाद धूप, दीप और पुष्प चढ़ाकर आरती उतारें और इस मंत्र द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति करेंज्

मंत्र: ‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।’

अर्थात हे जगन्नाथ जी! आपके निद्रित हो जाने पर संपूर्ण विश्व निद्रित हो जाता है और आपके जाग जाने पर संपूर्ण
विश्व तथा चराचर भी जाग्रत हो जाते हैं। इस प्रकार भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन या फलाहार ग्रहण करें। देवशयनी एकादशी पर रात्रि में भगवान विष्णु का भजन व स्तुति करना चाहिए और स्वयं के सोने से पहले भगवान को शयन कराना चाहिए। चातुर्मास में आध्यात्मिक कार्यों के साथ-साथ पूजा-पाठ का विशेष महत्व बताया गया है। चातुर्मास में सावन 6श्रावण मास8 के महीने को सर्वोत्तम मास माना गया है। श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित होता है। इसमें भगवान शिव और माता पार्वती धरती पर भ्रमण करने निकलते हैं और इस दौरान पृथ्वी लोक के कार्यों की देखभाल भगवान शिव ही करते हैं। माना जाता है कि चातुर्मास में जरूरतमंद व्यक्तियों को दान देने से भगवान प्रसन्न होते हैं।

-मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, प्त458, सैक्टर 10, पंचकूला। फोन: 9815619620

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