मुश्किल में फंसा रखा था कांग्रेस पार्षदों ने, जानिए कहां जाकर भाजपा ने पलटी आम आदमी पार्टी की बाजी
CHANDIGARH, 17 JANUARY: चंडीगढ़ के मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर के लिए आज हुए चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर बाजी मार ली। भाजपा ने मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर तीनों सीटों पर एक-एक वोट से जीत दर्ज की। भाजपा के अनूप गुप्ता मेयर, कंवर राणा सीनियर डिप्टी मेयर और हरजीत सिंह डिप्टी मेयर चुने गए हैं। खास बात यह है कि भाजपा की ये जीत जितनी आसान दिख रही है, असल में उतनी आसान रही नहीं। भाजपा को इसके लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। हालांकि इस बार क्रॉस वोटिंग न होने से भाजपा और आम आदमी पार्टी के पार्षदों में से किसी पर कोई सवाल नहीं उठा है लेकिन लगातार दूसरे साल वोटिंग से बाहर रही कांग्रेस एक पार्षद को लेकर जरूर सवालों के घेरे में आ गई है। इस मुद्दे पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच सियासी तलवारें खिंच गई हैं। आरोप-प्रत्यारोप बता रहे हैं कि यह मामला अभी शांत होने वाला नहीं है।
बता दें कि चंडीगढ़ में मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव एक साल के लिए होता है और इस चुनाव में निर्वाचित पार्षद वोटिंग करते हैं। 35 निर्वाचित सीटों वाले चंडीगढ़ नगर निगम सदन में दलीय स्थिति यह है कि पिछले साल ही कांग्रेस छोड़ चुके दो पार्षदों को लेकर भाजपा के खेमे में 14 निर्वाचित पार्षद हैं और भाजपा सांसद किरण खेर को मिलाकर भाजपा के पास 15 वोट बन जाते हैं, जबकि आम आदमी पार्टी के पास 14 निर्वाचित पार्षद हैं। कांग्रेस के पास 6 और अकाली दल के पास एक सीट है। कांग्रेस और अकाली दल ने पिछले साल की तरह इस बार भी मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव में हिस्सा नहीं लिया। इसका नतीजा यह हुआ कि आम आदमी पार्टी के 14 वोटों के मुकाबले भाजपा अपने 15 वोटों के बल पर यह चुनाव जीत गई।
मेयर के पद पर भाजपा के अनूप गुप्ता ने आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी जसबीर सिंह लाडी को हराया। सीनियर डिप्टी मेयर पद पर भाजपा के कंवर राणा ने आम आदमी पार्टी की तरुणा मेहता को हराया, जबकि डिप्टी मेयर पद पर भाजपा के हरजीत सिंह ने आम आदमी पार्टी की सुमन अमित शर्मा को शिकस्त दी। भाजपा और आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को अपने-अपने पार्षदों के पूरे वोट मिले। लिहाजा, इस बार क्रॉस वोटिंग को लेकर कोई शोर नहीं है लेकिन इस चुनाव के पीछे सवाल कई खड़े हुए हैं।
सबसे बड़ा सवाल कांग्रेस की पार्षद गुरबख्श रावत की वायरल हुई उस फोटो को लेकर खड़ा हुआ है, जो इस चुनाव के लिए वोटिंग शुरू होने के ऐन पहले अचानक सोशल मीडिया में वायरल हो गया। इस फोटो में कांग्रेस पार्षद गुरबख्श रावत और उनके पति वरिंदर रावत आम आदमी पार्टी का पटका गले में डाले हुए पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और आम आदमी पार्टी के सह प्रभारी प्रदीप छाबड़ा समेत AAP के अन्य नेताओं के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। वायरल फोटो में कहा गया कि गुरबख्श रावत आम आदमी पार्टी में शामिल हो गईं हैं। मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव से ठीक पहले यह फोटो वायरल होते ही कांग्रेस में हड़कंप मच गया और आनन-फानन में चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एचएस लक्की ने गुरबख्श रावत समेत अपनी पार्टी के सभी 6 पार्षदों को खड़ा कर एक वीडियो मैसेज जारी कर स्पष्ट किया कि कांग्रेस के सभी 6 पार्षद एकजुट हैं और गुरबख्श रावत भी कांग्रेस में ही हैं। वायरल फोटो फर्जी है। लक्की ने इस घटनाक्रम के लिए आम आदमी पार्टी पर आरोप लगाते हुए कानूनी कार्रवाई की चेतावनी तक दे डाली, जबकि दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के सह प्रभारी प्रदीप छाबड़ा ने कांग्रेस की चुनौती को स्वीकार करते हुए स्पष्ट कहा कि फोटो बिलकुल सही है। यह बात अलग है कि गुरबख्श रावत अब किसी दबाव में पलटी मार गई।
अब सवाल यह उठता है कि क्या वाकई गुरबख्श रावत ने आम आदमी पार्टी ज्वाइन कर ली थी और अगर कर ली थी तो कांग्रेस में क्यों लौट आईं ? सियासत के जानकार इस सवाल का जवाब कांग्रेस के उस फैसले में तलाश रहे हैं, जिसमें पार्टी ने मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव में अपने उम्मीदवार न उतारने का निर्णय तो नामांकन के दिन ही कर दिया था लेकिन वोटिंग में भाग लेने का फैसला चार दिन पेंडिंग करके अपने पार्षदों को हिमाचल ले गई। कहा जा रहा है कि चुनाव के बहिष्कार पर कांग्रेस के सभी 6 पार्षद एकमत नहीं थे। दूसरी ओर, कांग्रेस के इस निर्णय से भाजपा और आम आदमी पार्टी बेचैन थीं और कांग्रेस के लिए चार दिन विरोधियों को बेचैन रखने के लिए पर्याप्त थे। यही कारण है कि चुनाव से एक दिन पहले हरियाणा के रास्ते भाजपा तो अपने पार्षदों को लेकर हिमाचल ही पहुंच गई थी, जबकि कांग्रेस और भाजपा अपने-अपने पार्षदों को खरीद-फरोख्त से बचाने की खातिर ही चंडीगढ़ से बाहर अलग-अलग राज्य में ले गई थीं। हालांकि आम आदमी पार्टी भी अपने पार्षदों को लेकर पंजाब चली गई थी लेकिन अपनी पार्टी के शासन वाले राज्य हरियाणा से निकल कर कांग्रेस शासित हिमाचल में भाजपा नेताओं द्वारा अपने पार्षदों के साथ दो दिन बिताने को राजनीतिक जानकार सामान्य नहीं मान रहे हैं। लिहाजा, इन चार दिनों का नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस ने इस चुनाव में वोटिंग न करने का फैसला चौथे दिन सुना दिया। अब सवाल यह भी उठ रहा है कि यदि कांग्रेस को वोटिंग का भी बहिष्कार करना ही था तो इसका निर्णय भी नामांकन के दिन ही क्यों नहीं किया गया था ? चुनाव बहिष्कार पर बंटे अपने पार्षदों में क्या कांग्रेस को एक और टूट की आशंका हो चली थी या पार्टी में हो चुकी टूट को इन चार दिनों में मैनेज करना था ? इन सवालों का जवाब फिलहाल कोई सीधे तौर पर देने को तैयार नहीं है लेकिन इस पूरे सियासी खेल में सबसे ज्यादा मायूस आम आदमी पार्टी दिख रही है, जिसने इस बार मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव में न केवल कांग्रेस में, बल्कि भाजपा में भी सेंधमारी की तैयारी तो खूब की थी पर भाजपा के आगे एक बार फिर गच्चा खा गई।