चंडीगढ़ के वकील अजय शर्मा ने नोबेल समिति से मोहम्मद यूनुस को दिए गए शांति पुरस्कार पर पुनर्विचार करने की अपील की

बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदायों पर अत्याचारों को लेकर गंभीर चिंता जताई

CHANDIGARH, 7 DECEMBER: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट अजय शर्मा ने नोबेल शांति पुरस्कार समिति को औपचारिक रूप से एक पत्र लिखकर प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस को दिए गए नोबेल शांति पुरस्कार पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। अपने पत्र में एडवोकेट शर्मा ने बांग्लादेश में यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के तहत अल्पसंख्यक हिंदू समुदायों पर हो रहे अत्याचारों पर गंभीर चिंता जताई।

एडवोकेट शर्मा ने अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के सत्ता में आने के बाद से हिंदू समुदायों पर 2,000 से अधिक हमले दर्ज किए गए हैं। इनमें घरों, व्यवसायों और मंदिरों पर हमले के साथ-साथ ISKCON जैसे सामाजिक-धार्मिक संगठनों के नेताओं की गिरफ्तारी भी शामिल है। खासकर, हिंदू भिक्षु चिन्मय कृष्ण दास की विवादास्पद गिरफ्तारी ने धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया है।

हालांकि, 52 जिलों में सांप्रदायिक हिंसा और हजारों हिंदू परिवारों के विस्थापन की रिपोर्टों के बावजूद यूनुस और उनकी सरकार ने इन घटनाओं को ‘अतिरंजित प्रचार’ करार दिया है। रिपोर्ट्स में महिलाओं पर हिंसा, मंदिरों की तोड़फोड़ और व्यापक विस्थापन का विवरण है, लेकिन सरकार ने संकट की गंभीरता को अस्वीकार करते हुए इसे विदेशी मीडिया द्वारा बनाई गई झूठी कहानियां बताया है।

एडवोकेट अजय शर्मा ने कहा कि नोबेल शांति पुरस्कार शांति और मानव गरिमा के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है। हालांकि मोहम्मद यूनुस को सामाजिक उद्यमिता में उनके योगदान के लिए वैश्विक रूप से मान्यता प्राप्त है, लेकिन एक राजनीतिक नेता के रूप में उनके कार्यों ने इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के सिद्धांतों पर गंभीर नैतिक प्रश्न उठाए हैं। नोबेल समिति से अपील करते हुए एडवोकेट शर्मा ने शांति पुरस्कार की विश्वसनीयता और गरिमा बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने बांग्लादेश में वर्तमान घटनाक्रम की गहन जांच करने और इन परिस्थितियों को देखते हुए यूनुस की स्थिति पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि
नोबेल शांति पुरस्कार न्याय और आशा का प्रतीक है। ऐसे नेता से इसे जोड़ना, जिनके कार्यकाल के दौरान अल्पसंख्यकों को व्यवस्थित हिंसा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा हो, इसके मूल्यों को कमजोर कर सकता है। इस मामले पर पुनर्विचार करना आवश्यक है, ताकि पुरस्कार के सिद्धांत संरक्षित रहें।

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