सुभाष चावला की कुर्सी की तरफ उठ रही बगावती तलवारें लौटने लगीं म्यान में
CHANDIGARH, 13 MARCH: पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी पराजय से भले ही पार्टी सदमे में है लेकिन पंजाब की हार से चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व की तो जान में जान लौट आई है। यह बात अलग है कि चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव के बाद से यहां कांग्रेस अब तक निराशा से उबर नहीं पा रही है। दो महीने से सुनसान पड़े चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में खुशियां कब लौटेंगी, यह तो कोई नहीं बता सकता, अभी इतना जरूर है कि पंजाब में पार्टी की विफलता के बाद चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चावला फॉर्म में लौटते दिख रहे हैं। उनकी कुर्सी पर गहराए संकट के बादल भी फिलहाल छंटते नजर आ रहे हैं।
दो माह पहले चंडीगढ़ से होकर गुजरी थी AAP की आंधी
पंजाब विधानसभा चुनाव में चली आम आदमी पार्टी (AAP) की आंधी दो महीने पहले चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव से होकर गुजरी थी। AAP के बवंड में यहां भी रिवायती पार्टियों भाजपा व कांग्रेस का किला तहस-नहस हो गया था। नगर निगम चुनाव में भाजपा के तत्कालीन मेयर, भाजपा व कांग्रेस के पूर्व मेयर तथा कई पदाधिकारी चुनाव हार गए थे। पहली बार चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव लड़ी आम आदमी पार्टी 35 में से 14 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जबकि भाजपा 12 और कांग्रेस मात्र 8 सीटें जीत पाई। यह बात अलग है कि बाद में जोड़-तोड़ के रास्ते पर चलकर भाजपा ने मेयर अपना बनवा लिया और नगर निगम में अपनी सत्ता बचा ली लेकिन भाजपा का मेयर बनते-बनते 7 सीटों तक सिमट गई कांग्रेस को निगम चुनाव में सबसे बड़ा झटका लगा।
हार का ठीकरा फूटा सुभाष चावला के सिर
चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में कांग्रेस की इस हालत का ठीकरा सिर्फ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चावला के सिर फोड़ा गया। उन पर गलत समय तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप छाबड़ा को कुर्सी से हटवाने, फिर निचले स्तर तक संगठन खड़ा न कर पाने, संगठन पर पकड़ न रखने, निगम चुनाव में प्रत्याशियों का गलत चयन करने, टिकट वितरण में मनमानी करने, कई सीटों पर भितरघात न रोक पाने, चुनाव के दौरान सिर्फ अपने पुत्र के प्रचार अभियान तक सीमित रहने जैसे आरोप लगाए गए। यह तक कहा गया कि जो प्रदेश अध्यक्ष अपने पुत्र को भी चुनाव न जितवा सका, उसके नेतृत्व में पार्टी कैसे आगे बढ़ सकती है। लिहाजा, सुभाष चावला को चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाने की मांग पार्टी में जोर पकडऩे लगी।
निराश चावला कर चुके थे पदमुक्त करने का आग्रह
हालांकि इन तमाम आरोपों पर चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चावला अब तक चुप्पी साधे हुए हैं। निगम चुनाव में पार्टी की बुरी तरह हार के बाद कांग्रेस ही नहीं, चावला भी खुद इतने निराश हो गए कि उन्होंने पार्टीजनों से ही दूरी बना ली थी। फोन बंद कर लिया और पार्टी कार्यालय में भी जाना बंद कर दिया था। यही नहीं, चावला ने पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से यह भी आग्रह कर दिया कि उन्हें चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से मुक्त कर दिया जाए लेकिन तब कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व पंजाब समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में व्यस्त था। ऐसे में चंडीगढ़ में अध्यक्ष बदलने का फैसला इन विधानसभा चुनावों तक टाल दिया गया।
लक्की को प्रधान पद सौंपने की थी तैयारी
इस बीच, चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नए दावेदार के रूप में पूर्व डिप्टी मेयर हरमोहिंदर सिंह लक्की सामने आ गए। लक्की नगर निगम चुनाव में अपनी सीट पर बहुत मामूली वोटों के अंतर से हारे थे, जिसे पार्टी उनकी हार नहीं, बल्कि दुर्भाग्य ही मान रही थी। लक्की पिछले साल तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप छाबड़ा के खिलाफ चली मुहिम के अलंबरदार भी थे। तब उनके अलावा पूर्व पार्षद देविंदर सिंह बबला भी चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के प्रबल दावेदार थे। यह बात अलग है कि चावला लक्की व बबला को पीछे कर प्रदेश प्रधान की कुर्सी पाने में कामयाब हो गए थे। इसके बाद से नाराज बबला जनवरी में मेयर चुनाव के समय कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। ऐसे में अब चावला को प्रदेश प्रधान की कुर्सी से हटाने की स्थिति में लक्की ही अकेले दावेदार बचे थे। चंडीगढ़ में कांग्रेस हाईकमान माने जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन कुमार बंसल ने भी नए प्रदेश प्रधान के लिए लक्की के नाम पर मुहर लगा दी थी और लक्की पंजाब विधानसभा चुनाव में बरनाला सीट से चुनाव लड़े पवन कुमार बंसल के पुत्र मनीष बंसल के लिए प्रचार अभियान में जोर-शोर से जुटे रहे। यह लगभग तय भी हो गया था कि पंजाब विधानसभा चुनाव के बाद सुभाष चावला को चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटाकर लक्की को उनकी जगह बैठा दिया जाएगा लेकिन पंजाब चुनाव का परिणाम अब इस योजना पर पानी फेरता दिख रहा है। क्योंकि चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चावला पर नगर निगम चुनाव में पार्टी की हार को लेकर लग रहे तमाम आरोपों की धार पंजाब चुनाव में कांग्रेस की शर्मनाक हार से मौथरी हो गई है।
सुभाष चावला ‘बाइज्जत बरी’ !
खास बात यह है कि पंजाब विधानसभा चुनाव में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी समेत कई दिग्गज तो चुनाव हारे ही लेकिन चंडीगढ़ में पार्टी हाईकमान माने जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष पवन कुमार बंसल के पुत्र मनीष बंसल भी बरनाला विधानसभा सीट पर बुरी तरह हार गए। उन्हें अपनी जमानत बचाने तक के लाले पड़ गए। ऐसे में यहां सुभाष चावला की कुर्सी की तरफ उठ रहीं बगावती तलवारें अब म्यान में लौटने लगी हैं। पार्टी में सवाल उठ रहे हैं कि यदि पंजाब विधानसभा चुनाव में पवन कुमार बंसल अपने पुत्र को चुनाव नहीं जिता पाए तो नगर निगम चुनाव में सुभाष चावला के पुत्र की हार के लिए सुभाष चावला को क्यों कटघरे में खड़ा किया जाए? चावला समर्थकों का कहना है कि नगर निगम चुनाव को लेकर सुभाष चावला पर लगे अन्य आरोपों की अहमियत भी अब पंजाब चुनाव के नतीजों के बाद शून्य हो गई है। क्योंकि दोनों चुनावों के रिजल्ट लगभग एक जैसे हैं और दोनों जगह कांग्रेस को तहस-नहस करने वाली आंधी भी एक ही पार्टी लेकर आई। लिहाजा, दो महीने से गुमसुम बैठे चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चावला फिर मुखर होने लगे हैं। उन्होंने पार्टी कार्यालय में बैठना भी शुरू कर दिया है और पार्टीजनों से खुलकर मुखातिब हो रहे हैं। सुभाष चावला अब कब तक अपनी कुर्सी पर बने रहेंगे, इसके लिए संभवत: पंजाब में पार्टी हाईकमान के होने वाले फैसलों पर चंडीगढ़ कांग्रेस की नजर रहेगी, फिलहाल चावला कम से कम निगम चुनाव के परिप्रेक्ष्य में लगते आए तमाम आरोपों से तो खुद को ‘बाइज्जत बरी’ मान रहे हैं।