जांच में बाधा उत्पन्न करने वाले अकालियों की भूमिका जग जाहिर हुई: कैप्टन अमरिंदर सिंह
CHANDIGARH: शिरोमणि अकाली दल द्वारा केंद्र सरकार से नाता तोड़ लेने के कुछ महीनों के अंदर ही केंद्रीय जांच ब्यूरो (सी.बी.आई.) ने बुधवार को बेअदबी मामलों के साथ जुड़े दस्तावेज़ राज्य पुलिस के हवाले कर दिए हैं। इस दौरान पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि इससे यह साबित हो गया है कि अकाली दल इन मामलों में अपनी मिलीभगत ज़ाहिर होने पर पर्दा डाले रखने के लिए इस कार्यवाही में रोड़े अटका रहा था।
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की तरफ से सी.बी.आई. के लिए तय की गई तारीख़ के गुजऱ जाने के कुछ घंटे पहले केंद्रीय एजेंसी द्वारा इन मामलों से सम्बन्धित दस्तावेज़ और फाइलें पंजाब पुलिस को सौंप दी गईं।
जि़क्रयोग्य है कि ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन के डायरैक्टर ने 18 जनवरी, 2021 को सी.बी.आई. के डायरैक्टर को पत्र लिखकर कहा था कि सी.बी.आई. से बेअदबी मामलों की जांच वापस लेने के बाद बिना किसी देरी के राज्य सरकार को समूचा रिकार्ड वापस किया जाये और इसके साथ-साथ सी.बी.आई. को 2 नवंबर, 2015 को जारी नोटिफिकेशन नंबर 7/52113-एच/619055/1 के अंतर्गत स्थानांतरित किये गए मामलों सम्बन्धी इकठ्ठा किये सबूतों समेत सारा रिकार्ड भी लौटाया जाये।
मुख्यमंत्री ने इसको राज्य सरकार की जीत बताते हुए कहा कि इससे उनकी सरकार के उस स्टैंड की भी पुष्टि हो गई कि इन महीनों के दौरान सी.बी.आई. की तरफ से अकाली दल के इशारे पर पंजाब पुलिस की विशेष जांच टीम (एस.आई.टी.) द्वारा की जा रही जांच में रुकावटें पैदा करने की कोशिशें की गई थीं क्योंकि सितम्बर, 2020 तक अकाली दल केंद्र में एन.डी.ए. का सहयोगी था।
कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि अब यह स्पष्ट हो गया कि हरसिमरत बादल, केंद्रीय मंत्री के नाते केंद्रीय जांच एजेंसी पर दबाव बना रही थीं कि केस के साथ जुड़ी फाइलें पंजाब पुलिस को न सौंप कर एस.आई.टी. की जांच में रोड़े अटकाए जाएँ क्योंकि वह यह बात जानते हैं कि यदि पुलिस जांच को कानूनी नतीजे पर ले गई तो इस समूचे घटनाक्रम में उनकी पार्टी की भूमिका का पर्दाफाश हो जायेगा।
कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि अब एस.आई.टी. की जांच पूरी हो जाने पर साल 2015 की घटनाओं में अकाली दल का हाथ होने और उसके बाद निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच में रुकावटें पैदा करने के लिए किये गए यत्नों का पर्दाफाश हो जायेगा।
उन्होंने ऐलान किया कि किसी को भी बक्शा नहीं जायेगा, चाहे वह किसी भी राजनैतिक पक्ष के साथ सम्बन्धित हो या कोई भी रुतबा क्यों न रखता हो। यह खुलासा करते हुए कि उनकी सरकार ने साल 2018 में ही विधानसभा में प्रकट की गई सर्वसम्मति के बाद इन मामलों की जांच के लिए सी.बी.आई. को दी इजाज़त वापस ले ली थी, मुख्यमंत्री ने कहा कि इस सम्बन्धी जांच के लिए उस समय एस.आई.टी. का गठन भी किया गया था।
उन्होंने आगे कहा कि केंद्रीय एजेंसी ने दो वर्षों तक लगातार राज्य को इस मामले के साथ सम्बन्धित फाइलें सौंपने से इन्कार कर दिया और इस मामले सम्बन्धी पहले क्लोजऱ रिपोर्ट दाखि़ल करने वाली एजेंसी ने सितम्बर, 2019 में एक नयी जांच टीम बना दी जिसका मकसद राज्य सरकार को अपने स्तर पर निष्पक्ष और तेज़ी के साथ जांच करने से साफ़ तौर पर रोकना था।मुख्यमंत्री ने कहा कि हैरानी की बात यह है कि हाई कोर्ट की तरफ से जनवरी, 2019 में राज्य सरकार के फ़ैसले को बरकरार रखे जाने के बाद भी सी.बी.आई. द्वारा इस मामले के साथ सम्बन्धित डायरियाँ सौंपने से इन्कार कर दिया गया और फरवरी, 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फ़ैसले को चुनौती देती सी.बी.आई. की अपील रद्द कर दी।
मुख्यमंत्री ने सवाल किया कि अकाली, जोकि जांच पूरी होने नहीं देना चाहते थे, के द्वारा राजनैतिक दबाव डाले जाए बिना सी.बी.आई. के पास इस तरह व्यवहार करने का क्या कारण हो सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि अब जब इस मामले की फाइलों के न होने का कारण भी एस.आई.टी. के रास्ते का रोड़ा नहीं बन सकती तो शिरोमणी अकाली दल की भद्दी चालों का पर्दाफाश हो जायेगा।जून से अक्तूबर 2015 दौरान फरीदकोट के गाँव बुर्ज जवाहर सिंह वाला में एक गुरुद्वारा साहिब से पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का स्वरूप चोरी होने के बाद पवित्र ग्रंथ की बेअदबी की घटनाएँ सामने आईं थीं और फरीदकोट के ही बरगाड़ी में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के बेअदबी किये पवित्र अंग मिले थे। इससे सिख भाईचारे में बड़े स्तर पर रोष फैल गया था।
इन घटनाओं के कारण अक्तूबर, 2015 में व्यापक स्तर पर धरने और रोष प्रदर्शन हुए। पुलिस की तरफ से जवाबी कार्यवाही के चलते 2 व्यक्तियों की मौत हो गई और कई ज़ख्मी हुए। साल 2015 में ही उस समय की अकाली सरकार ने बेअदबी मामलों की जांच सी.बी.आई. को सौंप दी थी। सेवामुक्त जस्टिस ज़ोरा सिंह कमीशन की नियुक्ति की गई जिससे बेअदबी के इन मामलों और धरनों के समय पुलिस की तरफ से की गई कार्यवाही की जांच की जा सके। साल 2016 में सरकार को रिपोर्ट सौंप दी गई।
साल 2017 में कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद सेवामुक्त जस्टिस ज़ोरा सिंह की रिपोर्ट को किसी निष्कर्ष पर पहुँचते न मानते हुए सरकार ने सेवामुक्त जस्टिस रणजीत सिंह कमीशन का गठन किया जिसने अपनी रिपोर्ट साल 2018 में सौंपी थी।