हरीश गर्ग ने केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री को पत्र भेजकर सरकारी अवकाश 31 अक्तूबर को घोषित करने का आग्रह किया
CHANDIGARH, 26 OCTOBER: इस वर्ष दीपावली के त्यौहार को लेकर देशभर के व्यापारियों एवं अन्य लोगों के बीच तिथि पर असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि दीवाली 31 अक्तूबर को मनाई जाए या 1 नवंबर को ? क्योंकि इस वर्ष कार्तिक अमावस्या दो दिन में पड़ रही है और दीवाली कार्तिक अमावस्या को ही मनाई जाती है। इसलिए दीवाली की तिथि को लेकर एक भ्रम बना हुआ है। दीवाली देश का सबसे बड़ा त्यौहार है और भारत में व्यापार एवं उद्योग के लिए भी सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन श्री गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा देशभर के व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और घरों में बेहद उल्लास और उमंग से की जाती है।सदियों से यह पर्व व्यापार के लिए बेहद शुभ माना जाता रहा है।
कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAT) की वैदिक एवं आध्यात्मिक कमेटी के राष्ट्रीय संयोजक और उज्जैन के प्रसिद्ध वेद मर्मज्ञ आचार्य दुर्गेश तारे ने इस बारे में स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि इस वर्ष दीवाली का त्यौहार 31 अक्तूबर 2024 को ही मनाना शास्त्र सम्मत है। दीपावली रात्रिकालीन महापर्व है और इस वर्ष 31 अक्तूबर को अमावस्या तिथि दिन में 3:40 बजे से आरंभ हो रही है। शास्त्रों के अनुसार दीपावली प्रदोष काल और महारात्रि (निशीथकाल) में अमावस्या तिथि होने पर ही मनानी चाहिए। इस कारण 31 अक्तूबर को दीवाली मनाना ही श्रेष्ठ और शास्त्र सम्मत है, क्योंकि प्रदोष काल अमावस्या में 31 अक्तूबर को ही पड़ रहा है।
इस संबंध में आचार्य तारे ने शब्दकल्पद्रुम से उद्धृत श्लोक का उल्लेख करते हुए कहा, अमावस्या यदा रात्रों दीवाभा गे चतुर्दशी, पूजनीया तदा लक्ष्मी वीजेया सुखरात्रिकाह। उन्होंने बताया कि यह श्लोक तर्क वाचस्पति तारानाथ भट्टाचार्य के प्रसिद्ध ग्रंथ वाचस्पत्यम में भी उद्धृत है। इसमें कहा गया है कि यदि चतुर्दशी भी हो तो प्रदोष व्यापिनी अमावस्या को ही सुखरात्रिका अर्थात दीपावली कहा जाता है। आचार्य तारे ने यह भी कहा कि स्थिर लग्न और प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि मां लक्ष्मी का प्रादुर्भाव प्रदोष काल में हुआ था। स्थिर लग्न में लक्ष्मी पूजन करने से महालक्ष्मी की कृपा स्थायी रहती है। 1 नवंबर को अमावस्या प्रदोष काल से पहले ही समाप्त हो जाएगी। इसलिए 1 नवंबर को दीवाली मनाना शास्त्रों और परंपराओं के अनुसार उचित नहीं है। इसलिए, दीवाली 31 अक्तूबर को ही मनाई जानी चाहिए।
CAT के राष्ट्रीय सचिव एवं चण्डीगढ़ चैप्टर के अध्यक्ष हरीश गर्ग ने बताया कि अयोध्या धाम तथा धर्म नगरी काशी में भी दीवाली 31 अक्तूबर को ही मनाई जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री आचार्य स्वामी जितेंद्रानन्द जी सरस्वती ने सूचित किया है कि दीवाली 31 अक्तूबर को ही मनाना शास्त्र सम्मत है। इस संदर्भ में हरीश गर्ग ने आज केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को एक पत्र भेजकर आग्रह किया है कि दीवाली का सरकारी अवकाश 31 अक्तूबर को ही घोषित किया जाए, ताकि भ्रम की स्थिति समाप्त हो सके। इसके अलावा CAT देशभर के व्यापारी संगठनों को भी पत्र भेजकर 31 अक्तूबर को ही दीवाली मनाने की सलाह दे रहा है।
आचार्य तारे ने बताया कि दीवाली महापर्व की शुरुआत अहोई अष्टमी 24 अक्तूबर से हो गई है तथा इस श्रृंखला में धनतेरस 29 अक्तूबर को, दीवाली 31 अक्तूबर को, गोवर्धन पूजा 2 नवंबर को, भाई दूज 3 नवंबर तथा उसके बाद छठ पूजा करते हुए और तुलसी विवाह 12 नवंबर को मनाते हुए दीवाली का महापर्व समाप्त होगा और उसके तुरंत बाद शादियों का सीजन शुरू हो जाएगा।