दिल्ली हिंसा पर अब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने की ये मांग, घटना को देश का अपमान बताया

कहा- दिल्ली पुलिस दोषियों के खिलाफ केस दर्ज करे परन्तु किसी किसान नेता को परेशान न करे 

CHANDIGARH: दिल्ली में ख़ासकर लाल किले पर गणतंत्र दिवस के मौके पर हुई हिंसा की निंदा करते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने बुधवार को इस घटना को देश का अपमान बताया।

उन्होंने कहा कि इसके साथ देश को बदनामी झेलनी पड़ी है और इससे किसान आंदोलन कमज़ोर हुआ है, परन्तु उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वह कृषि कानूनों के ग़लत और मुल्क के संघीय ढांचे के खि़लाफ़ होने के कारण किसानों के साथ खड़े रहेंगे।

मुख्यमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया की लाल किला आज़ाद भारत का प्रतीक है और आज़ादी एवं राष्ट्रीय झंडे को लाल किले पर लहराता देखने के लिए हज़ारों ही भारतियों ने अपनी जान न्योछावर की हैं। उन्होंने आगे कहा कि महात्मा गांधी ने आज़ादी की समूची लड़ाई अहिंसा से लड़ी। उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रीय राजधानी में बीते कल जो कुछ भी हुआ, उससे मेरा सिर शर्म से झुक जाता है।’’

कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा, ‘‘जिसने भी लाल किले में हिंसा की है, उसने पूरे मुल्क को बदनामी का पात्र बनाया है और दिल्ली पुलिस को मामले की जांच करके कार्यवाही करनी चाहिए।’’ उन्होंने आगे बताया कि केंद्र सरकार को भी इस मामले सम्बन्धी किसी भी पार्टी या देश के शामिल होने की जाँच करनी चाहिए, परन्तु इसके साथ ही यह भी यकीनी बनाया जाये कि पुलिस द्वारा किसी किसान नेता को बिना वजह तंग या परेशान न किया जाये। मुख्यमंत्री ने ऐलान किया कि पंजाब के नौजवानों का भविष्य अमन-शान्ति भरे माहौल में है और हालिया घटनाओं के कारण राज्य में निवेश की रफ़्तार धीमी पड़ी है।

मुख्यमंत्री ने उपरोक्त घटना को अंजाम देने वालों के खि़लाफ़ कार्यवाही की माँग करते हुए कहा कि यह लोग किसान नहीं बल्कि रास्ते से भटके हुए हैं जो ऐसी हरकतें कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यदि सरकार लोगों की आवाज़ नहीं सुनती तो ऐसी समस्याएँ पैदा होती रहेंगी। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि एक सरकार, लोगों के लिए और लोगों द्वारा होती है और यह लोगों की राय को नजऱअंदाज़ नहीं कर सकती। उन्होंने आगे बताया कि केंद्र की भाजपा के नेतृत्व वाली एन.डी.ए. सरकार देश में होने वाले अगले मतदान में लोगों की पसंद नहीं बन सकेगी, क्योंकि 70 प्रतिशत आबादी किसानों की है।

उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय जनता पार्टी को यह समझ लेना चाहिए कि सभी अल्पसंख्यकों के सम्मिलन वाले स्थिरता और धर्म निरपेक्षता के सिद्धांत देश के समूचे विकास के लिए बेहद अहम हैं और हिन्दुत्व का पत्ता खेलने से तरक्की नहीं हो सकती। कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा, ‘‘कृषि कानून ग़लत हैं और कृषि राज्यों का विषय है, परन्तु फिर भी अध्यादेश लाने से पहले हमसे नहीं पूछा गया।’’

आम आदमी पार्टी द्वारा उनकी सरकार पर इस मसले संबंधी अवगत होने के इल्ज़ामों को ख़ारिज करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि आप द्वारा गुमराह करने वाला प्रचार किया जा रहा है और सत्य तो बल्कि यह है कि पंजाब को तो माहिरों की समिति में शामिल भी नहीं किया गया था, क्योंकि केंद्र को पता था कि पंजाब द्वारा इन कानूनों का घोर विरोध किया जायेगा।

उन्होंने आगे कहा कि जब उनकी तरफ से भारत सरकार को निजी पत्र लिखने के बाद में ही राज्य को आखिऱकार समिति का हिस्सा बनाया गया तो कृषि अध्यादेशों सम्बन्धी कोई भी विचार-विमर्श नहीं किया, बल्कि नीति आयोग द्वारा बाद में हासिल हुई ड्राफ्ट रिपोर्ट, जिसका उनकी सरकार ने नुक्ता दर नुक्ता जवाब दिया, में भी अध्यादेशों की कोई बात नहीं की गई।

राज्यपाल द्वारा प्रांतीय संशोधन बिल अभी तक मंज़ूरी के लिए राष्ट्रपति को न भेजने पर दुख ज़ाहिर करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इन कानूनों को संविधान की धारा 254 के अंतर्गत विधान सभा में पास किया गया था, जैसे कि भाजपा ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम के मामले में किया था। पंजाब में कांग्रेस सरकार के प्रति पक्षपात वाला रवैए संबंधी सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘यदि यह भाजपा के लिए किया जा सकता है तो फिर यह हमारे लिए क्यों नहीं किया जा सकता।’’

कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि यदि योजनाबद्ध ढंग से राज्यों की ताकतों को हथियाना ही है तो फिर यह राज्य सरकारें किसके लिए हैं।’’ उन्होंने कहा कि आनंदपुर साहिब प्रस्ताव, जो 50 साल पहले पास किया गया था, में संघीय ढांचे की मज़बूती की माँग की गई थी, परन्तु उल्टा संघीय ढांचे को कमज़ोर किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री ने फिर कहा कि कृषि कानून किसानों की भावी पीढिय़ों के आर्थिक सामथ्र्य को गहरी चोट पहुंंचाएंगे, जिस कारण किसान इन कानूनों के खि़लाफ़ रोष प्रदर्शन कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्राईवेट कॉर्पोरेट तो पंजाब में अभी भी कार्यशील हैं और वह न्यूनतम समर्थन मूल्य, आढतियों और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की स्थापित व्यवस्था का नुकसान पहुंचाए बिना राज्य में आ सकते थे।

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