CHANDIGARH: “ देश की आजादी से पूर्व भारतीय समाज में असमानता का बोलबाला था। समाज के कुछ वर्ग के लोग अपने आप को दबा कुचला और असहाय माना करते थे। इस दौर में समानता की भावना को मजबूत करने वाले डॉ भीमराव अम्बेडकर ने विपरीत परिस्थितियों में भी हार न मानते हुए सभी लोगों को एकसमान लाकर खड़ा करने का जो बीड़ा उठाया वो अविस्मरनीय है।” यह बात भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री, राज्य सभा सांसद और चंडीगढ़ भाजपा के प्रभारी दुष्यंत गौतम ने आज बाबा भीम राव आंबेडकर की जयंती पर चंडीगढ़ भाजपा द्वारा आयोजित सेमी वर्चुअल वेबिनार के दौरान कही।
उल्लेखनीय है कि चंडीगढ़ भाजपा द्वारा स्थापना दिवस से लेकर डॉ भीमराव अम्बेडकर की जयंती को सेवा सप्ताह के रूप में मनाया जा रहा है। उसी श्रृंखला में आज वर्चुअल वेबिनार का आयोजन किया गया जिसमे हजारों की संख्या में लोगों ने कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दुष्यंत गौतम के विचार सुने। कार्यक्रम की शुरुआत में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अरुण सूद ने दीपमाला करके कार्यक्रम की शुरुआत की और उसके बाद वक्ता गौतम के बारे में परिचय दिया।
वेबिनार के माध्यम से जुड़े लोगों को संबोधित करते हुए मुख्यवक्ता दुष्यंत गौतम ने कहा कि मध्यप्रदेश के छोटे से गाँव में दलित परिवार में जन्मा बालक कभी देश का संविधान भी लिखेगा, ये किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। बाल्यकाल से ही अम्बेडकर ने अपनी शिक्षा की रुचि को संजोय रखा और उन्होंने राजा से छात्रवृति प्राप्त कर उच्च शिक्षा हासिल की। अपने जीवन के हर पल में उन्हें कहीं न कहीं दलित होने का आभास भी करवाया जाता रहा परन्तु उन्होंने दलितों को समान अवसर उपलब्ध करवाने की अवधारणा को जीवित रखा और उसके लिए निरंतर प्रयासरत रहे। परिणामस्वरूप देश की आजादी के उपरान्त उन्हें सर्वसम्मति से देश की आन बान और शान देश को नयी दिशा प्रदान करने वाले भारतीय संविधान की रूपरेखा तैयार करने की जिम्मेदारी दी गयी।
अस्वस्थ होने के बाद भी इतने कम समय (2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन) में संविधान बनाकर उन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया। उन्होंने हर वर्ग के हितों को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान की रचना कर एक नया इतिहास रचा। आज देश में किसी भी प्रकार की असमानता का कोई स्थान नहीं है। वह उनका विधि व कानूनी ज्ञान ही था कि कांग्रेस व गांधी के कटु आलोचक होने के बाद भी उन्हें कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने देश का पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
उन्होंने उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वो एक प्रतिभावान छात्र थे। उन्होंने देश और विदेश में पढ़ाई पूर्ण कर कानून की डिग्री हासिल कर ली। अपने एक देशस्त ब्राह्मण शिक्षक महादेव अंबेडकर के कहने पर अंबेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर अंबेडकर जोड़ लिया, जो उनके गांव के नाम ‘अंबावडे’ पर आधारित था। अंबेडकर के राजनीतिक जीवन की शुरूआत 1935 से मानी जाती है। अध्ययनकाल के समय ही किसी मित्र ने अंबेडकर को महात्मा बुद्ध की जीवनी भेंट की थी। बुद्ध के जीवन और बौद्ध धर्म को जानकर वे बेहद ही प्रभावित हुए। परिणामस्वरूप उन्होंने अपने जीवनकाल में बौद्ध धर्म को सहर्ष स्वीकार भी किया।
उन्होंने आगे कहा कि ऐसे उच्च आचरण और प्रतिभावान व्यक्तित्व के धनी पुरुष द्वारा समाज के उत्थान के लिए उठाये गए कदम सराहनीय है। हम सभी को उनके द्वारा उठाये गए महत्वपूर्ण क़दमों और विचारों को देश की जनता के बीच लेकर जाना होगा और उनके खुलेपन के विचारों से लोगों को अवगत करवाना होगा कि डॉ आंबेडकर ने सभी वर्गों के बीच पारस्पर सामंजस्य और आपसी मेल मिलाप और जाति पर आधारित भेदभाव को मिटाने के लिए सकरात्मक सोच से काम किया और सभी वर्गों को एकसमान अधिकार प्रदान किये।
उन्होंने कहा कि हालांकि उनके विचारों से सहमति न रखने वाले तत्कालीन कांग्रेस के नेताओं ने उनका जमकर विरोध भी किया। उन्हें राजनीति गलियारों में बौना साबित करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ते थे। इस बात से डॉ अम्बेडकर काफी दुखी होते थे। किन्तु वर्तमान में केंद्र में मोदी सरकार ने उनके पैतृक गाँव को एक तीर्थस्थल के रूप में विकसित करने का बीड़ा उठाया है। इतना ही नहीं दिल्ली में तो उनके नाम की एडवांस स्टडी सेंटर का निर्माण भी करवाया। उनके जीवन से जुडी हर वस्तु आदि को संजो कर रखा जा रहा है। केंद्र सरकार और भी विभिन्न योजनाओं आदि का निर्माण किया है ताकि बाबा भीमराव आंबेडकर के योगदान से सभी लोग परिचित हो और उनके द्वारा किये गए महान कार्यों से सीख लेकर देश निर्माण में एहम भूमिका अदा करनी होगी यही उनके लिए सच्ची श्रधान्जली होगी। हमें अपने आप पर गर्व होना चाहिए कि हमारे देश ने ऐसे महान नेता दिए जिन्होंने अपने पुरुषार्थ से न केवल अपना नाम रोशन किया बल्कि देश के गौरव को भी चार चाँद लगाये।